Tuesday, 8 April 2014

खुदी के इंसान होने का अहसास हो गया...



its a story of Deceptiveness of settled water of Pond in which Moon reflect as real in disillusionment, and the moment of disturbances forms there ; in ripples it disappears .............

देखा जो उतरते हुए चाँद को अपने जिगर के.आंगन में ,
रक्स हो गया खुद पे की बरबा खुद  ही  ख़ुदा हो गया ....
अचानक एक पत्थर के..सतह पे..टकरा के गिरने से 

इंशाअल्लाह खुदी के इंसान होने का अहसास हो गया...

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