ॐ :
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खंड खंड से पाया वो अखंड,
छूते ही फिर से हुआ खंड खंड
छूते ही फिर से हुआ खंड खंड
कभी ये कभी वो, कितने नाम !
नाम जितने भी दिए,खंड उतने ही हुए
फिर वो ही खेल .. खंड खंड से जोड़े अखंड का
तू अखंडित हुआ फिर से ... बारम्बार खंड-खंड !
स्वप्निल रुपहला झिलमिल बिखरा सा आसमां में
छूते ही पोर से झट बिखरा सितारों सा तू इस जहाँ में
स्वप्निल ताने बाने सा , इसमे अलग उसमें अलग-अलग दिखे !
ॐ प्रणाम
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