Monday 30 January 2017

"जब जब उनको कहती हूँ, खुद को ही दोहराती हूँ"




"जब जब उनको कहती हूँ, खुद को ही दोहराती हूँ"
Each time I ask regarding them, repeat only yourself 

1
गहरी घाटी विस्तृत सागर फैलेफैले उन्नत परबत 
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

Deep Vally Wide Ocean Spread high Mountains
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  

2
झरझर झरने कलकल नदिया नीला गहरा अम्बर
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

Gurgled Waterfall Purly rivers Blue recondite Sky 
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  

3
रिमझिम बूंदे,हंसते उपवन,दृश्याभिराम इंद्रधनुष
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

Tinkle Raindrop Jouful Garden Breathtaking rainbow
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  

4
झांझर झन्कृत है गीत मुखर संगीत सजा साज पे
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

Anklet sounds, Song loud, Raga ornamented on Instrument 
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  

5
रंगों की होली, टिमटिम दीपक, बदलते रंगरोगन
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

Spring of colors twinkle lamp quickly converted coat-colors 
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  

6

कामिनी मनभावनी गरिमामयी है हृदय-स्वामिनी
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

Beautiful Gorgeous Gracious She is prime ruler of Heart 
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  

7
बाल सुलभ क्रीड़ा में जब नन्हा हृदय छलकता है
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

When little Heart of her get spills with childlike play 
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  


8
किलकारी, चहक कलरव, अमोद सौम्य मुस्कान
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हू

Babie's shriek, Cuckoo Sound, playful BenignSmile 
Each time I talk regarding them, repeat only yourself  

9

सरस्वती, रिधिसिद्धिधन लक्मी, रक्षणी नवदुर्गणी
जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ

Wise prayerful-yogini prosper protector Nine form of Durga 
Each time I talk regarding them, repeat only yourself 

10
अंकुरपल्लव संग ऋतुबसन्त देता आवृति-निमंत्रण

जब जब उनको कहती हूँ खुद को ही दोहराती हूँ
Spring Season of blooming buds Invites repetitively
Each time I talk regarding them, repeat only yourself 


30/01/2017 (translation by 16 - 03 - 2017)

© Lata Tewari

रत्न बांसुरी



हमारा अंग अंग रोम रोम,
भगवान है
कन कन पसरा तन्त्रजाल,
विधान है

शिरा फैलाएं जाल अपना,
जीवन को
दौड़े *
1धमनी में लाल रक्त,
जो प्राण है

चार मिल सींचे हृदयांगन -
फुलवाड़ी को
पञ्चवि उर्ध्वमुख वो सुषम्ना का,
ताज है

बांसुरी सी *2धमनी सात स्वर,
छिद्र युक्त
जिसमे, जीवन गीत-लय-सुर-
ताल है

रत्न बांसुरी में फूंक मारे,
प्राण सरगम
आदिगीतकार का योजित,
शंखनाद है

*धमनी = 1- केंद्रीय रक्तनलिका,2-धौंकनी (मेरु)

मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्नः

मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्नः

मतिर्भिन्नःते गतेर्भिन्न्ह

गतेर्भिन्नः सा ते भिन्नः
सा एव्म ज्ञानम भिन्नः


ज्ञानं तेव जीवेत भिन्नः
जीवं भिन्नः मतिर्भिन्नः

मतिर्भिन्नःते गतेर्भिन्न्ह


© Lata 
22 - 01 2017

Sunday 15 January 2017

कुछ ऐसा लिख !



कुछ ऐसा लिख ! जो गीत हो
कुछ ऐसा कह जो संगीत हो 
रचे कुछ सुंदर कुछ शुभ हो
ऐसी सुगंध तेरे उपवन में हो

( उपवन = मन )

कुछ ऐसा देख कवि छंद हो
कुछ ऐसा सुन कर्ण प्रिया हो
मलय राग समस्त बाग में हो
चिररूप युक्त मलयाचल हो
( चिररूप युक्त मलयाचल = दृढ देह चित्त का स्वामी )

ऐसा कह जो गतिशील न हो
योगी अटल अचल समर्थ हो
मन्दिर में जब हो पूजनबेला
दीप लौ स्थिर , मन शांत हो

प्रलय तो है ही अंत में इसके
किन्तु पंक्ति सृजनअधार हो
कुछ ऐसा लिख! जो गीत हो
कुछ ऐसा कह जो संगीत हो

© Lata 
15 / 01/ 2017 

Friday 13 January 2017

" थोड़ा ठहर जाओ "



दौड़ते-भागते को यही कहना 
काफी है - " थोड़ा ठहर जाओ "
कभी थका हुआ भाव मानेगा 
कभी उसका युवा भाव भगाएगा , 
जहाँ कण कण गति में हो , 
वहाँ ये अनमोल भाव देती- 
वो मां अच्छी है ,
वो गुरु अच्छे है ,
वो मित्र अच्छे है,

वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा

वो घर अच्छा ,
वो प्रिय का साथ अच्छा ,
वो कमरा अच्छा ,
वो बिस्तर अच्छा ,
वो हौले आँखों में उतरती
खुमारी संग नींद अच्छी
उस नशीली खुमारी संग
वो कुर्सी अच्छी ,
वो चाय का कप अच्छा ,
वो चुस्की अच्छी !
वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा 


जहाँ खुले आकाश नीचे 
टिमटिमाते  जुगनुओ संग 
दसों दिशाए सहलाएं 
जहाँ रुपहले रेत के कन 
भीगे , मद्धम लहरो से 
शीतल , तन को छू जाएँ 
जहाँ मखमली हरी घास 
सुगन्धित रंगीन पुष्प 
देह को सजाएँ 
जहाँ  घने बृक्ष की छाया 
और बयार बांसुरी बजाये
वो सुकून अच्छा
वो पल अच्छा

और कौन अच्छा !
ये सुनना के " थोड़ा ठहर जाओ "


© Lata
१३ / ०१ / २०१७ 

Wednesday 4 January 2017

क्योंकि मनुष्य है तू।

चूँकि , चुनाव नहीं संभव हर कदम
चुनावरहित स्वीकृति है ,
मार्ग कोई भी सरल सहज रहो
सतर्क रहो , पथिक !
मनुष्य ही कह सकते है 
एक दूसरे से ...
समय की अनिश्चितता से
सशंकित , प्रार्थना से भरा है तू
फिर भी गर्वित है तू
क्योंकि मनुष्य है तू।
अट्टहास कौतुहल साथ - साथ ,
क्योंकि तू सब कुछ है
इस पल में शक्तिमान जीवन
कुछ भी नहीं , समय के चाक पे
चढ़ा हुआ इस पल से अलग तू
उल्कापिंड से टूटा, मृत तारा भी नहीं
नन्हे कण को समेटे अपने अंदर
ऐसी भी गुंजाइश नहीं तुझमे !!
फिर भी गर्वित है तू
क्योंकि मनुष्य है तू।
किन किनारो को तोड़ने में सक्षम
भावना में बहने की योजना
जन्मो के लिए मूरख ,
किन तर्कों के मक्कड़ जाल में
उलझा हुआ है तू ,
क्योंकि मनुष्य है तू।
जरा देख तो , आँखे खोल ले पगले ,
ऐसा भी क्या आलस , खुमारी तोड़ ले
पगले , जो उन्माद में है
उनके खर्राटों को ताक पे रख ,
वो देख ! भोर का तारा , दिखा है तुझे
क्योंकि मनुष्य है तू। !!

Lata Tewari
04-01-2017
1 hr