Monday, 7 April 2014

स्वागत है उन सबका

आओ बैठो हंसो हंसाओ, ज्यादा पियो और थोड़ी पिलाओ 
स्वागत है उन का जो समंदर में डूब के अस्मा के पार हो गए 
स्वागत है उन सबका जो निर्भार हो रहे और कर रहे 

स्वागत है उन सभी का जो इस पार से उस पार हो गए।

जो पार हो चुके या समझ चुके शब्दो का नाट्य को
जो पहचान चुके या जान रहे भावो के लहराते सागर को
जिनको छू रही जिनसे आ रही सुगन्धित मलय पवन
स्वागत है उन सबका जो सरल और तरल से बह रहे।

जो पहचान चुके नर्तन की एक एक कला को
जिनके आने और जाने का हवाएं पता देती है
रंगो सा उतरना , नदियों सा बहना , फूलों सा खिलना ,
चिड़ियों सा चहचहाना , हवाओं सा बहना , संगीत सा बिखरना ।


जिन्होंने जी लिया जीवन ओ अद्भुत छू लिया उत्तंग पर्वत
जिन्होंने रंग लिया खुद को , गा लिया , नृत्य में जो डूब गए
जिनको प्रकृति ने आगोषित कर लिया या वे स्वयं प्रकृतिमय हो गए
स्वागत है उन सभी का अत्तियों को जी कर ; अंत में जो मध्य में ठहर गए। 


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