Sunday 17 January 2021

सुनो सनातनी



हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना...

छींटाकसी आरोप प्रत्यारोप दिमागी खलल है
मनुस्मृति को कुछ कहने से पहले मनु को समझना
ऋचाएं क्या गाती है , उपनिषद क्या कहते हैं
उनको रचने वाले कितने गहरे तप से गुजरते हैं
ईश्वर को समझने से पहले ईश्वर हो जाना
सम्पूर्ण वेदो को समझने से पहले वेदवाक्य समझना
गीता को कुछ कहने से पहले कृष्ण नहीं व्यास हो जाना
और फिर कृष्ण को अपने अंदर उतार गीता पढ़ना
रामायण को कुछ कहने से पहले तुलसी बन जाना
और राम को लहू बना अपनी रामायण गाना

क्यूंकि
हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना...

भाषा का अपना वैज्ञानिक आधार 'तरंग' है
और भाव प्राकट्य की सक्षमता बुनियाद है
छींटाकसी आरोप प्रत्यारोप दिमागी खलल है
जागरण की विधा से जागरूक हो कर
संस्कृति होना श्रृंखला की, अचार-संहिता का अर्थ समझना
सनातनी! सनातन का मर्म समझना
वर्ण को जाती से मेल कर भूल न करना
ब्राह्मण द्विज विद्वान बनने की सन्नहित क्रिया समझना

क्यूंकि
हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना ...

मन के भाव प्रेम घृणा , विष अमृत, ऊँचनीच, जातपांत
रूचि देखो भद्र पुरुष विचारपूर्वक इंगित मार्ग पे चल निकलो
क्यों अटके उलझे जन्म के मायाजाल में
अपने होने का अरथ पहले जान लो
क्या पता ? कर्म तुम्हारा तुम्हे खींचे वीरता की ओर
क्या पता तुम्हे भाये नृत्यसंगीत
क्या पता तुम्हे प्रीतिकर हो ब्रह्मज्ञान
और तुम जन्म के खाके में कैद रह जाओ
और अपना जन्म व्यर्थ में गंवाओ
देखो! ऐसा भ्रम दिल में न पालना

क्यूंकि
हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना ...

Friday 15 January 2021

अभी मेरा निर्वाण कहाँ !


( वायुमंडल में फैले जलकण जलस्मृति पे आधारित )



भू: जल नभ आग वायु  

पृथ्व मंडल में हम पांच 

मिलजुल कर हम रहते 

इसी वायुमंडल में बसते 

भोलेभाले  कितने सरल 

अग्निअंश सूक्ष्मतम प्राण 

जलकण स्मृति को लिए 

क्या अब्भी समझना शेष 

अभी मेरा निर्वाण कहाँ !!


गहरा नीला अक्ष मंडल 

में ह्ल्के भारी नम कण 

बाँहों में भरे वायु-जगत 

'वायु' जो वाष्प से भीगी  

श्वेत जलज से जा मिला  

श्वेत श्याम हो बरस गयी

गड गड  झर झर करती 

वर्षा बरसी नवांकुर फूटे 

चहुँ हरियाली फ़ैल गयी 

अन्नफल से खेत भर गए 


छोटा/लंबा जीवन चलता 

जीवन ही जीवन हो जैसे

हमने जन्म लिया साथ में 

कर्मेक्छुक पुरुषार्थियों ने

पृथ्वी पे साथ सहचर बन 

अन्न खाया और जल पिया 


 खानपान में जीवन छिपा 

जल के कण जीवन-कण 

देह में प्रवेश पा जलकण 

भावो को तरंगित करते 

पूर्व सुरक्षित स्मृतियाँ देते 

मेरे विचार शब्द में गढ़ते 


मेरी देह की शिराओं में 

बसे सतत ये  रक्तकण 

समस्त स्मृतियाँ रक्षित 

मेरा व्यवहार सुरक्षित 

कर्म विचार संरक्षित

औ मैं निर्गुण निर्गयानी 

प्रकृति पूर्व सुनियोजत 

मैं सदा ही अनियोजित 

वो ज्ञान मैं नीरा अज्ञान


कर्म माया जाल में फंस 

प्राण छूटे श्वांस गयी तो  

अग्नियज्ञ में पांचो भस्म  

पृथ्वीतत्व राख हो गया 

जलकण वायु से लिपटा 

ऊपर को उठता गया 

सबने रूप बदले अपने 

प्राण मेरे आश्चर्य भाव में

वायु-तत्व क्यों वजनी है!


अग्नि-तत्व है वायु केअंदर 

दिव्यप्राणअग्नि मुक्त नहीं 

वायु में लिपटी भाप अभी 

जिसके कणकण में स्मृति

वायु भी अभी मुक्त कहाँ ?


अभी मेरा निर्वाण कहाँ !


नोट : ये सनातन धर्म से निकली शिव की तरफ  उठती हुई कविता है ,  यदि वैज्ञानिक सिद्धांत  के साथ धर्म और दर्शन का सूंदर मेल पाए तो अवश्य सराहे।  धन्यवाद 



आग हूँ पानी हूँ हवा हूँ  

राख हूँ या  के ख़ाक हूँ

आस्मान जंगल धुंआ हूँ 

पहाड़ हूँ नदी सागर हूँ 

झील बावड़ी पोखर हूँ 

सड़कें हूँ या मैं मकां हूँ

फूल हूँ  बाग़ की बेल या 

पंक के ढेर में पंकज हूँ 

पूर्णता में देश  की मिट्टी

ब्रह्म श्रृंखला का भाग हूँ 

अनिमेष नेत्र पलकें मुंदी  

आधा अधूरा शिवज्ञान हूँ 

कहाँ कहाँ , कैसे कैसे 

अलग करूँ खुद से मैं 

सब मैं हूँ , मुझमे सब हैं 

Wednesday 13 January 2021

पानी हूँ मैं


The poetry  based On own Water memory 


पानी हूँ मैं

पानी सा ही स्व-भाव रखता हूँ


पानी हूँ मैं

सात-रंग सात-आसमां हैं मुझमे


पानी हूँ मैं

सात-सागर समेट के रखता हूँ


पानी हूँ मैं

बार-बार पानी-पानी होता हूँ मैं 


पानी हूँ मैं

बूँद भर पानी से संवर जाता हूँ


पानी हूँ मैं

के बस पानी सा बिखर जाता हूँ


पानी हूँ के

अपने होने का हुनर जानता हूँ


पानी हूँ मैं

तभी रास्ता अपना बना लेता हूँ


पानी हूँ मैं

भाप हो के मेरा होना धुआं हुआ


पानी हूँ मैं

हौसले हैं तोही बर्फ घुल पानी हुआ


पानी हूँ मैं

दुर्गमराह पे बढ़ना आता है मुझे 


पानी हूँ मैं

जिधर भी बहता हूँ राह बनाता हूँ


पानी हूँ मैं 

अग्नि या बर्फ से, भाप ही परिणाम है 


पानी हूँ मैं 

जल की स्मृति-अग्नि से पिघलता हूँ मैं 


संग कुछ नहीं 

स्मृतिबूँद वाष्प कर साथ ले जाता हूँ मैं 


बादलों की ऊंचाई तक 

यही स्मृति-जल संजो बींध रखता हूँ मैं 


मेघ की ऊंचाई तक 

युगों तक स्मृतिजल संजोये रखता हूँ मैं 


तब ही तो

जल-स्मृति के कारन पुनः जन्मता हूँ मैं 


तब ही तो

जलस्मृति साथ पुनः जन्मता हूँ मैं


(तनिक हास्य से )


निर्वाण मेरा !

जलसमृति के पार जब जाता हूँ मैं 


पानी हूँ मैं

सात-रंग सात-आसमां हैं मुझमे


पानी हूँ मैं

पानी सा ही  स्व-भाव रखता हूँ मैं


🪔

Created - 12/01/2021

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