Monday 10 February 2020

भाई अब्दुल्ला


भाई अब्दुल्ला कैसे-कैसे जो सब कह रहे
ये तो हमने सदियों पहले ही कह दिया था
बहुत दोहराया बहुत बार कंठस्थ किया है
फर्क ही समझ नहीं आया, बोलो क्या करें
तकरीबन भी समूल सब एक है, क्या करें!

घर का नन्हा मनुहार से प्राणयोग सिखाता
सांस लेता मुस्करा के जब तरकीब देता है
उसपे घुड़की भी के बुजुर्ग बच्चा न समझे
बच्चे सी जिद्द ले बैठे ऐसे बैठो यूँ ही झुको
देखो न दिल पे हाथ हमने रखा तो हुआ है

अब... कितनी बार वो ही एक बात कहेंगे!
अपनी ही बात मनवाते हो घर के बुजुर्ग से
पर उसका कहा तुमको समझ नहीं आता
अजब खेल तुम्हारे लड़कपन-मिजाजी के
न खुद बड़े होते हो, न उसे ही होने देते हो

हाय-तौबा मचा रखी बेवजह तुमने कब से
हम और तुम क्या अलग भाषा बोल रहे है!
घर्षण हमारे कंठ में और कम्पन जिव्हा में
दौड़ता रक्त, लगती भूख सोच निद्रा भी है
जन्म से लेकर मृत्यु का मार्ग हमारा एक है

हे राम अब क्या कहें, बोलो तुम्हे क्या कहें
अड़ियल बच्चे सी नादानजिद्द जो करते हो
न करो खिलवाड़ अपनी अस्मिता के साथ
माया के बाग़ है यहाँ सजे माया के खेल हैं
शाम का वख्त हो चला, चलो! अब घर को

Saturday 8 February 2020

न मालूम हुआ क्या था

इक खाली से मौसम में उम्र चुकाते हुए
तनहा एकदम अकेला सा ख्याल आया

तमाम इस जद्दोजहद की वजह क्या थी
क्यों युद्ध में जंगी योद्धा बन उम्र गुजारी

नंबर पढ़ाई शोहरत रुतबा पैसा  ही नहीं
हमने समझदारी भी लड़ते लड़ते कमाई

शतरंज की चौपड़ पे खेल खेले जी भर के
हमीं राजा, हमीं रानी, हमीं वजीर प्यादे थे

दोनों तरफ हारजीत जंगी ऐलान हमारे थे
हारे या हमीं जीते भी सारे मोहरे हमारे थे

न दुश्मन था सामने न ही फ़ौज का दस्ता
वजह थी क्या जो शूरवीरों सी उम्र गवायीं

अपने ही निशाने थे, तीर भी सारे हमारे थे
किसी ने कहा भी नहीं तुम्हारी जीतहार है

सरपट दौड़ शुरू हुई , गाजर बंधी पूँछ पे
माहौल जिसने दौड़ने को मजबूर किया था

बागों की सैर, वो चश्मे, वो खिलते कमल!
चाय की चुस्की, खाने का निवाला, मुहाल!

कहाँ वख्त था के दो घडी रुक इन्हे देखते
इनके साथ उनका हाथ अपने हाथो में लेते

पैसों का इंतजाम जितना भी हो कमतर था
कहाँ वख्त था जो अपने खिलोनो से खेलते

वख्त से दौड़ ख़त्म, जोश, सेहत भी ख़तम
ये सोच ताजा  है के न मालूम  हुआ क्या था

कुछ यूँ भी कहते है, सब बुढ़ापे की बाते है
सब कुछ लुटा के, हम भी ऐसे सोचा करेंगे

मुमकिन है ऐसा हो फ़िलहाल सब लुटा नहीं
मैंने तो जरा पहले, सँभलने की दस्तक दी है

इससे पहले जोश होश खत्म सेहत भी खत्म
सोच की सोच न हो के न जाने हुआ क्या था

08/02/2020
08:24 pm
Lata