Saturday 28 November 2015

मान बैठे है




सब वो कथानक संकेत चिन्ह ही तो है
जिन जिन को आप असलियत में सच मान बैठे हैं 

पात्र भी आपके संगीत भी आपका ही है
चलचित्र के चलते किरदार खुद को सच मान बैठे हैं 

और मायावी सच के आतंक तो देखिये
पटकथा लिखते लेखक पे 'चरित्र' कुंडली मार बैठे हैं 

किसने कही किसने सुनी दादा दादी की
सतरंगी इन्सां इन मायावी तरंगो में घर मान बैठे हैं 

Wednesday 25 November 2015

न कीजे



नजदीकी झरोंखो से, खंडहरों का दीदार न कीजे
कायनात के इशारों को इतना हल्का भी न कीजे

नदी-धार में बहाव, आकर्षण संग, खिंचाव भी है
पुल मध्य खड़े इस खिंचाव को महसूस भी कीजे

मध्यस्थान कहे खिंचाव जुड़ाव यहाँ-वहाँ अटका
कुछ साथ आएंगे यहाँ से कुछ साथ छोड़ जाएंगे

धुंध के साये है गहरे, आसानी से कुछ न दिखेगा
इसपार से खड़े है तो उसपार का अंदाजा न कीजे

मुड़ मुड़ के न देखिये यूँ हसरतों से उन्हें बार बार
ये रास्ता आधा ही चले आप आधा अभी बाकी है

उसपार से पलट देखेंगे राह खुद अपना पता देगी
यूँ अटकलों का बाजार, अफवाहों से गर्म न कीजे

Monday 23 November 2015

स्पंदन




झंकृत  तरंगित हो स्पंदन जीवन का 
हर क्षण एक युग, युग होता क्षण सा 

क्षण क्षण पल पल में बहता धक धक  
उम्र के, हर इक दौर को कहता चलता  

वो अनुभव अमृतकण सा कंठ सींचता 
ह्रदयमध्य शीतल बूँद से धुला हुआ सा

सोच-मोच से परे विश्व ठहरा योगी का 
स्वक्छ ह्रदय हुआ ज्यूँ  नील गगन सा 

न इसकी कह न उसकी सुन राह एक है 
रे विज्ञानी! तू हो इक बार ज्ञानवान सा 

Sunday 22 November 2015

आवर्तन






सूक्ष्मतम की बात करे , या महत्तम की
आवर्तन आच्छादित हृदयस्थल मैं का  

श्वांस से सूक्ष्मतम आत्म तत्व  है मेरा
श्वांस श्वांस आवर्तन ही लेता देता तन

आत्मतत्व ही जो ठहरा हुआ बृहत्तम में
प्रत्य्आवर्तन विधिलेख पुनःवापसी का

तो कहाँ से शुरू करे समझे आवर्तन फेरे
अनगिनत है शब्द अनगिनत उनके घेरे

आओ बैठो ध्यान धरो, हे मौन सन्यासी
व्योमस्थित प्रकाशबिंदु की सुनो उबासी  

क्यूंकि व्योम ने पाये है घूमते स्व धुरी पे 
अनेकानेक नित उदय होते कणसम खंड 

व्योम से जुड़ के मेरे " मैं " ने पाया नित्य 
कभी न नष्ट होते रूप बदलते स्वरूप को।  

Saturday 21 November 2015

फिर



आज " फिर " गप शप मूड  बना है
एक एक सिप चाय की चुस्की संग
आओ , मानव !  तुमसे फिर तुम्हारी ही बात करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

पुराने  दौर के  वो पुराने मानव थे
नए ज़माने के तुम नए मानव हो
विकास की ये कथा आओ युग को समर्पित करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

तेज था और है वीरता थी और है
ओज का संजोग वैसा ही प्रखर है
अर्पण समर्पण कथार्पण आओ आज फिर हम करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

प्रतिस्पर्धा थी प्रतिस्पर्धा आज भी है
गुणदोष भी वैसे , हे ! विकसित पुरुष
फिर  बदला क्या है ! बैठ जरा चिंतन हम फिर करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

कृष्णा  राधा का पवित्र सौम्य  प्रेम
मीरा का भक्ति डूबा समर्पित भाव
अग्निजन्मा द्रौपदी से महाभारत संग्राम , विचार करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

शिव का मोहक गीत या रौद्र संगीत
सुकुमारी देवी से रक्तबीज सम्बन्ध
अथवा आदिदेव - देवी सा युग्म चिरन्त चिरप्रेम करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

मदांध बढ़ता संरचना मिटाता जाता समूह
एक होशोहवास का दावा करता , उन्मादी !
एक दिलों में प्रेम फैलाये, माली बीज से प्रेम व्यव्हार करें  !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

युद्ध की टंकार या प्रतियोगिता की पुकार
"लोकः समस्ताः सुखिनः भवन्तु " का भाव
फिर क्या बदला ! आओ बैठ , मानवता का व्याख्यान करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------

आज " फिर " गप शप मूड  बना है
एक एक सिप चाय की चुस्की संग
आओ , मानव ! तुमसे फिर तुम्हारी ही बात करें !

आज " फिर " गप शप मूड  बना है -------------------------


Wednesday 18 November 2015

पन्ने पे लिखी स्याही की इबारत पे न जाना

बात जरा सी, ये तरंग  की है 
छूना, देखना, सुनना, कहना 
समझना तारों की झंकार को 
स्वर लहरी में मत खो जाना !
पन्ने पे लिखी स्याही की इबारत पे न जाना
वो तो दिमाग में उपजे मात्र विचार प्रवाह है
साफ़ खाली रास्तों पे , ज्यूं  पूजा थाल लिए
मंदिर को धीरे से स्वतःपुजारी बढ़ जाता हों
तरंग जलस्नानित भावशब्द कागज पे फैले 
मानो वांछित पुष्प प्रिय को समर्पित हो गए .....

( किन्तु मन में भाव समर्पण नहीं पूरा सा )

ज्यूँ  हृदय में चक्रवात मंथन उमड़  रहा हो
नैसर्गिक सुगन्धित पवित्र स्पष्ट सरल भी 
" मैं " कलम स्याही से भर चलने लगता हूँ
संग्रह होते से  बेखबर ऊर्जा आज्ञाकारी बन
कैसे अद्भुत दृश्य  उपस्थित  करती जाती
मैं  कठपुतली सा नृत्य मंच पे करता जाता…

(किन्तु फिर भी क्षोभ  नृत्य  नहीं अनुकूल )

अप्रतिम सफ़ेद  कोरे  अनलिखे  कागज पर
इस उठते चक्रवात में अजब ऊर्जा का संग्रह
क्या कहूँ  क्या नाम दूँ  निःशब्द हूँ, मौन मै
पर  मेरी कलम की स्याही का स्रोत  यही है
नहीं जानता कौन है जो यहाँ हिलोरें लेता है
वो स्याही बनके कोरे कागज पे है जो बहता ……

(किन्तु मन में  दर्द  अपने ही अधूरेपन का )

पर  उभरता अर्थ  कुछ और ही बन जाता है
न वो  सरलता  न वो  महक  न वो ताजगी
कुछ वैसा नहीं गहराई में वो उभरा था जैसा
फिर भी  जो उभरा आप ही पवित्र बन गया
व्यवस्था और आचरण का प्रतीक बन गया
पते की बात एक छूना तो अंतर्धारा को छूना ....

( मानव जीवन सम्पूर्णता को तू पा लेना )

मुसाफिर तुम दूर राह के, मैं साथी सहचर हूँ
स्याही से लिखी इबारत ओ कलम छोड़ देना
मन्त्रों से सूत्र मांग, श्रद्धा प्रेम मोती पिरोना 
तत्क्षण पूर्ण देहाभिमान कर्मगठरी को छोड़
चल पड़ना अंदर  को , भयरहित जाना गहरे
चक्रवात अंदर, घूमते ऊर्जास्रोत से मिल लेना……

( ओम  तत्सत  नमः ,  ओम  ओम ओम )


ओम प्रणाम 

Sunday 15 November 2015

सिर्फ़ उस माली को सब पता है





सिर्फ़  उस  माली को पता है
अनमोल मिट्टी गुण मूल्य सहित
तेजस सूर्य के धुप छाँव के प्रिय खेल
आंकलन कृषिदृष्टि बीज का भविष्य
जल का संचय आगमन  बहाव युक्त
निर्गमन के रास्ते बनाते सुदृढ़ कटाव

सिर्फ उस माली को पता है
खादपानी समय पे समयबद्ध जरूरतें
स्वस्थ गुनगुनाते नृत्य संलग्न ये पौधे
घेराव   के   निमित्त  बाड़े  की   जरूरतें
लम्बाई   चौड़ाई  गहराई   की  सीमायें
बीज रोपने को  कुदाल से गहरी  खुदाई

सिर्फ़  उस  माली को पता है
बीज को सब का पूर्व आभास  कहाँ है !
गर्भदेश में अंकुर फूटते जीव जन्म का
उसे आभास कहाँ कुसुमित पल्लव का
पल्लव भी अनजान अपनी  ऊंचाई से
वृक्ष बेखबर अपने अंदर की न्यामतों से 

सिर्फ़  उस  माली को पता है
बीज से वृक्ष में परिवर्तित कांटे फूल फल 
काँटों को आभास नहीं चुभन से पीड़ा का
फूलों को पता नहीं , उठती हुई सुगंध का
फलों को आभास  नहीं बीज-शक्तियों का
अपार जलनिधि अंजान  गर्भ निधियों से

सिर्फ़  उस  माली को पता है 

हाँ !  पूर्वनियोजित  बीज का वृक्षव्यवहार 
मौन हो  द्रुतगामी  मंथित-कुंठित मनराज 
बैठ पलभर अपनी बगिया मनमाली के पास 
निराई की तरकीबें और क्यारी की बाड कथा
बहुमूल्य  धैर्य की गाथा, सुनो उसकी जुबानी 

क्यूंकि ; उस  माली को सब पता है !
वो माली  बस बित्ता की दुरी पे स्मित हो बैठा
मौन धैर्ययुक्त  चिरप्रतीक्षित उस राह पे खड़ा
बस एक कदम ऊपर को  उसका ठिकाना बना
पहचान  सको  तो  पहचान बना लो पुकार लो
यही जीवन का तंत्र मन्त्र अध्यात्म, और क्या !

Wednesday 4 November 2015

पूर्ण का संपूर्ण परिचय संघर्षपूर्ण है



पूर्णमदः पूर्णमिदं 
पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णश्य पूर्णमादाय
  पूर्णमेवावशिष्यते ॥


1- दिल और दिमाग 

    दो शख्सियत हावी 

    दोनों ही कलाकार 

    पूर्ण का संपूर्ण परिचय संघर्षपूर्ण है 


2- एक वार करता है 

    दूजा दवा करता है 

    एक टुकड़े कर्ता है 

    ये जोड़ का कार्य गजब करता है 


3-एक वानर प्रजाति

   माला तोड़ता फिरे 

   गिरे मोती माल के 

   दूजा पीछे चुपके से पिरो जाता है 


4-एक शातिर गजब है 

   आगे चालें चलता है 

   इक माहिर लेपन में  

   पीछे से लीपापोती करता जाता है 


5-इन दोनों को निकाल

   बाहर रखदो इक बार 

   डोर थाम हाथ देखो !  

   कठपुतली नृत्य कैसे होता जाता है 


Om pranam



And summery / essence  to friends of other language in english is :- 

 0- Top of top  is Ved-vakya ( vaidik saying ) which  indicate  the completeness is  vast as universe  and as narrow as water drop / sand grain . and  while moving  in search of completeness gradually get left only completeness . 

1- Among two complete entity within one body, each one is complete within self , one is heart (emotions) another is mind (logic) and Intro given by themselves is collisions  reason of conflicts , nothing else  . 

2- One is attacking another is bandaging , one is given pieces and other is given joints to the
m . 


3- One is alike monkey who break beads and other is threading on thread again . 


4- One is clever who take leads in moves other is master in swipes . 


5- Once you able to comes out of both , than viewer you may able to see with joy the dance of puppets