और तुमने यूँ कह दिया ; कि वक्त नहीं
जब से मिले हम सुनाते ही रहे अफसाना
वख्त फिसलता रहा ; हम पिघलते रहे
और तुम कहते ही रहे; कि वक्त नहीं
तुम मशगूल जश्न मानते रहे गैरों में
सिमटते रहे हम अपनी कोशिशों में
फिर एक और कोशिश सुनाने की
आज भी कहते रहे ; कि वख्त नहीं
सालों बाद भी तुम बदले न कोशिशे
और फिर वो ही कहा कि ; वख्त नहीं
फिर कहा गया वो मेरे लिए कोई गैर नहीं
फिर सुना मैंने कि तुम आज भी मेरे नहीं
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