Tuesday, 8 April 2014

अस्तित्व ( Watery existences ) :


ख्यालों में !

उस अक्स के मिटते ही  हम नींद से जागे जैसे 
 बहती  तरंगित  लहरों में कुछ अक्स उभरे फिर से 
हम क्या है , क्या थे और क्या हो जायेंगे 

एक बानगी में हवा का झोंका उठा  और  बता गया 
कुछ देर के लिए ही है हम, यहीं थे और यही रहेंगे ,
कुछ देर के लिए  ही तू जहाँ है , वही से दिखेगा 

वो .. रक्स करता हुआ सा .. वो अक्स उभरा 
रात के .. सन्नाटे में .... दिल की .. गहराईओं में 
न सच था... न झूठ , सिर्फ .... वक्ती अहसास था 

न तेरा ... असमान पे तारों के झुरमुट संग होना सच 
ना ये मेरा .. यहाँ धरती पे हर वक्त का दिखना सच है,
सब वक्ती बहाव है जब तक भी है सिर्फ वक्ती बहाव है 

न तेरा दिखना सच था, न मेरा जल सा बीतता रिसता जीवन सच 
उभरेअक्स मिटते अक्स सब छलावा ही रहे मैं भी तो छलावा ही हु 
आज यहाँ नीचे हूँ तो कल ऊपर, आसमान में उड़ती नज़र आउंगी 

फिर कभी किसी पोखर में छुप जाउंगी;वहाँ से निकली गर कभीतो 
किसी डगर पे बलखाती फैलती सिमटती भागती कभी दिख जाउंगी 
फिर झूमती इठलाती दौड़ती भागती किसी और रूप में मिल जाउंगी 

इस बीच .. अधिक तीव्र चुम्बकीय आकर्षण ने .. अगर खींच लिया 
तो जाके वहाँ उसके ध्रुव पे ऐसे ही ऊर्जा का नृत्य करेंगे हम तुम 
क्या तेरा सच क्या मेरा सच ? व्यर्थ का प्रलाप और ह्रदय का नर्तन !



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