Monday 27 April 2020

चलो! यादों की सांकल खड़खड़ाये



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गर्जते शोर करते बिजली चमकाते


पहले उदास ऐसे स्याह बादल न थे



बड़ा मायूसी का आलम चारो ओर


हवाओं में उदासी का रंग घुल गया



खुला आसमान परतों में कैद हुआ


बचपन भी एल्बम में छुप बैठ गया 



रंग बिखेरे लम्हे से क्युँ उम्मीद करें 



ऐसा करें सितारे काढ़ ओढ लें हम! 




माना; हजारों नहीं उनमे कोई एक 


चलो उसी कोअपनी पतवार बनाये



अभी किल्कारी भर छलांग ले साथ


दो पल पीछे जा, झरने से ठंडा जल



रंगीं तितली संग चिड़िया की बोली


खुशबूदार फूल आँचल में भर लाएं



चलो! यादों की सांकल खड़खड़ाये


स्वप्नों में कैद हुए जो पल छुड़ा लाएं


Lata 27-04-2010
01:37:pm

Thursday 23 April 2020

क्षमाक्क्षमाक्क्षमा



निराकार से साकार, या साकार से निराकार कहूं

अधूमिल सत्य तुम्हारा है

करोड़ों सूर्य परिक्रमा करते अथक जिसकी सर्वदा

ज्योतिर्पुंज रुप  तुम्हारा है 

जिनकी विशाल देह के सूक्ष्म-बिंदु भाग में वसित 

 हमारे भू अक्ष सौर हैं 


लाखों धरती समेटे तुम अनेक आकाशगंगाधारी
प्रचंड सूर्य पुरुष तुम 

किस मुँह तुम्हारी भव्ता कहूं इन नैनो से न दिखे 

आकृति निराकृति तुम्हरी 

तुम्हारी भाषा समझूँ, किस मुख कहूं, सूक्ष्मअनु  मैं

संज्ञानी  ऋषि नहीं हूँ 


किन्तु वेदो की उत्पत्ति सन्दर्भ गहराई जान चुका

परन्तु ज्ञानी नहीं हूँ 

चराचरसृष्टि में साहसी कृतध्न मनुज तुम्हारी संतान

हे! देव देवी क्षमाक्क्षमा

महाशक्ति स्वामी श्री भगवती समेत श्री भगवन नमः

शीर्षः क्षमाक्क्षमाक्क्षमा

कैसे कहूं जन्म ले क्या क्या अक्षम्य अनर्थ नहीं हुए

आकंठ ग्लानियुक्त हूँ 

मृत्यु तांडव,दसों दिशा में पुनः  दसमुखी उत्पाती हो 

उलझा अधर्मजाल में 

अक्षम्य अपराध बोध शीश झुका तुम्हारे सम्मुख खड़े 

पाहिमाम देव पाहिमाम  



अल्प बुद्धि मैं मानव क्या समझ समझूँ क्या समझाऊं 

सुमार्ग सुमंगलआप सुझावो  

विधिना खेल, माया के जाल, नाथ अशक्त गुहार करूँ 

प्रभु ! कैसे शुभता को पाऊं 

घोरबवंडर गल्प हो रहे जीवन काल की चाल न समझुँ

देव करो क्षम्य मेरे अक्षम्य 



Monday 20 April 2020

किताबें


किताबें कहाँ सच झूठ बोलती हैं
ज्ञान की माननिंदा में उलझती हैं
इन्हे खंगाल निकालते झुठ और
किताबों के तो सच भी तुम्हारे हैं
बंद ताले से ये स्वर्णकुंजी देखे हैं
सम्भव बंद द्वार तुमसे खुल जाएँ
इसी से सदी से मौन चुप किताबें
पन्नो के बंद राज तुमपे छोड़ती है
जीवन का बोध कराती किताबें हैं
योगकर्म सन्देस देती ये किताबें हैं
प्यारी बहुत सुनो ! निष्प्राण नहीं हैं
ज्ञान भगीरथ से नहायी किताबें हैं

Sunday 5 April 2020

सच ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं




सच ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं 
वन्य जीवन में आदम वनजीव होता है 
भूख भोजन प्यास नींद और कामाचार
संतान जन्मती वन्यस्त्री उससी होती है 
के उसकी चेतना बोली- तुम चैतन्य हो 
महाचिंत-मनुष सहसा देव बन बैठता है

और जा बैठता ज्ञान की उत्तंग छोटी पे 
इकोर अज्ञानता की धुंध घाटी में फैली 
ऊपर उन्नत स्वच्छ अक्ष पसरा होता है
शिवसम लटें खोल गंगधारण करता है
शीतल जलधार से ज्ञान प्रसार करता है 


संग्रह में वृक्ष से प्राप्त भोज-पत्र होता है  
इंसानी यौगिक-बुद्धि की  सोच होती है 
बैठक बैठ दवात कलम हाथ में लेता है  
कलम-नुक्की से उतर  'सोच'  बहती है
तब जा लेखों में कई कथायें उभरती हैं  

ताम्रपत्र के ऊपर ठढे मेढ़े अक्षर बनते
शिला पे लेख बन कुछ शब्द उभरते हैं
कुशल कारीगर के छेनीहथोड़ी मार से
उससे पूर्व उस  'सोच' के बारे में सोचो
जिसके अभ्यास और तप गहरे होते हैं 

तो अब किताब के बारे में सोचो तनिक 
मौन किताबें बहुत कुछ कहती हैं तुमसे 
इस विषय या उस विषय की बातें करती
तकिया, सपने, तो कभी आस ये किताबें 
सदा तुम्हारे पास रहना चाहती किताबें हैं 

कभी युगीन-साहित्य, कभी कथा-शास्त्र 
कभी भाव की गीतमाला कभी संगीत हैं 
गरुगंभीर गुरु हो चित्ताकाश में उड़ती हैं
कभी विज्ञान हो प्रमाणअम्बर में ले जाती
युद्धलहु से भीगीं कभी तितली किताबें हैं 

चहकें चिड़िया सी ये,  कभी बम की दहक
कभी तितली से उड़ते भाव इनमे, तो कभी 
जिंदगी बन अपने सामने दर्पण सी खड़ी है 
रेत, खेत, जंगल, झरने सी निर्झर, फूलहार
रॉकेट कभी उल्का कभी ब्रह्माण्ड किताबें हैं 

प्रमाण को प्रमाणिकता, कल्पना को उड़ान
रागी को राग, विरागी को वैराग्यपाठ दर्शन
खोजी को खोजसूत्र आलसी को प्रमाद देती
कला को कौशल कर्मयोग को कर्मपथ देती 
खजाने खोल के बैठी, तुम्हे जो चाहिए ले लो

सागर से गहरी आसमां से ऊँची ये किताबें
कल, आज, कल की बात करना चाहती हैं
नक्षत्रों का उजाला पाताळ का अँधेरा इनमे 
मौन हैं ज्ञान का सागर हैं ये वाचाल किताबें 
सचझूठ के खेल तुमपे छोड़ती ये किताबें हैं 

सावधान करती प्रकति के नियम कहती हैं 
कभी तुम्हारे होने की ही खुदाई कर देती हैं
भोली हैं सरल और प्रचुर खदान हैं किताबें 
तब आ के मिलता तुमसे नया रूप तुम्हारा 
तुम्हारे पास रहके कुछ कहती ये किताबें हैं 

हमसे बनी हैं बिलकुल हमारे ही जैसी हैं ये
कभी इतिहास कभी भूगोल कभी वाणिज्य 
कभी नर्तन कभी तांडव कभी मंगलगान हैं
हजारों विषय और सैकड़ों कथाएं रुचिकर  
कभी कला कभी दर्शन का सार किताबें हैं 

क्या तुम समय निकाल सुनना चाहोगे इन्हे?
निःसंकोच...अकेले सुनना, अकेले काफी हो

तो जाओ न ! खंगालो अपनी बंद अलमारी 
झाड़ लेना बरसों जम गयी जो धुल इनपे है
इन्हे ले के बैठना अपनी साफ़ सी बैठक में 
या  निकल जाना बाग़ के पेड़ की  छाया में
कोई कॉफी हॉउस एक कुर्सी और किताब

मोहल्ले का कोई एक उपेक्षित पुस्तकालय 
जा बैठ जरा वख्त बिताना सीखना सिखाना
फ़िलहाल किताबो के लिए इतना काफी है
फिर न छूटेंगी नदी किनारे या सागरतट पे 
या हो गाडी का डब्बा, या जहाज का सफर 

एकांत में तुम्हारा अद्भुत संसार बसाती हैं 
नैराश से निकाल आशा के स्वप्न सजाती हैं 
उम्मीदों की सीढ़ी बन एक एक पायदान हैं 
सुनो! ये अंतिम उपलब्धि भी तुम्हारी नहीं हैं 
बंधन में बाँध तुम्हे मुक्त करती ये किताबे हैं 

क्रमश:क्रम में किताबें बहुत बाद आती हैं
सच है ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं 

Friday 3 April 2020

आस्था के दीप

आस्था के दीप
Lamp of Faith



सुनो ! ये आस्था के दीप से दीपमलिका बनाने की बात है 


कुछ तो इस सोच के पीछे... सोचो ! क्या बात है

एक एक जीवनऊर्जा का महत्त्व जिसमे रहता है

बूँद बूँद  से सागर बने , ऐसी...आस्था की बात है


एक एक जीवशक्ति महाशक्ति का संगमस्नान है

ऐसी अलौकिक 'एक' महा-शक्ति का संयुक्त होना हैं

तुच्छनराधम रक्तबीज-देवी का वैश्विकयुद्ध कहते हैं

रक्तबीज नाश करती शक्ति ये देवी दुर्गा की बात है


एक एक जीवनशक्ति से महा-शक्ति का दर्शन है

ऐसा भारत का दर्शन है, अभूतपूर्व दृष्टिदर्शन है

एक एक शक्ति एकजुट हो  बने एक महाशक्ति  

महा शक्ति से  फिर उसके ईश्वर होने की बात है


कुछ तो इस सोच के पीछे... सोचो ! क्या बात है

एक एक जीवनऊर्जा का महत्त्व जिसमे रहता है

बूँद बूँद से सागर बनता ऐसी...आस्था की बात है


एक एक जीव शक्ति महाशक्ति का संगम-स्नान है

शक्ति महाशक्ति ईश्वर का विराट्स्वरुप समाया है

अब हमारी बारी है अब उचित चिंतन का आग्रह है


शक्ति महाशक्ति ईश्वर का विराट्स्वरुप समाया है

अब हमारी बारी है अब उचित चिंतन का आग्रह है

उसी शक्तिपुंज दीप के प्रज्ज्वलन का आह्वाहन है

हर दीप के ज्वाला में समायी महाअग्नि की बात है


लौ से निकलती हजारो प्रकाश किरणों की बात है

उनमे से भी सिर्फ एक किरण, उस्पे सवार हो बैठी 

मनुष्य की चेतना करती तमस को पार, की बात है

अभूतपूर्व सोच दर्शन नतमस्तक हो मन की बात 


हृदयदीप प्रज्ज्वल हो तुम बस विश्वास जगाने की बात है

महाशक्ति के निज महाविराट रूप दिखाने की बात है 

हमारी तुम्हारी बात है ये हमारे ऊर्जा संकल्प की बात है

सुनो ! आस्था के दीप से दीप-मलिका बनाने की बात है


सुनो ! ये आस्था के दीप से दीपमलिका बनाने की बात है
 
अमावस के  अँधेरे, मिल-जुल दिवालीपर्व मनाने की बात है