सदियों का सिलसिला
चलो ! शुरू करें , शुरू से
बारम्बार बंटते बिखरते हुए
रास्तों की दास्तान
और हम बीच धार में बह रहे सदियों से
एक धारा ने जन्म लिया
स्त्रोत एक और धारा एक
बह चली चंचला जोर शोर से
भागीरथी बह रही इठलाती
उमड़ घुमड़ बह चली
पर्वत से सागर की ओर
समय बीता नए रास्ते
कुछ इधर बहे कुछ उधर बहे
और हम बीच धार में बह रहे सदियों से......
जो गए उधर वो चले गए
जो गए इधर वो भी चले गए
जो साथ में रह गए बह गए
फिर समय बीता चला
फिर रास्ते फूटने लगे
कुछ इधर बहे कुछ उधर बहे
और हम बीच धार में बह रहे सदियों से.....
ख़तम कहाँ सिलसिला होता है
जो साथ बहे वो फिर बटें
फिर समय बीता फिर नए रास्ते बने
कुछ इधर बहे कुछ उधर बहे
और हम बीच धार में बह रहे सदियों से....
सदियाँ बदली कलेवर बदले
नाम बदले देस बदले
भेस बदले रूप बदला
अंग प्रत्यंग बदल गया
धाराएं बनी उन धाराओ की शाख बनी
फिर शाखें बनी और वो भी बदली
उन शाखाओं के भी परिवार बने
बनने बिगड़ने के इस दौर में
फिर समय बीता फिर नए रास्ते बने
कुछ इधर बहे कुछ उधर बहे
और हम बीच धार में बह रहे सदियों से.....
और हम बीच धार में बह रहे सदियों से.......
Om Pranam
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Om Pranam
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