Friday 26 July 2019

फ़क़ीर की डायरी


भाग्य से कर्म से मैं फ़क़ीर हूँ
मेरा नया पता -
इधर ... डिस्ट्रिक्ट
हिम्मत ... नगर
और मैं ... प्रवासी
जब मैं इस धरती के टुकड़े पे उतरा
वो था हिम्मत का नगर
उसे अपने झोले में डाल मैं थोड़ा ही आगे चला
के मिला इधर जिले का इशारा
उस इशारे को अपने झोले में डाल आगे चला
तो मिली एक झोपडी जिसमे दिया जल रहा था
उस वीरान सी झोपडी में
मैंने खाली सी खूंटी पे अपना झोला टांग दिया
और जुट गया उसकी सफाई में
उस झोपडी में चौका बर्तन जुटा सश्रम
भंडारा कर मैंने भोजन पकाया
एकमुखी स्थान में निद्राकक्ष बनाया ,
देवस्थान में पूजन-ध्यान-योग किया
आत्मा को उससे मिलाने की अथक चेष्टा
सोना रोना छटपटाना सब कुछ शामिल था
पर सबसे बड़ी मुश्किल आयी
खूंटी पे अटके झोले को दोबारा
अपने कंधे पे डाल खुली झोपडी को
वैसे ही छोड़ के चल पडना, जैसे पायी थी।
जगह जगह खाने बैठने के निशान बिखरे पड़े थे।
और मैं फ़क़ीर सफाई कर कर के थक चूका था
अचम्भा देख ..., अचरज से भरा ..., मैं
हतप्रभ ! स्थानदेव को प्रणाम कर
अगली यात्रा पे निकल पड़ा
25-07-2019 Lata to संत Bhagwatidas Nandlal bhayi ji

सुनो! आज माली बहुत खुश है

उम्मीदों का बागीचा


सुनो! आज माली बहुत खुश है
बैरन जमीं की सौगात मिली है
सोचता है कल से क्यों आज से
शुरू करे गुड़ाई रोपाई बुआई!
अभी बस बरसात होने वाली है
हरियाली से बादल की गड़गड़
ऊपर इंद्रधनुष दिखने वाला है
और ये गुलिस्तां खिलनेवाला है
चिड़ियाँ घरोंदे बना,चचहायेगी
तितली का जत्था उड़नेवाला है
सुगंध फूलों की भीआनेवाली है
उसकी मेहनत रंग लानेवाली है


Friday 19 July 2019

छोटे शिवा

छोटे शिवा
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आमंत्रण है इस राह के पथिक का तुमको
इस उपवन में चहुँ सुवास का ही वास है।
ये तो नहीं पता के कब क्या और कितना
बेचैनियाँ दुश्वारियां झंझावात जो जीवन के
तुमसे तुम्हारे अधूरेपन की कहानी कहेंगी
इठलाती बलखाती हरहराती गंग उतरेगी
शिवसम उन्हें बांधने को योगी तो होना है!
समेटना विशालप्रवाह को मस्तकजटा में
सर्व मंगल को उसकी स्निग्ध धार काफी है
चन्द्रकला भी जटा में अटकाना छोटे शिवा
19/07/2019
वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा
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देखो वो आकाश से उतर रही है सीधा तुम तक
वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा दुग्धधार सी उज्जवल गड़गड़ करती अमृतमयी वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा सुखदुख कर्मजाल मेल लिए ,तुम्हे स्नान कराती उसे न देख पाओगे तिनके से अस्तित्व के साथ वो जीवनदायनी गंगा, बाद माँ वत स्नान न करा जटा में आ बैठ जाएगी, भुलशोनथी छोटे शिवा याचना एक धार का करेगी सर्वकल्याण के लिए वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा अस्तित्व-बीज को धरा में बो दो यहीं छोटे शिवा वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा योगतप से वृक्षसम जब स्थिर सुदृढ़ सक्षम होना वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा सुलझाना न विशाल जटाएँ खोलना छोटे शिवा वो जीवनदायनी गंगा है, भुलशोनथी छोटे शिवा
20/07/2019

Wednesday 10 July 2019

हमेशा देर कर देता हूँ मैं ( ghazal/poetry by Munir Niazi)

हमेशा देर कर देता हूँ मैं / मुनीर नियाज़ी (Muneer Niazi)

1923 - 2006LahorePakistan
Pen Name :'Muneer'
Real Name :Mohammad Muneer khan
Born :09 Apr 1923HoshiarpurIndia
Died :26 Dec 2006
ik aur dariyā sāmnā thā 'munīr' mujh ko
maiñ ek dariyā ke paar utrā to maiñ ne dekhā
Munir Niyazi was a famous poet. He was born at Khanpur, district Hoshiyarpur (India). After the partition of India, he migrated to Pakistan and settled in Montgomery and later in Lahore. In Montgomery, he had started his own publishing house and had also started his weekly journal called Saat Rang. Munir has been associated for long with several literary societies and was admired in both India and Pakistan. His poems had been widely circulated and translated into other languages. He has also written poetry in Punjabi language. Munir wrote numerous songs for films and made his name as the foremost movie songwriter of Pakistan. Some of his publications include Tez hawa aur tanha phool, Mah-e-Munir, Pahli baat hi akhri thi. In recognition of his literary achievement, he was honoured with “The Pride of Performance” by the Government of Pakistan. Munir was also a sportsman, a horse rider, a rifle shooter and a swimmer.




SEE GHAZAL:-

ज़रूरी बात कहनी हो 
कोई वादा निभाना हो 
उसे आवाज़ देनी हो 
उसे वापस बुलाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

मदद करनी हो उसकी 
यार का धाढ़स बंधाना हो 
बहुत देरी ना रास्तों पर 
किसी से मिलने जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 

बदलते मौसमों की सैर में 
दिल को लगाना हो 
किसी को याद रखना हो 
किसी को भूल जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 

किसी को मौत से पहले 
किसी ग़म से बचाना हो 
हक़ीक़त और थी कुछ 
उस को जा के ये बताना हो 
हमेशा देर कर देता हूँ मैं 


The Ghazal get popularity due to tuches general

of each and every human behavior; In person, whose realizes 

later with regrets,

 small reason of Ignorance and the time to express get slip.

later;  the precious can goes away.

This story can be any of us , here is knock by precious time, 

be in time for time.

- मुनीर नियाज़ी  साहब 

ने अपनी बात ग़ज़ल में कह तमाम भाव को भी छू 

लिया  और  मशहूर हो गयी उनकी ग़ज़ल अपने भाव के साथ।  

इस देरी से आने वाले भाव से हर पीड़ित जिसका समय के 

साथ कुछ कुछ बह जाता है और नि:सहाय सा मन मसोसता 

सोचता रह जाता है - हमेशा देर कर देता हूँ मैं !!