Monday 7 April 2014

इत्र की तरह बचे है चन्द अल्फाज़ Sufi Swirl (Poem)



इत्र की तरह बचे है चन्द अल्फाज़ , जो बिखरे फूलों से बटोरे है 
एक बूँद नहीं, नदी नहीं हूँ दरिया भी नहीं , इश्क का समंदर हूँ 


नीला गहरा अथाह आसमान हूँ या के लहरों में खेलती नाव हूँ 
अल्फाज़ हूँ , नाचीज़ हूँ , जो भी हूँ तेरी शख्सियत पे कुर्बान हूँ ,


जो भी है अब रंज नहीं कुछ तंज़ नहीं , मैं रूह हूँ कि मैं कैद हूँ .
जाँ निसार हूँ , दिलोजान से कुर्बान, तेरा नूर हूँ ! मैं तेरा प्यार हूँ !


Photo: ॐ ॐ ॐ :-----------इत्र की तरह  बचे है चन्द  अल्फाज़ , जो बिखरे फूलों से बटोरे है एक बूँद  नहीं, नदी नहीं हूँ   दरिया भी नहीं , इश्क का  समंदर हूँ  नीला  गहरा  अथाह आसमान  हूँ  या के लहरों में  खेलती  नाव हूँ अल्फाज़  हूँ , नाचीज़  हूँ , जो भी हूँ तेरी शख्सियत पे  कुर्बान  हूँ , जो  भी  है अब  रंज नहीं  कुछ तंज़ नहीं , मैं रूह हूँ  कि मैं  कैद हूँ  .जाँ निसार  हूँ , दिलोजान से  कुर्बान, तेरा नूर  हूँ ! मैं तेरा  प्यार हूँ !

Having Few survivors words like a perfume, 
which is collected from scattered flowers 
Not a drop, not even pond river’m not, 
I’m the Ocean of love 


Am i floating boat Playing on the waves 
Or I’m deep blue bottomless firmament

Words I’m ,I’m nothing at whatever sacrifice I’m your’s Man, 
Pip is no longer something not even spleen ,

I’m roc or I’m in cage under restrain
From bottom pf my heart am intimately sacrificed, 
I am thy Glaze ! I am thy love!

No comments:

Post a Comment