Friday 18 May 2018

A North Indian Rural Marriage Folk - कनउजी कनउजी जनि करो बाबा ...

उत्तर भारतीय विवाह लोक गीत

A North Indian  Rural  Marriage Folk   




गीत 

कनउजी कनउजी जनि करो बाबा , तो कनउजी हैं बड़ी दूर 
अरे इ कनवाजिया  दहेज़ बड़ो मांगे 
तो तेरे बूते दियो नहीं जाए
 *****

कहाँ पइओ बाबा मोरे अनगढ़ सोनवा  
तो कहाँ पयियो लहर पटोर , कहाँ पईयो बाबा मोरे  सोने की चिरईया 
तो इ कनवाजिया को मोल
 *****

बाबा कहते है -
सोनरा घरे बेटी अनगढ़ सोनवा तो बज्जा के लहर पटोर 
ओ तुम तो बेटी मेरी सोने की चिरईया
तौ  ई  कनवाजिया  को मोल
 *****

अब  आगे बेटी मन में सोचती है -

माया ने दीन्हो है  अनगढ़ सोनवा तो बाबा ने लहर पटोर 
भईया  ने दिनों है चढान को घोडिला 
तो भाभी ने ढोली भरे पान
*****

माया का सोना जनम भर पहिनब, फटी जाईये लहर पटोर 
भईया का घोडीला मै सहर घुमाईहों, 
तो सड़ी जाईये ढोली भरे पान
*****




आगे और सोचती है  अपनी भावनाओं को समझती है , विदा के समय अंतिम पंक्तियों में बहुत मार्मिक और भावुक भाव है -


विवाह संपन्न हो गया अब  विदा की बेला है :


माया  के रोये से छतिया फटत है , तो बाबा  के रोये सागर ताल
और भइआ  के रोये से पटुका  भीगत है
तो भाभी खड़ी मुसिकाएँ
 *****

मां  और बाबा  , भइआ  के  साथ में भाभी भी  इस भावभीनी  विदा की बेला पे क्या सोचती है -

माया कहें बेटी नित उठी आयो  तो बाबा कहे  छठे मॉस 

औ भईया कहें बहिनी काम औ काजे 

तो भाभी कहें काह काम
******

The End  of  folks 

कनउजी कनउजी जनि करो बाबा , तो कनउजी हैं बड़ी दूर 
अरे इ कनवाजिया  दहेज़ बड़ो मांगे 
तो तेरे बूते दियो नहीं जाए 

सन्दर्भ-

त्तरभारत में दो मुख्य ब्राह्मण समुदाय कान्यकुब्ज ( गंगा नदी के पार बसने वाले )  और सर्यूपारिणी (सरयू नदी  के पार बसने वाले )  इन दो मे से भी ये गीत खास कर कान्यकुब्ज समुदाय में विवाह समारोह में महिलाओं की ढोलक मंजीरे के साथ खासा प्रचलित है 

References - Two of the main Brahmin communities Kanyakub (across the river Ganges) and Sarayuparini (settling across the Saryu river) in North India, among these two especially in the Kanyukub community, this song is very popular with the dholak Manjira In marriages

लोकगीतों की खूबी है की वो समुदाय की अच्छाईयां और बुराईयां  गीत में गा के कहते हैं , सो इसमें भी यही है , विवाह योग्य  एक बेटी अपने पिता से पूछती है  कई सवाल , दहेज़ से सम्बंधित 

It is the fame of the folk songs that they are called in the songs of goodness and evil of the society through the song, so this is the same in this, a marriageable daughter  asks her father, many questions, related to dowry and  worried how her father  arranged all 

 बाद के  गीत बोलों में वो अपने भाव प्रकट करती है  सम्बन्धो की वास्तविकता को लेके , मां का प्रेम कितना पवित्र है उसके लिए , कितना शुद्ध है  पर पिता उससे  थोड़ा कम है  , मां  की निश्चलता के आगे पिता की एक डिग्री  फीकी है  और भाई की और कम  जबकि भाभी की शून्य,  जो उनकी भावनाओ में उनकी सोच में  उनके उपहारों के चुनाव में  दिखता भी  है 

In the subsequent song lyrics, he expresses his feelings, taking the reality of the relationship, for how much the love of the mother is pure, how pure it is, but the father is little less than that, a degree of a father is faded and the brother's less  from her father and brother's wife have  zero-effection  so all reflected  in their  emotional dealings and wishes 

स गीत में  परायी हुई नहीं  पर होने जा रही बेटी की संवेदनशीलता  बहुत सुन्दर ढंग से उभरी है , जहाँ उसे पल पल  लग रहा है  की इस विवाह की रस्मअदायगी के बाद वो विदा कर दी जाएगी।  और फिर... 


In The song, She is in her parental home, but the sensitivity of the daughter going to be very beautiful has emerged, where she is feeling the moment that the marriage ceremony will be done after she handed over to In-laws and then...

उसको अपनी मां की भावना भी छू रही है  जहाँ उसे लग रहा की मां सब जानती है  लोकाचार के बारे में  और इसीलिए वो उदास भी है , वो चाहती हैं की मैं उनसे रोज मिलने आऊं ।  पर मेरे पिता चाहते है  छह माह से पहले नहीं आना चाहिए , और मेरे  भाई तो कहते है  काम काज हो तो आ जाना  बार बार क्या आना , ....भाभी शायद  इतना भी नहीं चाहती  इसलिए वो सिर्फ मुस्करा के रह जा रही है .....

She is also feeling, the intuitive-feeling of her own mind, where her mother feels the reality of everything, her mother knows about ethics of society and that is why she is also very sad, She wants me to come visit her every day. But my father does not want to come before of six months, and my brother says that if I can come in marriages or festivals then will be good and Brother's wife wants even then no need to come.. better to stay in husband's home, so she is just giving Smiles.

enjoy !!

प्रणाम 

Monday 7 May 2018

विरोधाभास - मानो या न मानो



[महाध्यानी वो ज्ञानीयोगी ये और हमध्यानी ]


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शिव के जब दो नेत्र खुले है जब तीसरा कहाँ खुला होता है
तीसरा नेत्र खुलते ही, वे दो स्वतः महाध्यानी के बंद होते है



ये जागृत आधे पे ठहर गया आधेआधे में सौदा पक्का हुआ
दो नेत्र ज्यूँ आधे बंद हुए, तीसरा उतना ही स्वतः खुल गया


संकेत ही संकेत, मुझ से शिवा तक, आधे खुले पूरे ढके भी
ज्ञानीयोगी अर्धबंद अर्धखोल पाते, हम मूँद करही खोलते है


जानो जब आँखे बंद किये हैं तब अपनी आँखे खोले होते हैं
जब हम मौन में होते है तभी हम, असल बात करते होते है


धूनी लगा बैठ गए हों, तब ही हम लम्बी यात्रा शुरू करते है 
वधु लम्बे-घूँघट में ! तो उसका अनावरण वहीँ शुरू होता है


मृतदेह मुँह तक ढांप एक श्वेतवस्त्र पहनाने की रस्म यही है
ये अध्याय समाप्त हुआ अगला जीवन अध्याय शुरू होता है 

ॐ प्रणाम 

© लता  
१२: ४० दोपहर 
७ / ५ / २०१८