Monday, 7 April 2014

मत बांधना मुझको

रंगों से सजा  कोई  इंद्रधनुष 


खुशबु बिखेरती  पुष्प श्रँखला 




बहती हुई  चंचल  बयार कह देना 


या के कहना लहराता नीला समंदर 




या फिर मुझे  फैलने  दो छत्र सा


अम्बर के इस विस्तृत आँगन में 


या  फिर ..  मुझको खो जाने दो


इन  नीली अथाह  गहराईयों में 




पर.. मत बांधना ..मुझे भूल से


किसी  एक  के मत  विचार से। 



बिखर जाने दो  मुझको  सब में 


या के  समां ले मुझे अपने में।  


                                                      Om Pranam 

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