रंगों से सजा कोई इंद्रधनुष
खुशबु बिखेरती पुष्प श्रँखला
बहती हुई चंचल बयार कह देना
या के कहना लहराता नीला समंदर
या फिर मुझे फैलने दो छत्र सा
अम्बर के इस विस्तृत आँगन में
या फिर .. मुझको खो जाने दो
इन नीली अथाह गहराईयों में
पर.. मत बांधना ..मुझे भूल से
किसी एक के मत विचार से।
बिखर जाने दो मुझको सब में
या के समां ले मुझे अपने में।
Om Pranam

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