Monday, 7 April 2014

खंड खंड से पाया वो अखंड,फिर से खंड खंड (Hindi Poem )


ॐ :

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खंड खंड से पाया वो अखंड,
छूते ही फिर से हुआ खंड खंड 
कभी ये कभी वो, कितने नाम !
नाम जितने भी दिए,खंड उतने ही हुए
फिर वो ही खेल .. खंड खंड से जोड़े अखंड का 
तू अखंडित हुआ फिर से ... बारम्बार खंड-खंड !
स्वप्निल रुपहला झिलमिल बिखरा सा आसमां में 
छूते ही पोर से झट बिखरा सितारों सा तू इस जहाँ में 
स्वप्निल ताने बाने सा , इसमे अलग उसमें अलग-अलग दिखे ! 

ॐ प्रणाम

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