सात रंगो के वस्त्र बनवाये
सूरज चाँद सितारे जड़वाए
इत्र डाल तन पे औ मन पे
हल्दी चन्दन लेप किया री !!
हो गयी तैयार श्रृंगारिका
चमचम घुंघट मुह पे डाल
जाऊं इस बार पी के साथ
पलट के न आऊँ इस देस !!
चार काठ की बनी सवारी
पावन मंगल बेला आयी
गाये मंगल गान सखी री
पूरा हुआ दुल्हन श्रृंगार !!
दुंदुभि बाजे होे रही विदाई
औघड़ फ़क़ीर बने बाराती
विदा की बेला चढ़ि आयी
ना हो तनिक उदास आली
गीत गाते दे मोहे विदा सखी
काहे दोई नैनन भरे तू नीर !!
ॐ ॐ ॐ
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