Monday, 7 April 2014

सखी ! ! मात्र-गर्भ की राह: (the Soul journey , backward to womb)


*सखी / आत्मा 


ॐ प्रणाम


जिस राह से आये थे हम चल लौट चले उसी राह से वापिस 
कहते है लोग पीछे लौटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।।

एक एक कदम उसी राह पे सधे कदमो से धीरे धीरे लौट चले 
वो ही मिलेंगे पड़ाव , उलझे हुए से रुकना नहीं , बढ़ जाना ।।

धीरे दोबारा वहीं पहुंचना गोद में सोते हुए उठना जागना खेलना 
माँ का सुलाना औ जगाना वो धीरेधीरे चलना गिरना सम्भलना ।।



फिर और थोडा सा पीछे जाना यूँ ही बिना रुके चलते चलते 
बिस्तर पे करवटे लेना , लोटना उलटना पलटना रोना हंसना।।

थोडा और पीछे चल सखी , इतना तो चल ली ..... थोडा और !!
देखो माँ की दर्द से छटपटाहट संसार में आने को तैयार तुम ।।

अब गर्भ में माँ के साथ जीवन जीती उसकी सांस से सांस लेती 
अंधकार और समंदर में तैरती उलटी पलटती बहती निरंतर ।।



देखो वहीं आ गयी फिर सहज सरलतम अपने घर की ओर
निश्छल निर्मल , देखो यहाँ से ये संसार दोबारा .. फिर सोचो !!

जिसको सीखने में सारी उम्र गवां दी ,वो यही, यहीं है मेरे पास
इसी सम्पदा के साथ चल,सखी !! लौट चले उसी राह से वापिस।। 

चल फिर जा पहुंचे उस उम्र पे , जहां से पलट के देखे दोबारा 
माँ के गर्भ और अपने जन्मस्थान को; और कहे बार बार ।।

सरलता सहजता प्रेम करुणा नहीं है इनका कोई विकल्प 
यही ध्यान, यही अभ्यास, यही साधना, और मूल उद्देश्य ।।

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