Monday, 7 April 2014

फिर तुम्हारा ह्रदय न कांपेगा

फिर तुम्हारा ह्रदय न कांपेगा
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मध्य में  विश्वास  स्वयं पे 

प्रेम की ले डोर........ थाम 

हरा  रंग  डाल करुणा का 

और  गेरुआ  आभार का 

चल पड़ो सफ़र पे पथिक 

सर पे  अपनी गठरी उठा 










न पूछो किसी से  रास्ते का पता 

रास्ते  खुद मंजिल का  बयां होंगे 

गर  कोई मेहरबान मिल जाये

फिर वो मित्र  हो  या सम्बन्धी  

दो , सप्रेम  धन्यवाद   प्रभु का 

उस  क्षणिक  साथ के लिए .... 












श्रध्हा  हो तुम्हारी  श्रध्धेय   वास्ते  
या तुम में  श्रध्धेय नाम जुड़ जाये 

माया के  किसी भी  जाल में 

स्मरण  रहे  यह  सत्य सदा  ! 

नाम  पद  मायाजनित ठिकाने है 
मंजिल  सबकी फिर भी  एक है 









फिर तुम्हारा ह्रदय न कांपेगा 



ॐ प्रणाम

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