Monday, 7 April 2014

सूफी प्रेम ( कविता )





क्या नाम दू ..या ..के .. ना नाम दूँ 
कुछ कहु .. या ... के... कुछ ना कहूं 
इबादत_ ए_असर भी कम हो जाता है 
अक्सर इबारतों में ढल जाने के बाद 

चलो जाने दो ! यारों,....तुम अपनी कहो!
गर नशे में हूँ तो यूँ ही रहने दो मेरी दुआ 
नशे में सही ; नशे का ख्याल तो पूरा है |



its a Sufi Dance / Rumi Dance ; whose dancing inside continues ... in every lover's heart .



Picture courtesy : Artist Khusro Subzwari 

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