Sunday 29 October 2017

आईना

आईने की जिस दिन हम से हार हुई 
जान लीजिये, ये हमारा संसार हमसे-
रूठ जायेगा, सामने खड़ा हर शख्स
इस उभरते अक्स में शामिल मिलेगा


आईना गजब, उसकी अपनी शर्त है 
न भूलने दूंगा तुम्हे तुम्हारा ही वजूद 
जब देखोगे मुझ में डूब के एक बार 
खोया शख्स कुछ बदला सा मिलेगा  

इसआईने को खुद से दूर न कीजिये
के इससा दूसरा हमसफर न मिलेगा
झटक के फेंक इसे चूरचूर किया था
समेटने में जख्मी वहीँ जिस्म मिलेगा

कुछ बूंदें गर छल्कि परवाह न कीजे
गौर से देखिये ! नजरअंदाज न कीजे
टुकड़े टुकड़े टूटे है पर हर टुकड़े में
उभरते सच का आगाज अंत मिलेगा


Sunday 29 oct 2017- 08:54am
©Lata

Tuesday 24 October 2017

जन्मो का हिसाब किताब 'इसमें' होते देखा है

तेरा काँटा, तेरी तौल, हिसाब किताब भी तेरा 
रहमत तेरी मुश्किलें तेरी, जैसे चाहे नवाजे तू 



नियामतों से इंसानी गरूर का वजन बढ़ता है 
ऐवज में तेरे लेने से मगरूर का सर झुकता है 

संतुलन दो पलड़े बीच, ऐसा भी होता देखा है 
जन्मो का हिसाब किताब 'इसमें' होते देखा है


कौड़ी फेंकी पाँसा इतउत पड़े,यदि योग न हो 
तबभी प्रिय से रंज या खारिश की बात नहीं है


मुक़द्दसचाक पे चढ़ घूमता घेरा बड़ा लगता है
है कर्ज बड़ा, तो चुकने में वख्त बड़ा लगता है

अभी ले रहा वो आपसे, ये उसकी मर्जी करम
न हारिये ! स्नेह की पूंजी जमा-खाते में डालिये 


कर्म का लेन देन काल में ऐसे भी होते देखा है
देगा तो! समझ संग ये झोली कम पड़ जाएगी


संतुलन ! दो पलड़े बीच ऐसा भी होता देखा है 
जन्मो का हिसाब किताब इसी में होते देखा है

Sunday 15 October 2017

गर मुसाफिर तुम तो वोभी राहगीर ही है


खेल कुदरत का सारा इकतरफ़ा नहीं है
गर मुसाफिर तुम तो वोभी राहगीर ही है


सिखाता है जो स्वयं सीखता भी सतत है
पढ़ाता भी है स्वयं पढता भी शिष्यवत है

एक नियम, एक दस्तूर, इकबात है प्यारे
रुलाता जो अक्सर, खुद में रोया बहुत है

हैरां हो क्यूँ अचरज तुम्हे हुआ क्यूँकर है
वह धैर्यधारी ही धैर्य धरवाता भी बहुत है

गुरुधर्म, देवधर्म, इन्सां धर्म दुष्कर बहुत
समय की कसौटी पे चढ़के कुंदन बने है

चाक पे चढ़गुजरे है सिद्धअनुभवी पहले
ब्रह्मामुख खुला था, हम पीछे चल पड़े है

दूर नहीं! प्रथम गुरु माँ पिता को देखिये
उनके सिखाये समझने में, बरसों लगे है

lata , 16-10-2017, 12:10

बोलिये के बोलना जरुरी है


बोलिये 
के बोलना जरुरी है
लोगो से नहीं तो पेड़ों पौधों से बोलिये
पाल लीजिये पशु-पक्षी चू-चूं गुटरगूं उनसे कीजिये


बोलिये 
के बोलना जरुरी है
पेड़ न तो मौन ब्रेल की बोलियां बोलिये
हांथो से गर नहीं तो पैरों को भी शामिल कर लीजिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
हाथ पैर भी बेअसर होने लग जाएँ तो
मौन हो बैठिये, और खुद से, ह्रदय से प्रेम से बोलिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
गढ़गढ़ सांयसायं झरझर तड़ितकड़क
मौन प्रकृति के सुर गुह्य, रहस्य क्या कुछ तो सोचिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
नृत्य के घुंघरू बजे संगीत के स्वर सधे 
उँगली को जुबाँ दे, रंग तूलिका से चित्रकारी साधिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
संवेदनशील कवी या लेखक हो, कहिये
पर बोलना बहुत जरुरी है कुछ कीजिये पर बोलिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
बोलियां दबाने से फोड़ा फूटेगा रिसेगा
नासूर न दबाइये, ह्रदय के स्वामी परमेश्वर से बोलिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
मौन अवसाद या विषाद हो, ध्यान दीजिये 
मौन उभरे चिरचिरन्तन का स-आभार ध्यान कीजिये

बोलिये
के बोलना जरुरी है
न बोलिये जहँ बोली हो धुआंधार बेहिसाब
सुनने की न दरकार हो, वहां प्रेम से प्रणाम कीजिये

Lata
Sunday , 15 Oct , 2017 , 15:32

Saturday 14 October 2017

मुसाफिर


बंजर हैं बिखरे न देख पलट के दोबारा आस से 
टपका जो मोती इन रेत के टीलों में खो जायेगा 
मिलों दूर तक रेत उड़ाती है हवा की सांय सांय 
इस मीठे पानी को संभलके रखले दिल में प्यारे

बरसों पुरानी जो बुनियाद में लग गयी दीमकें है
उनको जान बूझ के पालने का दिल नहीं करता
मुसाफिर आशियाना उठा तू कहीं और चलपड़
बंजर में रेत के महल बनाने को दिल नहीं करता

दिल में हिलोरे लेता मीठा मानसरोवर अगाध है 
और; वहीं छुपी रौशन बेशकीमती खदान भी है 
एक लौ जला, तू ले साथ में चल ले निडर होकर
तेरा प्यारा, न जाने कब से वहीँ पे इन्तजार में है

Lata 
Sat 14 oct 2017,16:13

Friday 13 October 2017

ऐसा क्या तुम कहते जाते


ह्रदय में  उद्गार उबलते
कोरा पन्ना भी , हांथो में
मानो लेखनी रूप झाड़ू
हो जादूगर के हांथो में !

हृदयदवात, रक्तस्याही
कलम डुबोता कविमन
इकइक अक्षर शब्द में
शब्द ढले वाक्य में, ओ
वाक्य सक्षम वाकया में

तब भी; इंसान इंसान है
हाथ में थामे कोरे पन्ने पे
अपने अपने स्वभाव भी
उभरते हैं सुर्खस्याही से

लाल सूखा, हुआ काला
कवी की देह, हुई पीली
उसपे मन उसका नीला
कैसी जादूगर तेरी माया

कह-सुन , न कहा सुना
समझ न आया, किस्सा!
लेखनी छूटी  ऊँगली से
सुर्ख स्याही से भरी-पूरी
अथक निरंतर लिखे भी
सीसी लुढ़की कागज पे
तब भी था वो पूरा कोरा 

मौन हुआ, कवी असमर्थ
सर लुढ़का पन्ने के ऊपर
किंचिद न लिख सका वो
ऐसा क्या तुम कहते जाते

FRIDAY 13, 0ct, 08:41
Lata 

मेरे बावरे

ॐ 
लोग कहेंगे पगला है चुप हो जा मेरे बावरे 
क्यूँ कहे तूने देखा आज सूरज पहली बार 

चमक चमकीली ऐसी न छिप सका अँधेरा  
ये भी के उठ 'आवरण' से ऊपर मुझे देखा 

तब देखा नग्न आँख से,  वो दृश्य अलबेला  
क्यूँ बातें करता ऐसी पगला तुझे लोग कहे 

जो कहा तो,देखा तूने, झूठ क्या तू जाने न 
मैं जानू मैं ही तो वो हूँ जिसको तूनेदेखा है

मौन कर ध्यान धर मेरा सायना प्यारा है तू 
मेरे दिल का टुकड़ा तू ही, राजदुलारा तू है 


Lata 13-10-2017

Thursday 12 October 2017

क्युंके जीवन में संतुलन का भाव अच्छा है



ॐ 
नदी बहे अपनी सीमाओं में, अच्छा है ! सूरज दहके अपनी मर्यादा में तो अच्छा है !

चंद्र-चन्द्रिका अपनी सीमा में शीतलता दे, धरती घूमे धुरी पे मर्यादित तो अच्छा है ! 

मौसम बदले, पर स्वस्ति-भाव अच्छा है, प्रकर्ति में अनुशासन का स्वभाव अच्छा है !

ज्ञानसंतुलन निद्रासंतुलन योगसंतुलन क्षुधासंतुलन राग से विराग का भाव अच्छा है ! 

कुछ भी कर कीजे, साधिये मद्धम मार्ग, क्युं के जीवन में संतुलन का भाव अच्छा है !


Lata
Thursday 12,0ct,2017, 20:22
🕉️