Monday, 7 April 2014

सखी री , देस में निराला मेहमान बसाया रे

आवभगत में जरा कमी न हो, चिड़िया  सा है चंचल 
बालक सा नटखट ,कोमल  पुष्प सा ,अग्नि सा प्रचंड  
सखी  री , मैंने तो  अंतर्मन में  ब्रह्माण्ड बसाया  रे  .... 

नरम मखमल का बिस्तर बनाया, फूलों  से महकाया 
अलग अलग कमरो में  अलग अलग साज सजाये
सुंदर मायावी  प्रलोभन खेल खिलोने  भी  बनाये 
फिर भी चपल  सुनहरा पंछी  उड़ने को तैयार  रे ..... 

जंगले जैसा महल बनाया जा कि  ऊंची ऊंची  दिवाले 
संकरी गलियां , चौड़े खम्बे ,चौकस सात  बहादुर सिपाही 
वा के अंदर  साकरी कोठरी जा में  प्रेम का दीपक बारा
सेवा करूँ दिन रात सखी री, राजा को भी दास बनाया  रे .... 

कैसे रोकू ! क्या करू ! जतन बूझ न पाऊँ  सखी री !
पता नहीं कब कहाँ से उड़ जाये वो पंछी अकेला 
सखी री , कैसा  अनोखा  निर्मोही मेहमान  बसाया रे ... 

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