Friday 19 June 2015

तबियत है आपकी


जीव गुण ही नहीं अपना  व्यवहार  भी देते है 
जीवन-भोग  ही  नहीं , जीवन-योग भी देते है  
.
मधुमख्हियों को मेहनत से शहद बनाते देख 
चींटियों को कतारबद्ध - समूह में बढ़ते देख
.
नाजुक  चिड़ियों  को  ऊँची उड़ान  भरते  देख 
हंसों  को जोड़े में सरोवर  में  टहलते  हुए देख
.
फलो  से  लदे  वृक्षों  को  अटल खड़े हुए  देख 
सुन्दरपुष्प सुगंध भरे फुलवाड़ी की जान देख   
.
मेंढक की टर्र टर्र , गधे की ढेंचू-ढेंचू  दुल्लत्ति
सांप को अपनी जन्मी संतानें निगलते  देख 
.
औ सरसराते हुए कहीं भी छुप जाने की कला 
दूसरों को ग्रास बनाने के लिए तत्पर उत्साही 
.
मकड़ियों  को अपने ही जाल में उलझते देख 
शेर सम खुल के अपना पौरुष स्थापित करते 
.
चीते  समान  घात लगा दुश्मन को मिटा देते 
कभी हाथी  सा  बल  प्रदर्शन संसार अखाड़े में 
.
कभी  मगर बन शिकार को पूरा निगल  जाते 
रेंगते  कीट से बदल रंगीं तितली बन  मंडराते 
.
साधु बन कोयल कंठ से गीत  गाते हुए चलते  
नर्तक बन नृत्य करते.प्रकृति से गति मिलाते 
.
सम्पूर्ण  प्रकृति के तत्व बन गुण-धर्म  समाये 
देव से उठते तो , दानव से पृथ्वी  में जा घुसते 

.
कभी साधु 
कभी योध्हा 
कभी दानव 
कभी प्रेमी 
कभी अचरज 
कभी करतब 
कभी सरल हो 
कभी गरल हो 
कभी अमृत से
कभी अलग 
कभी  साथ 
कभी अनेक में खंड खंड कभी एक में पूर्ण प्रकट!
.
सच ही है ! समस्त गुणांश पूर्ण मिले आप में ही,
सकल योनि भ्रमण पर्यन्त ही दिव्यजन्म मिला, 
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परमात्मा की अद्भुत-कृति  देख अन्य भयभीत,
जनाब ! आप क्यूँ उन सबसे बार बार डर जाते  है,
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अजीब आपके डर का आलम है डरे सहमे से आप,
सब कभी खुद कभी तो खुदा रच उससे डर जाते है,  
.
उफ़ ! ये अंदाजा खाली दिमाग की उछाल तो नहीं,
न- न! देखा छुआ जाना माना सात बिन्दुओं से हो,

अपना चिरप्रवाहित समय के साथ बहता गुणधर्म, 
7 चक्र से बहता धर्म अधर्म , 7 स्वर में गाता गान,

सात रंग में लिपट बांसुरी,सात रंग के मिश्रण तान,
रंगीं कृत्यों की पुरातन किताब,असलियत आपकी!
.
क्या ये  तारीफ़  है ! नहीं  जनाब, फितरत  आपकी!
इन मिश्रण से जो मिठाई  बनी तबियत  है आपकी! 

बरसी


फिर वो ही ढाक के तीन पात

इंसान तेरी यादास्त कितनी कमजोर,
इक्छायें और लालसाएं कितनी प्रबल
कितनी क्षणिक, लो मेला सजने लगा 
फिर  दूकानदार दुकान लगाने लगे है 
यही वो जगह जहाँ खरीदार कतार में 
पंक्तिबद्ध हो हँसते-हँसते लुट जाते है ... 
.
हवन भजन भोजन साथ फिर वो  ही
डर  का  नर्तन फिर वो  ही  मनचाही
मुराद  के  लिए  हाथ जोड़े दयनीय 
आँखें मींचे भिक्षा मांगते अमीर गरीब
भिक्षुक और धर्माधिकारी एक  हो जाते है ....
.
यही  नियम है शाश्वत यही बहाव है
यही  भाव है श्रद्धा और  भक्ति का 
कहते सुना है तुम्हारे दरबार में आये  
बह  गए वो भी भाग्यशाली, जो बचे-
किसी तरह,वे महा भाग्यशाली हो जाते है ....
.
अजीब राग.....अजीब सुर भाग्य का 
बस भाग्य और उस भाग्य देखने की  
दृष्टि अलग अलग है, जो पहुंचे धाम  
वो  भी भाग्यशाली, किसी कारन जो
न पहुँच सके अचानक भाग्यशाली हो जाते है .. 
.
प्रकर्ति जो करती है नियमतः करती है 
मनस श्रद्धा देखिये कैसे रंग धरती है 
कहते है जिस पत्थर से मंदिर बचा था  ,  
लोग  उसे   अब   नंदी बाबा  कहते   है  !
कुछ  वही  खड़े  हो मन्त्र  पढ़ते  है  तो 
कुछ झुक रूपये की भाव वर्षा करते  है  
तब जाके महाकाल  भक्त-दर्शन  कर पाते है ...
.

प्रणाम आपको लीलाधर शिव शम्भो.... !
मनुष्य में क्षमता है प्रभु का हर जतन 
हर उपाय और वाणी मनुष्य की लालसा
के नीचे दब कराहती है प्रकृति की लीला 
माया की त्रिगुनात्मक बानी तब सुन पाते है...

इसके साथ ही  फिर वो ही दोहराते है ...........!!

इंसान तेरी यादास्त कितनी कमजोर
इक्छायें और लालसाएं कितनी प्रबल 
कितनी क्षणिक, लो मेला सजने लगा 
फिर  दूकानदार दुकान लगाने लगे है 
यही वो जगह जहाँ खरीदार कतार में 
पंक्तिबद्ध हो हँसते-हँसते लुट जाते है ... 

Wednesday 17 June 2015

नामुमकिन को मुमकिन करने चले है वो

द्वित्व संसार  में अद्वैत खोजने चले वो 
नामुमकिन को मुमकिन करने  चले है वो 
यूँ  ज्यूँ  शराबी डूब  नशे में योग लिप्त हो 
नित नए प्रयोग करे प्रयोगशाला बने है वो 

रात भर सोये  खर्राटें  भर भर के, भोर पूर्व 
उहासि को  ही  जागरण, समझ चले  है वो 
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो 
ना-मुमकिन को मुमकिन करने  चले है वो 

कहते सब नशे में है मात्र हम ही नशे से दूर
उठापटक अब बाहर नहीं खुद से करते है वो 
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो 
ना-मुमकिन को  मुमकिन करने  चले है वो 

अब भी शागिर्दों की भीड़ में सुकूं पाते है वो  
अभी भी  दो कदम  का फासला रखते है वो 
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो 
ना-मुमकिन को मुमकिन करने  चले है वो 

देखना कोशिशों से ! तो थोड़ी और कीजिये 
स्वभूल स्वरुक शीशे में  'स्व' को ही देखिये 
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो 
ना-मुमकिन को मुमकिन करने  चले है वो 

अजीब शख्सियत रखते है किले के मालिक  
ख़ास खुद, दूजे को खासमखास कहते है वो 
द्वित्व के  संसार में अद्वैत खोजने चले वो 
ना-मुमकिन को  मुमकिन करने  चले है वो 

मुम्किन है खासमखास किनारे पे लग जाये 
खास की नाव पे चढ़ के वो पार  भी हो जाएँ 
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो 
ना-मुमकिन को मुमकिन करने  चले है वो 

तप की भट्टी खौले सपनो में इक और पैंग 
इस जन्म से उस जन्म भेद सीने लगे है वो 
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो 
ना-मुमकिन को  मुमकिन  करने चले है वो

आदतन मजबूर, वीरता शख्सियत उनकी 
खूंटे से बंधे घोड़े खुले मैदान में दौड़ाते है वे 
द्वित्व  संसार में अद्वैत  खोजने  चले वो 
नामुमकिन  को  मुमकिन करने चले है वो

नज्म :खुद से ही शाम बात चली


खुद से ही शाम बात चली, यूँ बेसाख्ता कह बैठे
फितरत रूखी सी और दिल की जमी भीगी जरा
.
माना ! बड़ी बड़ी गुत्थियां सुलझाने में माहिर हो 
दम भर पास आओ बैठ मुस्करा तो लो जराजरा 
.
देखो हर एक सांस लो गहरी आहिस्ता आहिस्ता 
समंदर तो जानते ही हो लहरो को भी जानो जरा 
.
यूँ तो ख़ुदा से कम नहीं हैसियत हरेक शख्स की 
पर जरा इंसान बन के जी लो ये जिंदगी को जरा

The Existential Seniority


Self identity is prime in nature 
Axis rotation is prime in nature 
Self  energy is prime in  nature 
Rotation  around birth planet 's -
Gravitation , is   prime  nature ! 
That  mother  have  own house 
Her  rotation in gravity is prime 

Everyone  is  going  as  nature 
N't  to blast hill's, create valley
One  is to live  harmonica-love  
Recall  the existential seniority 
Keep in  mind  shortness of  us 

Changeability again  is prime 
Flexibility again  nature's root 
Acceptability is  a  basic  core
Freedom can't live in birdcage
Follows the hierarchy in order  
Prosperity and Joy are for here ....
.
Om Pranam

Sunday 14 June 2015

समग्र सत्य


क्या  छोड़ोगे ! क्या पाओगे 
कहाँ शुरू कहाँ  ख़त्म करोगे
सारी कायनात  के वही बोल 
जो तुमसे निरंतर आ  रही है 
उसकी गति में तुम्हारी गति 
उसकी शैली में जीवन कथा...

उसके ठहराव  में ठहराव तेरा 
जैसा प्रकाश बाहर  दिख  रहा 
छन छन  ओट से निकल रहा 
जो सूरज में सबको दिख  रहा 
नन्हे  वातायन  से  झांक रहा  
दर्पण में प्रतिबिम्ब हो चमका
वो क्या विधी  जो अपनाओगे 
कौन सी यहाँ जो व्यर्थ पाओगे !
.
किस वाणी का उपहास करोगे 
किसके कथन पे माथा टेकोगे 
क़िस जगह को तीरथ  पाओगे 
किस पत्थर  की श्रद्धा  करके 
कौन सा पुष्प उसपे  चढाओगे 
किस  तारे में  ढूंढ उसे पाओगे 
कहाँ कहाँ अभी और भटकोगे ....
.
सीखने चले तो, हर तकनीक 
गाने चले तो , हर  गीत में वो 
योग में  आदियोगी  बन बैठा 
प्रेम में छिप के प्रेमी बन बैठा 
ज्ञान में ज्ञानी अज्ञान में मूर्ख 
शास्त्रो में शास्त्री, रंगो में रंग ..
.
क्या  छोड़ोगे ! क्या  पाओगे 
कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म  करोगे
सारी कायनात के  वही बोल 
जो तुमसे निरंतर आ  रही है
उसकी गति में तुम्हारी गति 
उसकी  शैली में जीवन कथा...
.
धागे  पकड़  छोड़ते  जाओगे 
बुनावट पाओगे दुर्लभदुष्कर 
व्यर्थ से  बचते  अर्थ को लेते 
एक एक कदम संभल चलते 
योगी का संग्रह योग थैले  में 
रुकना  नहीं किसी  पड़ाव  पे 
गृहण नतमस्तक विदा  सूत्र 
माया की कठपुतली सी  सब 
रे सिद्ध!  महायोगी तू है ही  ....
.
क्या  छोड़ोगे ! क्या  पाओगे 
कहाँ शुरू  कहाँ ख़त्म करोगे
सारी कायनात  के वही बोल 
जो तुमसे  निरंतर आ रही है
उसकी गति में तुम्हारी गति 
उसकी शैली में जीवन कथा...
.
Om pranam

Friday 12 June 2015

धुल-कण सा मैं


बस वो पल  और जीवन के लिए 
भाषाअर्थ गीत मायने बदल गए 

ज्यादा नहीं, जरा ऊपर उठ  देखा 
खुद को  पड़ा  निर्जीव  धरती पर

किसी पेड़  से अलग हुए फूल सा 
मिटने  को और गलने को तैयार 

फर्क नही मुझमे, धुल के कण में 
दोनों एकसे समानांतर में थे पडे 

मेरे पास परिचित सूखे-पत्ते-मित्र 
कुछ सूखे  फूल , और लकड़ी ढेर 

यहाँ भी क़तार में पड़े पंक्तिबद्ध 
क्रम से अग्नि में पड राख हो गए  

सुना था आते जाते खाली है लोग 
क्या ले जायेंगे ! आज देख लिया 

नन्हे से जीवन में इत्ता बड़ा उपद्रव 
उफ़ ! ये मैंने जाना , जाने के बाद !

तुम भी जरा गाके देखो मधुर गीत 
स्वप्न में जी ले क्यूँ न ये चिरप्रीत  !

Wednesday 10 June 2015

जिंदगी तू जिंदगी



तू नदी  सी तरल  बहती
कभी  सरस्वती शुष्क है 

बड़ी छोटी  गहरी उथली
सरल सी कभी गरल सी   

कभी  फूलों सी महकती 
नव खिलती,सूख झरती 

कभी  भाव  कभी  दर्शन 
कला तो  कभी  तत्वत्तव 

कभी अल्हड  कभी  धीर 
कभी कुमारी कभी  प्रौढ़ 

कभी योगी  का  संकल्प 
बन समर्पण  सिखलाती 

बिंधी राहें  स्वतः चलती 
भ्रम देती मेरे  चलने  का

विद्वान मुख से  झरती 
कभी भक्तधार से बहती 

तुझे जानना कठिन नही 
पर  समझना  खेल नहीं 

रेशे रेशे जर्रे जर्रे  छुपी है 
बिंधी  चादर से  फैली  है 

कई  परतों  में  उलझी है 
सुलझी सी है ना-सुलझी 

तू   जिंदगी ! ऐ  जिंदगी 

एक  पल में  बसी  रहती 
आदि अंत  कथा  कहती 

मुझे  मेरे  ही  जन्म  का 
संकल्प तू याद करवाती 

माया  से बचाने  के लिए
नित  नए  स्वांग  करती  

बचाने  को मृगतृष्णा से 
पहेली  बन  मौन चलती 

नीर पे  पदचिन्ह बनाती 
सखी  जिंदगी तू जिंदगी 

तू   जिंदगी ! ऐ  जिंदगी 

तू   जिंदगी ! ऐ  जिंदगी 

तू   जिंदगी ! ऐ  जिंदगी 


Tuesday 9 June 2015

psycho-world

-------------Colorful psycho-world :- -------------

Ultimate the whole Mad world 


We deal with self madness....first,
than  near surroundings madness 
than we deal with Group madness
beyond that come with all fighting
and keeping balance in madness...
.
Slowly grooming start to dealings 
national madness, as per growth 
if more promotion availed to grow
the pattern continues internationally
encounters shows,' madness is big '...
.
Fantastic ! each deal starts with self
and always continues towards out
loud craving and cry of psycho mad ...
right or wrong perspective of Illusive
.
If searching balance ! you're in job !
searches means emptiness thirst is
duality means two side of each coin
Coins produce metallic sound rub...
.
Here exclusive point ,' yes i'm mad'
not today diagnosed , it is old gold
see amazing talent in high positions
this acceptability seems in society...
.
Little learn about those in treatments
their word all 'imbalance of sensitivity'
n't handled well high rise nd downfall
mad world have amazing sequences...
.
Sit quite, meditation says do nothing,
look  outer madness and inner world 
whatever comes from inner churning
get fragrant shiny flower, out of world ..

Sunday 7 June 2015

फ़क़ीर भी जान, रेंगते कीट हो गये




जीवन में उतरते जीवन मृत्युसम 
मृत्यु उतरती उनमें नवजीवन सी
कहीं मृत्यु दे दोहरी मृत्यु आभास
तो मृत् सम में जीवन का उल्लास

स्वप्न में विचरते स्वप्न ! देखे है..
छोटे नन्हे तिनके आस्मां पे उड़ते
भांति भांति रंग रोगन साथ  लाते  
कहीं कीट से लिथड़ रेंगते ! देखे है.. 
  
चाहत सिर्फ चाह है मात्र  निर्जीव
फल  दूर इक्षायें अभी है बीज रूप
कांटे की नोंक औ रंग चित्रकार के
कैनवस लकीरो में रंग भरते जाते

तत्व ज्ञान और तत्व भान जुड़वां
है, एक ही माता माया की संतान
इक स्वप्नदृष्टि दूजा स्वप्नवृष्टि
स्वप्न में विचरते स्वप्न स्वागत

मानी का मान  ज्ञानी का ज्ञान है
अहंकारी का अहं  बन जाते ये ही
और प्रेमी में धड़कते बन धड़कन
और स्वयं से पार भी कराते जाते

स्वप्न  कैसे  कैसे  स्वप्न दिखाते
अंदर  इनके  स्वप्न  जीवन जीते  
जानना  है तो  बाहर इन से आ के
मीठे  तिक्त  स्वप्न  काटने  होंगे

ज्यूँ ही बृहत्स्वपन  के भी पार  हुए
माया रचित निद्रा  से पार  हो  गये
मानव  जनित दृश्य पीड़ा से  गड़ते
भाव लुभावी त्रास,सुख सुनहले देते 

दिखते घटते प्रकर्ति के छलबलढंग
उस दिन  जान सभी राजा भिखारी
सभी योद्धा और सब धर्माधिकारी  
संत फ़क़ीर भी , रेंगते कीट हो गये  




दरगाह कैसा है


बस इक सुर्खरू  सा अहसास चाहिए 
हर दीवाने को  उसकी  आब चाहिए 
पता न  ठिकाना है  मेरे  दिलबर का 
कहु क्या पूछे कोई कहाँ गुम हुए हो !

क्या कहु !  क्या कहु मैं नूर कैसा है 
हजारो सूरज कम  है,  बयां के लिए 
अब मेरे इश्क़  तू ही  मेहरबानी कर 
बेनकाब कर दे खुद को ! मेरे वास्ते 

खुद ही समझ लीजे सवाल न कीजे 
अब क्या कहु की आफताब  कैसा है 
उनकी खामोश  निगाहों में रहूँ  बस 
सवालात  न  कीजे  दरगाह कैसा  है 



Music of " Tama "



संगीतमय तमस का गीतऔर  प्रेम! 
" मैं  और  तुम "
 
*
किरकिरी गड़ती पर भीगी ठंडी 
पैरों के साथ देह को दिमाग को भावनाओं को ठंडक देती
लहरें मनभावन चंद्र-चन्द्रिका में चमक मद्धम संगीत देती  
और समंदर के किनारे हमारा साथ साथ चलना  
*
संगीतमय गहन-तमस ... काले समंदर का किनारा ... 

*

मैं और तुम

*
परम की बांसुरी में संगीत तरंगित  हुआ ज्यूँ  कन कन कन में 


*
यहाँ पर  साथ चलते चलते , खुद में,   एक सुंदर राग सुनो !  

सुनो !  झर झर झर झरती झंकृत वीणा के तार की आवाज 

*
मैं और तुम "एक " है  समुद्र तट पे और  आज है  गहरी काली रात 

*

गहन रात में चमक चांदी-रेख सी दिखती,  सच ! जीवन रेखा  की किरण ज्यूँ हो  
 सूर्य किरण सी 
और.... इस किरण की सफ़ेद चादर  पे दिखते ....  भद्दे...  छोटे ...  धब्बे से...  चुभते 
मुलायम रेतकण 

*

 सघन रात साथ युग्म चमकती घूमती उठती लहरें द्वित्वता नहीं है इस पल में
मंदर    हवायें ....    स्व-अनुगमित ....   और ;  यहाँ केवल हैं ....    मैं और तुम

*

लहरों पे उभरी प्रभाकान्ति पे इक्च्छाये मूल अधार सी चिंगारी 
भीगी रेत सिल्क सी,  कोमल छुअन , अकल्पित  देह से परे के अनुभव 
व्यक्त तारों की झिलमिलाहट पानी सा अस्तित्व ...  और ; मैं  और तुम 

*
मैं और तुम
*
आशीष युक्त गहन तमस रातें , चलो चलें ! साथ,   केवल  कुछ कदम तुम्हारे साथ 
इस पल में  जीवन उतराया, चलो चलें ! हाथ में ले हाथ  इस घनी रात में मैं और तुम
*

चन्द्र-किरणें छू लें  ह्रदय से जन्मे गीत गीले , समुद्र भिगोता प्रेम तट  को ,  देखो ! 
भीगी रेत ठंडी धरती शांत, जीवन नृत्य में डूबा इस पल में साथ चलते  मैं और तुम  

*
घनी अंधियारी रात में चन्द्र-चन्द्रिका प्रखर उज्जवल,  स्पष्ट देख पा रही हूँ 
महसूस होते हो तुम मेरे पास घनी गहरी काली तमस रातें, साथ; मैं और तुम 
*
मैं और तुम 
*
कल्पनाओं का कभी अंत नहीं,  स्वप्न कभी कहीं भी जाते नहीं 
मुस्कान आकर्षण को बनाती,   होंठ गाते  ह्रदय का गीत-राग 
आओ ! दूर  तक चलें साथ साथ,  घनी गहरी काली रात
चलें संगीतबद्ध चाल, मैं और तुम 
*
मैं और तुम 
*
गहरी रात में,  चाँद आसमान पे ज्यूँ चमकता , सागर आल्हादित हो उठता 
स्पर्श करती चाँद किरण लहरों में होता उछाल प्रिय को छूने की चाहत बेशुमार 
*
निःशब्द की आवाज, आभास कुछ न होने का, उमड़ते घुमड़ते सुनो ! भावनाज्वार 
इक शब्द भी न सुनाई देता , इक गम्भीर  गहरा  मौन , उसका घनत्व मैं और तुम !
*
तुमने सुना? अनहद का संगीत, ह्रदय की धड़कन, तट पे ड्रमवाद्य के स्वर 
अनन्त की मधुर बांसुरी,   सात स्वर, और लयबद्ध तान, और ! मैं और तुम
*
हम तारीखें उस तारीखरहित की अंतत: संयुक्त धरोहर अनन्त की  
सूत का नन्हा धागा, अंश बड़े सूत का, बंधे-समय से हुए बंधित हम
सागर में उठे बुलबुले से हम, दो तारे उस महाशुन्य के... मैं और तुम
*
अपनी अपनी धुरी पे केंद्रित हम, आ  मिले,  एक केंद्रित चक्र पूरा करने को 
दो से हो जा मिले अनेक से,  करने को पूरा "एक" केंद्रित चक्र, मैं और तुम  
*
अनंताकाश में,  7 आसमानों से दूर,  सत्य की सत्ता है , वहां पे !
  अणु-शुक्राणु बन दौड़ लगाते अधिक सोचते पर सोच-रहित हम
अनेकों के साथ जा मिलते अनन्त से,  युगांत करते  मैं और तुम 
*
खिलते हुए कमल से हम प्रिय इस सौंदर्य को महसूस करो
ज्यूँ अनेक रंग से सजा सुंदर गुलाब का पौधा काँटों से घिरा 
हम सात रंग के मिश्रण रंगरहित नीले का अभिन्न अंग रंग   
*
जो भी तुम और मैं हूँ,  हैं अर्थहीन,  अस्तित्वहीन हैं, और... जो भी है  यहाँ  पे
है समय से बद्ध खेल, भूल ! भूल जाओ, जाने भी दो,  इन कंधो पे बोझ न लो  
जियो...  जैसे हो अंतिम श्वांस ...,  क्यूंके एक एक श्वांस  है निश्चित निर्धारित 
*
अधिकतम संकुचित कर्त्तव्य से भरे अधिकतम संकुचित प्रेमाह्वाहन करते 
अधिकतम संकुचित समीक्षण हमारे और उपजते अधिकतम संकुचित भाव 
अधिकतम संकुचित  बुद्धियुक्त से ये वो अधिकतम दर्द लेते देते संकुचित हृदय 
*
देखो ! विशालतम की गोद में सभी वस्तुएं अधिकतम संकुचित होती , 
और होते जाते हमारे  अहंकारी अस्तित्व संकुचित , अधिकतम के इस पल में 
फिर भी हम बड़े हैं छोटे जीवन के लिए और सुनो ! ये पल बड़ा है  प्रेम के लिए   
*
एक हम  इस समुद्रतट पे, आज  गहन तमस रात है 
मेरे "प्रेम",  मैं और तुम,  एक "है",  इस एक पल में 
*
"प्रेम" इस एक पल में , एक विचारशील "प्रेम-तिथि", प्यार से प्यार के साथ 

और सूझ बूझ से , इस अंधेरी रात में चलते हम काले गहरे समंदर के किनारे 
*
मैं और तुम
और 

हमारा साथ साथ चलना 
*
संगीतमय  तमस  का " गीत"


                                           और प्रेम ...
*
मैं और तुम


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I & you

The Darkest Darkness Embraces   The silver Ray  So Bright. Silvery nights apart of Darkness comes altogether Long way.   ~ Lata
A Musical  walks-over
Black & Dark Seashore


the music is on each
cell
under the flute of thy
and
i and you
walks over here
itself
a beautiful melody
listen
the string sound !!


I  and You
are
" One "
here on sea
shore
and
Today
Deep Dark Night ......

*
in the dense darkest night
tiny sparks look silver-ray
.
.
One ray beautiful lifeline
while on bright sunshine
.
.
the Dark small patch looks
bad n ugly on a white sheet


*
the Darkest nights
shiny swirling waves

.
.
I and you  are one
no duelity this time

.

breeze  is  flowing
here only i and you


*

shine appears  on waves
a wishes sparks on base
.
.
Sand wet and touch silk
so putative hyperphysical
.
.
Glossy lucid starry shiny
watery existence I and you


*

blessed darkest nights
 let's walk together
.
.
only few steps with you 
life comes this moment 
.
.
let's walk  holding hand 
on darkest night I nd you


*

silvery rays touches 
 song born of hearts
.
.
Sea give love to shore,
and look! sand is wet 
.
.
earth-calm life-dance 
in the moment, I and you 


*
On the Darkest night 
moon brilliant bright 
.
.
i am seeing you clear
you feel close to me 
.
.
a deep darkest  night 
together I  and you 



*

Imagination never ends
dreams never ever go 

.
a smile makes charm to us 
lips sings a song of the heart
.
.
let us come on long walks 
lets come to walk together 
.
.
in the deep darkest night 
I nd you let walk musical 


*

In the darkest night
moonshine on skies
.
.
Ocean most happy
wen touch her rays
.
.
weaves come high
wants touch to lover 

*


Listen to the voice of no voice
feel, feel of nothingness  

Emotion whirl and swirl
no word is come out 
.
.
 A deep  dense silence  
Darkness, you and I

*

love you listening
music Immeasurable
.
.
the beats of hearts
and drum of shore
.
.
sweet flute of Infinite
7 gamut and rhythm

*

We're date of dateless
finite-being of infinite
.
.
tiny  spun of long-spun
bounded in time-bound
.
.
we're bubble of Ocean
2 stars of nothingness 







we're very Orbit of self 
met to make circle One 
.
.
then One again  meet
with circles make one 
.
.
this One  again meet 
with circles make one 
.
.
now we're meeting in the skies 
with the much bigger one 
.
.
and very far  of skies,
the real One is there  
.
.
we're alike sperm runs 
thoughtful thoughtless 




*

we're like a lotus bloom
My love feel the fragrance 
.
.
multi colourful beautiful 
plant of rose and thorn 
.
.
we're a shade of 7 colours 
a part of colourless blue 


*

whoever you're and 
whoever I'm gisting less

.
and whoever all there
all is time-bound play 
.
.
forget  and forgive all
don't carry on shoulders
.
.
just live as of last breath 
each breath of allotted


*
more than narrow  duty filled  
more than narrow making love 
.
.
more than narrow observance
and growing narrow thoughts
.
.
 more than brainy this or that 
more than the ache of narrow hearts


*

look ! in the  lap of vast
all things become narrow 
.
.
our ego existence comes 
narrow in the very moment 
.
.
but still, we're  big for life 
still moment is big for love 



*

I  and You

are One  here
on sea shore

TODAY

is a

BLACK DARKEST NIGHT

" My Love "

and

I & you 

are One

at this very moment 

A thoughtful "Date" 
with Love
in the Darkest night 
and  
mindful walks-over Black 
and 
Dark Sea-shore 













==========================




*

A thoughtful "Date" 
with Love
in the Darkest night 
and  
mindful walks-over Black 
and 
Dark Sea-shore 
© Lata 
07- 06 -2015  

Thursday 4 June 2015

दो सांसो के बीच


मुझे ठहरना  है बस इन  दो सांसो के बीच
जीवन जीना  है बस इन दो साँसों के बीच
मेरा योग  मेरा भोग मनोयोग भी तू ही है 
उपभोग मेरा  है तू  बस  दो साँसों के बीच
हाँ , मुझे ठहरना है_________________

दैहिक जैविक नाते , कुछ  अलग बात है
थरथराती जीवन  लौ कहती और बात है
पेंचोखम निस्तार लौकिक अलग बात है
मिलन, विदा, संयोग कुछ अलग बात है
हाँ , मुझे ठहरना है__________________

योग या प्रेम,जब मध्य में आ गति थमी 
दो साँसों के बीच  पाया रक्स-अक्स तेरा
इन्ही दो साँसों बीच बसे है प्रियतम मेरा 
ठहर पनाह मैं पाऊँ इन दो साँसों के बीच
हाँ , मुझे ठहरना है __________________