प्रेम और श्रद्धा पूर्वक जीवनदायी मां और मातृ-भाव को समर्पित
(release on 28 January 2019 onwards)
नब्बे वर्ष पूरे कर सकी थी
बस नब्बे की थी, मेरी मां
कृषकाय क्षीर्ण जर्जर देह
अपनी मां को सालों पहले
खोने के बाद वृद्ध हुई थी
और मैं पछत्तर की युवती
एक मेरी भी बेटी, युवा है
शायद मेरे कारन युवा है
मैं माँ के साथ जगमग थी
बस कंधे पे हाथ रख देती
पूछती स्नेह भर- कैसी हो!
और मैं भूल जाती पीड़ायें
आखिर ऐसा क्या जादू था
प्रेमबोल चेहरे का लोशन
झुर्रियां पड़ने ही नहीं देते
घने मेघ से केश दमकते
मैं सतत मुस्कराती रहती
मेरी आवाज में चहकन-
और मां गुनगुनाती रहती
मानो नदी बेसाख्ता बहे..
पर आज मेरी मां नहीं है
तो झुर्रियां चेहरे पे बढ़ गयी
आवाज मेरी मुरझा गयी
और बाल अनयस सफ़ेद
लहरों सी क्रीड़ा करती-
थोड़ी खारी और संजीदा
आज गहरा समंदर हुई मैं
मानो मुझे युवा रखने की
मां के पास कोई बूटी थी !
कुछ सोच मेरी बेटी बोली
नानी...आपके लिए मलाई-
बालों में मालिश का तेल थी
आप तितली सी सुन्दर हलकी
नानी आपके लिए सुंदर फूल
मां ! मेरे गालो की आप मलाई
और बालो के लिए मालिश तेल
मेरी छुट्टी तीरथ मिठाई आप हो
फिर जरा धीमे से प्रौढ़ा हो बोली -
हर मां के पास अक्षत यौवन देती
जादू की बूटी एक मां होनी चाहिए
मां! आपकी सेहत का वो राज थी
मेरी भी युवावस्था का राज आप हो
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