Thursday 31 July 2014

जीवन_मधुशाला




वो पहलीबार खिलते जीवन-स्पर्श को जीना 

मधुशाला में , तनि झिझक कदम का पडना 

जीवनप्याले में मदिरा को घूंटघूंट कर पीना 

मधुशाला के चमकते पियाले  छलकते जाम

थिरकते  झूमते मदहोश बेपरवाह से ग़ाफ़िल 

मचलती मूर्छा, झुठलाती स्व-बेहोशी को देख  

निकला बर्बस होंठो से, हाय ! कैसी मधुशाला 


उत्सुक अजन्मा  "मैं" इक बार  फिर  जन्मा  

पहली बार मुस्कराया, तो गले सबने लगाया 

खिलखिलाया ! सब  शिशु_हंसी संग हंस पड़े 

पहलीबार छोटे नन्हे कदम ज़मीन पे डालना

निकला बर्बस होंठो से,हाय ! कैसी मधुशाला 



शैशव बना तरुण्य का छलकता अल्हड ज़ाम 

खुद को स्वदर्पण में मुग्ध हो अपलक तकना 

स्व-संसार स्व-गर्वित स्व-नयनो से मिलना

नवीनयुग सूत्रपात हेतु तारुण्यता की विदाई 

पहली बार तप्तप्रपात जलकणो संग भीगना

निकला बर्बस होंठो से,हाय ! कैसी मधुशाला 


वो पहलीबार अभिसार कथा का पात्र बनना
  
वो पहली बार,नयीनयी कोपल का खिलाना 

वो पहली बार , रुपहले_सपनो_संग_मिलना 

घुलतेमिलतेफिसलते जाते रंगीले-रंग में हम   

औ पहली बार उन कटु_सत्यों से भी मिलना  

निकला बर्बस होंठो से,हाय ! कैसी मधुशाला 


वो पहली बार, पहले जीवन को जीते जाना 

बहते वक्त के डर से, मुट्ठी कस के बंधना  

खुलती उँगली के पोरों से,हर बंध का झरना 

नन्ही सी मछली का गहरे सागर में उतरना 

पहलीबार मिला जीवन,पहली बार में जीना  

निकला बर्बस होंठो से,हाय ! कैसी मधुशाला 


पहली बार , आहिस्ता-आहिस्ता बहता हुआ  

तेज रफ़्तार शोर करती नदी सा प्रवाहित वो 

- पल किसी पहाड़ी झरने सदृश झरता गया 

वो शैशवकाल , वो बाल मन का चंचल भाव 

यौवन का मदिरापान,वो रुग्ण जरा के दर्शन 

निकला बर्बस होंठो से, हाय ! कैसी मधुशाला 


जीवन ज्ञान पहली बार मृत्यु-प्रेम आलिंगन 

पहली बार पहला-पहला जीवन फिसल गया 

जीना है तो जी लो! इस पल को ; इसी पल में  

दोबारा जीलेना दूर साँसे सोचने भी नहीं देती  

निकला बर्बस होंठो से, हाय ! कैसी मधुशाला 

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Tuesday 29 July 2014

And we lives in !



 A  bright  sun  send  rays in abundant 

 whose still in-dark ! 

 A wild flower bloomed in  dense forest 

 whose noticed  it ! 

 A rain drop of monsoon  dip  on  earth 

 whose absorbed  it ! 

A moon  vibrate watery  element  inner 

 whose still strongest ! 

A diamond of  treasure  not  looted  yet 

 whose stayed in ! 

 A divine blessings makes aura  around 

 Om sends reiki ! 

 A earth blessed with  pure atmosphere 

 whose lives in ! 


  And we lives in !  

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Monday 28 July 2014

Steps on Stone

magical baby-steps of love compassion and gratitude 


hilly  destination visible high fall
    with-in water lucid hidden rocks
        mesmerized to see elan of water


fascinate to-see half dipped stone
        jeans fold-up till knee and step-in
             charm-walk upon projected stone


kinda philosophy my way to think
     zeal of each step moves cautiously
         may walk-out to Illusive hardships



water alike life-symbol, rest spines
       constant runs serve life 'fresh-cool'
           stepping alert send to-focused goal  


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Friday 25 July 2014

संध्या- ध्यान



साँझ की बेला , सुरमयी  लाली 
आकाश पे छायी  हलकी स्याही 

पंक्तिबध पाँखी जाते घर अपने 
सूने में कुछ तकते  नयन हमारे 

मायानगरी में  क्या सही  गलत 
क्या दुनिया में,क्या दुनिया पार 

आँखें बंद की सोचा, ध्यान लगा 
क्या है चक्र  औ  क्या ये दुष्चक्र

गोरखधंधा कैसे जानू क्या मानु 
ज्यादा देर  नहीं हुई समझने में 

सांसे ले चली जीवन के उस पार 
उस पार जाके मुड़ देखा इस पार 

पलटके अपने ही वजूद से मिली 
कैसे कहु,वे दो शब्द नहीं मिलते 

बस , देखा जो इक बार पलट के 
वो क्षण सब  दुविधा  मिट  गयी 

धर्म परिभाषा क्षण में बदल गई 
जात  की औकात  वहीं खुल गई  

आदम  की  नियत पे सवाल उठे 
बहते  समय  की पोल खुल गयी 

दानवों  के चहरे तो  साफ़ हुए ही  
देवता भी धरा के बेनकाब होगए 

औरभी कुछ सुनना चाहोगे क्या
देखा ! मिटटी  को मिटटी में पड़े 

रिश्ते  छूटते हुए, धागे टूटते हुए 
पलभर निभाते बस उस पल को

कर्म बंध में बहते उलझते रिश्ते 
मैंने देखा "उसे" जरा पीछे मुड़के 

देखा स्वयंको अग्नि में सुलगते 
राख हो रहा , साथ में बहुत कुछ 

विश्वास वो अहंकार रीतिरिवाज़ 
क्रोध लोभ मोह द्वेष  सुलग रहे 

वासनाएं चिंगारियां बन उड़ रही
जिंदगी का फल्सफा धुआं_धुआं  

नंगा सच था सामने  मैं निशब्द 
मैंने देखा "उसे" जरा पीछे मुड़के 

उस पल को जिया खुद को जाना 
ऊर्जा  बन ऊर्जा  को समझ पायी 

क्या अब भी कुछ समझना बाकी 
सच बना तार-तार खड़ा मेरा-तेरा 

ॐ 

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Spaniel Lovers



On one weigh scale put writs 

another keeps  toady  praises

what!where!feel hold on firm 

don't stuck numbers applause

aimless flunk may  uncounted 

It get satisfied for minute itself 

votes by only clicks serves all
Is mental  sickness  behind all 

slipped   from  honest  liability 

trapped   in  lickspittle  games

bizarre thoughts , sully-minds
here the light is blue and pure

here words comes from heart 
variety blooms in poetry-garth



Thursday 24 July 2014

कृष्ण-नर्तन



पूछा था बस कि  जिसको ढूढ़ती हो
कहाँ  है वो ! अब  तक  मिला क्या !

देखा उसने ऐसे जैसे  देखे  दो बावरे
जिस की खोज में तकते थकते नैन

और नाचने  लगी  नाचती  ही गयी
धरती  सदृश बिन रुके घूमती गयी

ओस से पूरित द्वी कमलदल नयन
होंठ  मुस्कराते  ठहाके  लगाते  गए

सोच में पडा , फिर दोहराया खुद से
कहाँ  है  वो ! अब  तक  मिला क्या !

और  नाचने  लगा  नाचता ही गया
बिन रुके घूमती तक़्लीधरती सदृश

नाचते हुए मिले  सवालों के जवाब,
गति की गति* में ही है पूरा जीवन

यहीँ  समर्पण स्वीकृति और मुक्ति
यहीं कृष्ण नर्तन  में  जीवन_दर्शन

खोखी काठबांसुरी के सप्त छिद्र में
कृष्ण फूंके सप्तस्वर बन तानप्राण

सप्त छिद्र से सप्त स्वर बहे संगीत
सप्तद्वार भेदन पे होगई थैयाथैया 

राधा नाचे  गोपी संग  कान्हा नाचे
आह ! मैं नाचू, मेरे संग तू भी नाचे

सप्त स्वर चक्र जीवंत उपजा ज्ञान
अनहद गूंजे बावली बन मीरा नाचे

*गति की गति = गति जीवन की / गति प्रारब्ध की / गति कर्म की / गति भाग्य की , तुलनात्मक गति  धरती की आकाश और तारों की। 

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Wednesday 23 July 2014

Wanna Say Good Bye !




Boarded on flight MH17, comfy at all
festal moment,thinking to-destination 

ride took-off zoom,felt swing on heart
soon get settle,heart-wings starts float 

passing time get half sleepy cos cosy
sudden what happens!less of second

find me on bloody-rock, sky was top
darkest breadth deepest on I get lost

mesmerized see blinking sparkly dots
in darkest skies , all connected to me

sends their love sends their well vibes
blows breeze say v're stay connected

you're  our part cant go away from us
we'll take you back soon, don't worry

live their for time being do needful job
spread light & love as we made to you

asthore child lighted to pure light, come
feels stupor hit-the-hay on mums,s lap 

after some time saw from up all hatred  
was cause of  nonsense,want commute

senseless style opted by goosey warriors 
no wars in front of love light and peace. 

Saying Good-bye all ,with Intercession
be responsible more towards mother.All !
  
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Tuesday 22 July 2014

बोधिसत्व की पीड़ा



बरसों दर्पण को साफ कर,जा अपना अक्स देखा

तब दिखाया पाया तुमको, देखो  ! शीशा साफ़ है

ना समझ ने भरम कह , तोड़ दिया उस शीशे को

पलट जो देखा , हर टुकड़े में मै  पूरा नजर आया

सुनो  कथा पते की
 ! भाग्य से निर्धन भिखारी की 

एक भिखारी हाथपसारे राह में भीख रहा था मांग

माँ पार्वती के  भावुक होने पे ,शिव बने  व्यापारी  

व्यवसायी के पास थे हीरे,दिखता डरा वो चोरों से

दे के सारे चमकते नग भिखारी को वो चला गया

अभागा सोचा रोटी देता तो खाता, औ फेंक दिए

चोर पीछे से आया, देखे जमीं पे पड़े रौशन नगीने

जौहरी वो  सब बिन झोली ड़ाल खुश हो चल पड़ा

हाय देखो ! मन्भञ्जक खेल खिलाती जाती माया

समझो तो खजाना , ना समझ आये तो है मिटटी

परमात्मा साक्षात आ के कुछ समझाए, पर हाय !

भाग्यमति आँखों पे  पर्दा  डाल, समझने देती 

शीशा मुझसे जुदा हुआ,जो दिखाता अक्स तुमको

शुक्र है ! दिल का नगीना महफूज धारणा प्रहार से

उत्सुक हो पूछा, गंदगी से कैसे इतना साफ़ किया

क्या कहते  ! संसार के दर्द ने घिस_घिस धो डाला

और  इसी से निकला था वो कुहू कुहू का गीत स्वर

जिसको तुम न सुन सके,घिर अपनी अवधारणा से

मैं कहता ही रहूँगा , क्यू की अब कर्म ही मर्म हुआ

जो सुन ले, जो भी समझ ले, जो भी साथ चल पड़े

गति का नहीं कोई हिसाब,न मालूम कब करवट ले

न जाने कौन सा शब्द ,किसको कितनी दूर लेजाये

चाहत नहीं सुने के न सुने , डर लगता है छलना से

जीवन भर अर्जितमिट्टी,कब धूलधूसरित हो जाये

ज्ञान का दिया जला , उसकी एक फूंक से बुझ जाये
समयबन्ध  है सबकुछ, बहता जल है तुम भी पिलो

ये न समझना  की , मेरे  ह्रदय की सिर्फ ये पुकार है 

जिन्होंने भी कुछ कहना चाहा, कुछ जानने के बाद 

अनकहा आधा ही कह पाये, आधा कह के चले गए 

आधा ही जगा पाये  तुमको, आधा  सोता छोड़ गए 

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कहा था न सच उस सूरज ने डूबने से पहले !




Dedicated to all souls , those are still in pain to lose their worldly_Divine_Guru_Soul

even not able to digest the great sorrow and vacuum , after passing years and years 

Souls are just sparks, not here to ever stay , 
they must have to go back, on time one day 



मन रे,क्यूँ हुआ निराश अँधेरा जो घिर आया 
मान ले तू करवट बदलते समय की चाल को 

वक्ती प्रेम के भरोसे , जीवन लिखा था सारा 
समय गुजरना था ,गुजर गया वख्त के साथ 

उसने कहा था बार बार प्रेम कर मुझ से नहीं 
बदलते वक्त से नहीं, वो जो बदला नहीं कभी 

मत अटका मेरी जर्जर खूंटी पे अपने कपडे 
कहा था न सच उस सूरज ने डूबने से पहले !

सूरज फिर निकला है, तो रात भी तो आएगी !
रात आई है तो क्या ! सूरज फिर से  चमकेगा

चलेगा सिलसिला यूँ ही , आने और जाने का 
रखें किसकिस का हिसाब, ये भी दस्तूर हुआ 


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Om Osho Pranam 
Om

Sunday 20 July 2014

नदी के किनारे



बड़ा धोखा है,  समझने और समझाने में ,
वे कहते,नदी के किनारे कभी मिलते नहीं 

गौर से देखो ऊपर से दो पर अंदर से एक 
ऐसेजैसे कभी जमीं से अलग हुए ही नहीं 

जल के नीचे जोड़े रहते हैं, इन्हे रेत_कण
अनगिनत हैं वे जो धरती की ताकत बने 

ऊपर से  इजाजत दी  पानी को बहने की 
नीचे से हाथों से धारा का वेग संभाले रहे 

जो प्रेम की हिलोरें अपने ह्रदय में संभाले
जिनके सुदृढ़ किनारे मध्य बहतेजलकण 

जिनके हाथो ऊपर फलते-खेलते  बचपन
खुद अलग होते न उनको कभी  होने देते 

सम्बन्धो  की मजबूत  पकड़  के ऊपर से  
नीर  जैसे  बहते जीवन, राह बनाते जाते 

मैंने देखा नदी के दो पाट  माँ -पिता जैसे 
सच है,दृष्टा की दृष्टि से दृश्य बदल जाते 


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अनहद गीत



कैसा राग बना,संगीत सुनाया
नितगीतअन्जाना बनता गया

सजते अस्मानीस्याहपटल पे
झिलमिल से टिमटिमसितारे

कोई  चमका,कोई स्याह  हुआ
जन्मको फिर कोई व्यग्र  हुआ

कोई  टूट-बिखरने तैयार  हुआ
फिर कोई तारा दुबारा  निकला

समय की आड़ी टेढ़ी  चालदेख
मन सहम ठिठक संभल, चला

थिरकता  रोता  खिलखिलाता
युगों  युगों  का चलता  चक्का

बिलखता मदमस्त  सिसकता 
स्वयं से ही ओझल  होता गया

अहं वश सहेजा ज्ञान  बुलबुला
बिखरता  फूटता  छूटता  गया

जप-तप-पूजन-ध्यान-ज्ञान में
विस्तृत फैला  माया तिस्लिम

जल बूँद-बूँद कर बरसता गया
मन-मयूर  नृत्य  करता  गया

सम्मोहन  सपना  टूटता  गया
अनहदगीत " मैं " सुनता गया  

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Saturday 19 July 2014

Disarray-Cool



Disarray lives mind-in 
Buffoonery  by affray
Tizzy  nonsense  fuss
Helter-skelter  around

Shindy bustle  palaver
Curious most but how
Aimless sleepy  walks
Territory all unknown

Sloven - inner  seizing
Jumble of half desire's 
O', caught red-handed 
Root of all these ado's

Preferred dwell reside
Inside lighted dwelling
Nestle blaze and  mull
Twirl  in narrow veins

Abruptly tinsel  spark
Swept  collected  dirt
Coated  with  illusions
Pangs  ventured  false

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Friday 18 July 2014

स्विप्निल और सच का संसार




from bottom of my heart  few lines  dedicated  to humanity  for truth and imagination .... 


प्यार ही प्यार है यहाँ आह ! खुश्बू ही खुशबू 
रंग बिरंगे फूल बाग़ खिले, न्यारी  फुलवारी

इंद्रधनुषी छटा  फैली  कहीं  बिना मौसम के
बालक्रीड़ा खिलखिलाहटें सुन खुश  था मन

शांत  हो  मोहक बना मन का सुन्दर आँगन
मनोहर बगीचा, चिड़िया उड़ती तितली संग

नींद लगी ही थी मद का नशा अभी हुआ था
भ्रमित मन प्रसन्न हुआ ही था सुंदरता देख

के दृश्य बदला वो दृश्य देख दहल गया दिल
निर्दोष चीख पुकारें सुन करुणा शर्मसार हुई

जितना सच था आधे से भी कम वो कह पाये
कैसे कहें वो तीव्र वेदना , युद्ध में जो जी  रहे

शब्द कैसे कह सकेंगे उस माँ के दर्द की व्यथा
अबोध आँखों के आगे बिखरे वो,जो टुकड़ो में

ऐसा लगता है प्यार प्यार मैं आगे से कह रही
पीछे से कोई शूल भोंक रहा , रक्त है रिस रहा

ओम शांति बोल रही हूँ पर अशांति का नग्न-
नृत्य  लाशों पे  निर्भीक _निर्वघ्न है चल रहा 

जीवन दिया  नहीं तो लेने का नहीं  अधिकार
कहती रही, ठीक पीछे लाशो का बिस्तर बना-

थाली में मांस खून का भोज बना, परोस दिया
आह ! अट्टाहस असुरों का फिर याद हो आया

ज्ञान ध्यान सिमित हो सहमा दानवता के आगे
शिव का तांडव,कृष्ण की बांसुरी ,राम का धनुष

त्रेता , सतयुग और द्वापर एकसाथ याद आया
एकसाथ याद आया , फिर एकसाथ याद आया




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सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे सन्तु निरामया

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत


ॐ 

 शांति शांति शांति 

Om

Thursday 17 July 2014

मीता मोरे !



ॐ 

रुनझुनरुनझुन मौसम बरसे, न हुई बरसात 
बयार चलत दिखे न कँहू मोरे नैनं को आज 

अनहद गूंजे चहुँ झांझर ढोल मंजीरा थाप दें 
लचक चलिब संगमा, पायल बाजे थैया थैया  

झरझर झरती फूलन लड़ियाँ बनी कण्ठहार 
ठुमक छनछन बाजे झांझरवा पैरन मा आज 

खिले फूल ज्यूँ आकास मा तारा बूंदी चमके 
चलत चलीआयी इहाँ इब कछु कहा न जाये 

का नाम दूँ तोहका साँवरे ज्ञानीजन मोसे पूछे 
का बोलूँ कि लाज के मारे सबद ही गुम जाए 

मीता मोरे कर्मन की या गठरी अतिभारी भई  
काँधे थाकि गए जे मोरे कदम उठाये न जायें  

धन्यभाग लै लीन्ही म्हारी जन्मन् बँधी गठरिया 
कदम मिला के चलूँ झूम,संग तोरे मोरे नहुआ

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Sunday 13 July 2014

कैसी माया कैसा जाल



अंतहीन पीड़ाएँ  अंतहीन  खुशिया

बौराई  मदमस्त  अचेतन  दुनिया

कैसा खेल कैसी माया कैसा जाल

पंछी  उलझ हँसता तड़पता  रोता

तेरी लीला  अपरम्पार, रे ! विधाता

नादाँ परिंदे हँस -फसे मायाजालमें

दया निधान  किसने ये नाम  दिया

चाटुकारिता प्रेमी तू निर्दयी  कठोर

ये कैसा अनसुलझा जाल अंतहीन

चलो जान भी लू  और मान भी लूँ

पर फिर भी  क्या तू  दोषमुक्त हो

निश्चिन्त  हो  सकेगा  अभिमानी

तुझे भी तो धरा पे  आना ही  होगा

अपना कर्म-क़र्ज़ चुकाना ही  होगा

तू भी तो अपनी परिधि में घूमता है

दीनानाथ कैसा तू सबका तारणहार

या  अपने रहम से ये दामन  भर  दे

या के फिर बिल्कुल दीवाना  कर  दे

दीवाना  हो के देखूं  इस जहाँ  को मै

और  दुनिया देखे मुझे  बना दीवाना

इलाज  बेइलाज  ;बुत  बनना रवायत

ये जान के विष का प्याला कैसे पी लूँ 

कैसे पियूं हलाहल मै  शिव  भी नहीं

कैसे रोकूँ मदमस्तो को, विष्णु  नहीं

ब्रम्हा भी नहीं  रचना  नयी बना सकूँ

जो थोड़ा  दिया आभार, थोड़ा और दो

तार दो  तारणहार  इतना  करो मान

दिव्यआलोक में बसा ,दो आलिंगन


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