Saturday 24 December 2016

Pranayama - Yoga for Life

Breath In and Breath Out 
Inhale Life & Exhale Life  

श्वांस अंदर को ले , श्वांस बाहर करना 
जीवन अंदर लेना जीवन बाहर करना 

Pranayama-Yoga For Life:-
Breathe In & Breathe Out
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Recalls Ever First Breathe
A deep and Deeper In-hale
A first Oxygen filled in lungs
Tiny Body get full of Energy
Who did ! only by you to self
Remedy kit for Self Survival
After cry&crave takes shape
A therapy run throughout life
In Healthy Mind Body n Soul
Breathe In than Breathe Out
Love In, that Loves keep out
Care In, that Care comes out
Wakeup in Than Wakeup out
Whatever goes in, comes out
Goodness take in & come out
Energy Convers & Consumes
Quality Food for Body n Soul
Did you hear nd feel the cycle
"Those grew on Queen's Lap -
Can Spread Love, Alike King "
The Love can grow sensitivity
Sensitivity-Ship gives fly-high
Fly high of unbounded territory
And The Soul get new Birth
Transformation; takes place
Via Breathe In & Breathe Out
Om Pranam
Awake well and Sleep well , 
Breath well - Pranayama

* Don't take The liability of act , you can not ! it happens in flow automatic  as breath comes in and goes out . Accept it .


© Lata's World (24 -12 -2016)

प्राणायाम योग जीवन के लिए 
सांस अंदर  लें   सांस बाहर दें 

याद करें ! अपनी सबसे पहली
अंदर खींची गहरी और गहरी  सांस
प्रथम जीवनदायी गैस फेफड़ों में भरी
वो प्रयास  नन्ही से देह नवऊर्जा से भरी
किसने किया वो  आपने  अपने लिए
संघर्ष में उपचार का अनोखा विधि-सूत्र
उसके बाद इक्षा के लिए  चीख और रुदन
एक स्वस्थ शरीर बुद्धि  और आत्मा के लिए
यही विधि पूरे  जीवन  साथ चलती है
गहरा स्वप्रेम कीजिये ,  गहरा प्रेम दीजिये
गहरा स्वसंरक्षण कीजिये , गहरा संरक्षण दीजिये
गहनतम जागरण कीजिये वो ही जागरण दीजिये
जो भी अपने लिए अंदर लेंगे वो ही बाहर  निकलेगा
अच्छाई  अंदर लीजिये अच्छाई ही बाहर आएगी
ऊर्जा का संरक्षण और खपत
उच्चकोटि  का भोजन देह और आत्मा के लिए
क्या आपने  वो चक्र सुना महसूस किया है -
"जो रानी की गोद में पलते बढ़ते है 
वो ही  एक राजा के समान प्रेम कर  सकते है "
प्रेम संवेदनशीलता को जन्म देता  है
संवेदनशीलता-जहाज देता है  देहयंत्र को ऊँची उड़न
ऊँची उड़ान सीमारहित सीमाओं में प्रवेश करके
और आत्मा नवजीवन  प्राप्त करती है
रूपांतरण ; संभव होता है
अंदर आती  और बाहर  जाती श्वांस के द्वारा

ॐ प्रणाम 

उचित जागरण , उचित निद्रा 
उचितअनुलोम विलोम प्राणायाम 

*  अपने किये की जिम्मेदारियों के बोझ को मत लीजिये  ये होना प्रकर्तिक है , जैसे सांस  का आना और जाना।  अगर श्वसन स्वाभाविक है तो  होना भी स्वाभाविक है।  स्वीकार कीजिये।  


© Lata's World (24 -12 -2016)

Thursday 22 December 2016

और भी समृद्ध हो आत्मश्रृंगार

नितप्रति-निरंतर-नूतन और भी समृद्ध हो आत्मश्रृंगार 


एकल समृद्ध साहित्य भाषा कोष आग्रह बारंबार 
पुनः आवर्ती न हो , एकार्थी हो जो , ऐसा दो शब्दश्रृंगार 

ऐतिहासिक श्रृंखला से समृद्ध संगीत में एकलयता  
एक बांसुरी पे सजे एकतरंग में हो , ऐसी दो धुन संवार

अनगिनत चित्र में अनेकों  रंग हजार फैले बेतरतीब 
हो अद्वितीय वो एकचित्र उसमें मात्र दो एक रंग उभार

बनते मिटते नृत्य में टुकड़े लयताल , है मेल अनेक 
अनुपम शिव एकनृत्य उसमें एकलय एकताल का सार 
एकल समृद्ध  सम्पन शक्तिमान निधियों  आओ 
जीवनयज्ञ में निमंत्रण,आह्वाहन स्वागत,दो आकर तार 

समृद्ध जीवन ज्योति सम्मुख  निर्जीव भीड़ समूह 
उतरो जीवन में सूर्यकिरण बन, दो ज्ञानप्रकाश उपहार 

© Lata
२२ १२ २०१६ 

Tuesday 13 December 2016

चलो ! नया बाँध बनाये ......!


सत्य के आवरण
से बुने वस्त्रों  में
लिपट , सत्य के
कलेवर से संवरी
उस बीते काल की
सुव्यवस्थित सुंदर
बेतरतीब जीवनशैली
सजाई उन अत्तियों से
थी अपनी ही बनायीं
आपत्तियों  की  जनक
सभी उन रचित
परिभाषाओं को
बिना समय व्यर्थ किये
चलो ! नयी परिभाषा बनाये ......!

संकल्पित देह जन्म ले
स्व मध्य चिन्ह से मिल
अंतिम निवास पे ठहरे
क्यूँ न  जीवननदी सफर
सागर पे ही जा रुक-थमे
बीच में उथल पुथल से
किनारे स्वसंकल्प क्यूँ त्यागें
इस देह को अंतिम निवास,
आत्मगंग गंगसागर तो लेजाये
कुछ मिल जुल कर यूँ दोनों
इस जन्म का कर्ज चुकाएं
चलो ! नया संकल्प बनायें .....!

पत्थरों के तूफानों के
आघातों से ठहरी हुई
सहमी , किंचित शुष्क
किन्तु मद्धम हवाओं से
अभी भी भीगी मिट्टी
से उड़ती सोंधी सुगंध
जल का अनुमान कराती
हौले हौले डगमग करती
सुंदर पवित्र नदी को पुनः
कलकल छलछल स्वर से
जीवंत सतत चिर प्रवाह  दें ,
चलो ! नया बाँध बनाये ......!

© Lata
13 12 2016

Saturday 3 December 2016

मधुरं दृष्टि -1 and Meditation with Yogananda's "I will be thin always"

Meditational 

मधुरं सृष्टि:
मधुरं दृष्टि:
मधुरं वृष्टि:
मधुरं अग्ने:


मधुरं वायु: 
मधुरंगंधम
मधुरं अङ्गं
मधुरंसंगम


मधुरं भावं 
मधुरं मधुरं  
ते  वात्सल्यं 
वा कारुण्यं 


मधुरं मधुरं
सङ्गंदे मम

मधुरंवाच्यं  
मे देवसदा 

मधुरं ज्ञानं 
मधुरंध्यानं 
मधुरं योगं 
मधुरं भोगं 

मधुरं मधुरं 
प्रेम् दे मम 
मधुरं मधुरं 
तुर्यं दे मम 

मधुरं सृष्टि
मधुरं दृष्टि

मे देवसदा
मे देवसदा


 © of Lata  
Madhur Drishti 
03-12-2016
new making - 03 -7-2017