Thursday 15 October 2020

दिन की कहानी



मुन्धेरा है सूरज अभी नहीं निकला

जरा में रौशनी होगी चूल्हा जलेगा

सौंधी चाय कपों में धुंआ उड़ाएगी

खटिया पे माँ! जिसे घेर सब बैठेंगे
आने वाले उत्सव चर्चा का मुद्दा है

चाय की चुस्की बजट की बात है

कुछ दिन बाद त्यौहार की तड़क

उसके लिए भी जरुरी तैयारियां हैं

हर चुस्की में जाड़ा खटखटाता है

बात चीत में हंसी की खनखनाहट

आँगन में होती पायल की छनछन

वृद्ध आँखों में मुस्कराती चमक है

चाय की चुस्की सूरज की लाली है

दिन का आरम्भ मिलने का तांता

काम पे जाने की जल्दबाजी भी है

बस यूँ ही दिन चढ़ेगा शाम थकेगी

संध्या चूल्हा जलेगा चाय खौलेगी

फिर रात्रिभोज में सब इकठा होंगे

खटिया पे माँ! जिसे घेर सब बैठेंगे

कुछ कुछ किस्सा दिन की कहानी

एक दूसरे का बोझ... हल्का करेंगे

अपने अपने कमरों में सोने जायेंगे

यूँ ही दिन महीने साल बीत जायेंगे

अब वृद्ध वो नहीं , कोई और होंगे

वही मुन्धेरा सूरज भी नहीं निकला

जरा में रौशनी होगी चूल्हा जलेगा

सौंधी चाय कपों में धुंआ उड़ाएगी

Wednesday 2 September 2020

सच कहना ...

क्यूंके ... तुमको सब पता है
क्यूंके ... तुमको सच पता है
सहमे...कुछ डरे क्यूं रहते हो
सच  से  घबराये  दिखते  हो
सच कहना ...

(इस पार डरे तो भीरु हो, उस पार से, तो अन्जाने हो)

क्यूं के... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको सच पता है
तभी...किसी निरीह चिड़ी से
पंख में बच्चे  छुपाये  बैठे हो
सच कहना ...

(इस पार में हो कर्मा है, उस पार मेंतो प्रारब्ध है )

क्यूंके ... तुमको सब पता है
क्यूंके ... तुमको सच पता है
तुम्हारे... हाथ न रहने वाला
ये  सच  भी  फिसलने  वाला
सच कहना ...

(इस पार हाथ में नन्हा क्षण उस पार विस्तृत काल है)

क्यूंके ...तुमको सब पता है
क्यूंके... तुमको सच पता है
आत्मथरथराहट को छिपाते
तभी ...उपाय ढूंढते रहते हो
सच कहना ...

(इसपार तो मात्र प्रयास है उस पार फैला 'पुरुषार्थ' है)


बिजली ... कहीं ना  गिर जाये
शंकित ... घबराये से  रहते हो
जलन / तड़प  कम करने को
उसकी... देहरी पे जाते हो ना
सच कहना ...

(इस पार जो लगते संग्राम हैं उस पार  संग चलता 'पुरुषार्थ' है)

तनमन दग्ध जिस-जिस से
विष कम करने जाते हो ना
क्यूंके... तुमको सब पता है
क्यूंके... तुमको सच पता है
सच कहना ...


योगी... जो जीना है सिखाता
भय-मुक्त ... विश्वास दिलाता
फिर भी... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको  सच  पता है
सच कहना ...

(इस पार देह का साथ है, उस पार अकेला चैतन्य अथाह है)

Part two

सच कहना ...

सारे विषय... तुमको पता हैं
अद्भुत तुम्हारा बौद्धि-बल है
सच में... तुमको सब पता है
क्यूंके... तुमको सच पता है
सच कहना  ...

(सूर्य की हजार फैली किरण में एक किरण के रश्मिरथी तुम)

तुमको... इतना सब पता है
कहो... कहाँ अञान तमस है
क्यूं के... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

पराक्रम    पुरुषार्थ   तुम्हारा
कला विज्ञन गणित तुम्हारा
क्यूं के... तुमको सब पता है
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

(एक किरण पे हो सवार चल पड़े तुम तो अनंतद्वार)

विषय महारथ, पारितोष-युक्त
सतत... अज्ञानी होने का भाव
मूल से... तुमको जोड़े रखता
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

संगीत नृत्य लय थाप तुम्हारे
अखंड  ज्ञान  सैलाब  तुम्हारा
प्रकर्ति माँ की... गोद तुम्हारी
क्यूं के... तुमको  सच  पता है
सच कहना ...

पुरुषार्थ   धनी   प्रेम  अवतार
चलो... चलो ; थोड़ा और पार
पार!... क्यूं के अपार तुम्ही हो
क्यूं के... तुमको सच पता है
सच कहना ...

 (कर्मयोगी अनहोनी से न घबराना और कभी अनिष्ट न करना)

 उस  पार  भी यही  पुरुषार्थ है
प्रेम ऊर्जा  का  सुंदर संसार है
अजेय... न भूल जो किरदार है
क्यूं के... तुमको  सच  पता है
सच कहना ...


सच कहना ...

क्यूं के... तुमको सब पता है

क्यूं के... तुमको सच पता है



क्यूंके जानते हैं सभी ...

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जानते हैं सभी जानां- ये झूठ है

खिलखिलाते हँसते गाते नाचते

रहते हैं  सभी उसके साथसाथ

एक खूबसूरत से सच की तरह

 क्यूंके जानते हैं सभी ...


कुछ ऐसे ही; पेशे या किरदार

उलझे सुलझते जाते धागे जैसे

अपने अपने वख्त पे गाँठ तोड़

चले जाते खरम्मा, सच के साथ

क्यूंके जानते हैं सभी ...


अभिनय को कौन नहीं जानता

कलाओं से कौन वाकिफ नहीं

सभी जानते हैं सब कुछ मगर

रहते हैं खुश एक सच की तरह

क्यूंके जानते हैं सभी ...


नशे की बात  न करें आप क्यूंके

सभी के मयकदे अपने अपने हैं

सभी के प्याले, छलकते जाम हैं

सभी को बोतलें, सभी नशे में है

क्यूंके जानते हैं सभी ...


किरदारों आवाजों संगीत की गूँज

चरसी ठरकी में डूबे धुएं के कश

नशे में नशा और उसमे भी नशा

सजे उजड़ने को  पंडालों की तरह

क्यूंके जानते हैं सभी ...


पुरुष का पुरुषार्थ , स्त्री का समर्पण

रुचि में डूबे बालहठ की उपलब्धियां

उपलब्धियों से जुड़ती जाती सुविधाएँ

सुविधा में खो समाज सुदृढ़ हो जाता

क्यूंके जानते हैं सभी ...


गलत क्या ये कसमसाहट में देखो

बेचैनी में शक्ति के पाखंड में देखो

पीछेपीछे दौड़ते उन चेहरों में देखो

नर्मी के बदलते तेवर गरूर में देखो

क्यूंके जानते हैं सभी ...


और फिर जब सब्र के गगरे छलकते

बैठते भरम दूर करने भरम के साथ

भरमाते विष को काटते विष के साथ

और सच दूर खड़ा मौन इन्तजार में

क्यूंके जानते हैं सभी ...

Tuesday 1 September 2020

मेरे जीवन के निबंध

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मेरे जीवन के निबंध उस्मे बंधे गद्यपद्य चंद बुद्धि और भाव संग बनते बंधते मेरेअनुबंध मेरे अपने सुरा-पान रस घोले जीवन गीत विस्तृत फैली सड़कें उन प चलते गीत मेरे
मेरे जीवन के निर्झर फूट बहे कलकलकल है जीवन की कोयल गीत सुर सजाती जाती मेरा फैला उन्नत नभ पसरी फैली धरा मेरी इंद्रधनुष इक पल का पुष्प-गंध भी है क्षणिक गीत लयित सुरतार पे साँस गति पल-पल की फाहे से हल्के स्वप्न घेरे मदहोशी में है फाग मेरे मेरे जीवन के छंदबोल बंसी-तान से बहे राग मेरे

Friday 19 June 2020

धत्त तेरे की

'Dhatt Tere ki' is area specific-slang for express mix emotion of acceptance surprise and self stupidity.


१- 
मृगया सुन !  या  रेत है , कउनो    
शीतल सोता नाही 
 सुन मृगा ये मरीचिका और  तू है 
रेगिस्तानन माहि 


ओये! धत्त तेरे की

(O, Dear, this is sand, no cold spring, this is your desire and you are in the desert.  (slang))

२-
न.... तू धरिया ध्यान ! 
न.... तू सुनया सबद अकासा !
अब.... जैसी करनी..... वैसी भरनी 
पछताए का होये जब चिरैया चुग गयी खेत 
अजहूं चेत....

ओये! धत्त तेरे की
(neither mediate nor listened to the sound of the sky, As you sow, so you shall reap your deeds.(Proverb)  no need to regretful, the bird has devoured the field (Proverb)  still time is in hand....)(slang)

३-
 अंत न पाया , भटक गंवाया 
सुन -  धुन _ सुर_सुन 
फकीरा बजावे हाथ में ले इक तारा 
इक सुर बस एक धुन , बोलो - 
तारा रा रा रा  
अनहद उतरे,  धुन सुन,  झरे अकासा 

ओये! धत्त तेरे की

(Not get n lost all in wandering, listen to rytheme_ words, Fakira playing ektara, the divine showering blessings from skies.)
 ( slang)

४-
आधा लेवे आधा देवे , छलक छलक छलकाए, 
दुवारे साधु ठढ़ा भूखा प्यासा ही रह जाए
 काहे तोरी अधजल गगरी रिस रिस टपकत जाए
वाके नीचे उपजे फल की पौध सुखाये 

ओये! धत्त तेरे की
(Half takes half gives, the divine soul stands out thirsty and hungry, your pot spill-over,  and a plant gets dry beneath of dropping water.)
(slang)

५-
मो को कहे जग,  मैं बावरा
बावरा जग मिल हँस्यो मोपे 
लै चल ये लाठी माटुकी अब 
फकीरा ! देस बिराना होये 


ओये! धत्त तेरे की

(Says to me I am mad, the mad world is laughing on me. O fakira take your stick and water pot this world is not related to you.)
(slang)

६-
सोना गुड्डा-सोना गुड़िया दोनों मिल खेलें खेल
सोना खनके बन खन खन सिक्के 
सोना राजा , सोना नगरी 
सोना पहने छन छन छनके सोना रानी 
सोना सोना लट्टू माया 
मिट्टी-हुई-सोना, सोना-हुई-मिट्टी

ओये! धत्त तेरे की

(The gold boy-gold girl playing together, the gold sounded in the mettle currency, gold kind, gold citizen, ornamental wear gold queen, an illusion also becomes gold, the mud becomes gold the gold becomes mud. )
(slang)

७-
दिलों के लहराते ऊँचेऊँचे तूफ़ान देखो तो ! 
दिमागों के घुमड़ते प्रचंड उफान देखो तो ! 
सवालों में उलझे.... कई नादान... देखो तो ! 
सयाने... जवाब देते देते हैरान ... देखो तो ! 
हा     हा     हा     हा

ओये! धत्त तेरे की
(See the high tides of emotions see the storms of brains questions are entangled with innocents and wise surprised in continues answering. )
(laugh)
(slang)

८-
खूब ध्यान धरया .... खूब पहाड़ चढ़या
खूब दौड़या ....  खूब खेलया
खूब हाँस्या ... खूब नाच्या 

 खोदा पहाड़ निकली चुहिया, मैं जानूं ! 
हा  हा  हा  हा

ओये! धत्त तेरे की
(Loads meditate. loads go on hills, loads of runs and loads of play, finally I knew dug up a mountain and found mice (proverb)
( laugh)
(slang)

९-
उस वानर ने  
कुटिया में छोड्या पंजा 
तीन इक्छा में बंध गया मौला  
सोचे खा मायाबेल धतूरा , ये जग पूरा 
बौराया 

हा हा हा हा हा हा
ओये! धत्त तेरे की 

(That monkey leaves his paw of three wishes in house and my Inner wise god trapped, and wise thought all the world swallow thorn-apple getting mad. )
(laugh)
(slang)

१०-
क्या क्या पा लूं, कितना बटोरूँ 
बस ! ! ! बस ! ! ! बस ! ! !
हाथ खुले तो मिट्टी पायी बाकी बिखरा कीचड़ कीचड़ 
और पड़ा मैं लथपथ लथपथ 
ये अपना अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ

हा हा हा हा हा हा
ओये! धत्त तेरे की

(how much i  acquired how much i take, stop !!! Stop !!! Stop!!!  In last all open hand only resting dust in hand and i am surrounded with mud, fallen in stained stained stained. this was my firepath firepath firepath .)
 (Laugh)
( Slang)

११-
सुन हंसा !  सम्भल ले हंसा 
जम खडा द्वार तेरे देख , हंसा !
सिमित सरोवर  गोल गोल घूमे तू हंसा !
आगे कहाँ तलक तैरत जाएगा मूरख हंसा 

ओये! धत्त तेरे की   
हा..... हा ......हा ..... हा .......हा..... हा ......हा ..... हा

(Dear swan, take care of swan, the angel of death is in front of you, your limited pond, and you swim all around . how long you may swim.)
 (laugh)
( slang)

१२-
"धत्त तेरे की"
(slang)

१३-
"धत्त तेरे की" बोल , फ़क़ीर बोला..

(slang) sais Fakir said ---
.
१४-
ये इक 'सफर' है जिसमे तुम हो चलते 
मुसफिर 'उसका' हर कदम इम्तिहाँ है 
बीच राह में,  रुके.... हारे.... या थके हो
होगे कोई भी; उसकी औलाद नहीं हो
(this is a journey where you walking, Traveller his every step is the exam for you. if in mid you stop/failed/tired. whatever you are but not of a divine son.)


१५-
गिद्धों की टोली, घड़ियाल के आंसू हैं, बिल्ली की चालें, मकड़े के जाले हैं 
सांप की फुंफकार, शेरो के शिकार, जल, थल, नभ, दिशाओं के व्यभिचार 

कंठ प्यासा, प्राण आतुर, दिल में स्पंदन, पैर नीचे सुलगते जलते अंगारे हैं 
हारोगे मिटोगे तो तुम इंसा नहीं हो, होगे कोई भी ; उसकी संतान नहीं हो 

थम सोचना स्वजनक से बात करना पिता तुम्हारा हौसले जीवन से भरा है  
झुकना उछलना दौड़ना निज पथ पे खुश्बू सी पवित्रताएं तुम्हारी उन्नत हों 

गहनतम गहराईयों में अँधेरे गहरे हैं किन्तु योग के अन्तस में पुष्प खिले हैं 
सुबह की है,  भोर की है , आस की जो कर्म की है धर्म की है व्यवहार की है

अंधेरों में चमके रेख-किरण सूरज की सूरज निकलता सभी को जीवन देता 
शार्दुल और संत आचार-अनाचार भी, इनके बीच तुम रहते संघर्षी-इंसान हो

(translation will come soon)

१६-
फिर आसमान पे देख  हंसा -  
                                         हा..... हा ......हा ..... हा .......हा..... 

                                                                    बोला....
                                                               "धत्त तेरे की"

                                               मुसफिर चल पड़ा अपनी राह पे ....

(after that, he saw to the sky and laughed ...  and says (slang) then moved on,  on his path...

🙏
* आभार *

Thursday 11 June 2020

आज बढ़ती उम्र साथ सभी तोहफे को महसूस करता हूँ

आज ; समक्ष मेरे, तीनो काल-खंड में पसरा एक समय तीन टुकड़ों में पिछले अगला, और मैं मानो बँट गया हूँ और मैं , खड़ा हुआ हूँ इस रस्सी के ठीक-ठीक मध्य में 'पिछला' , वो तो सचमुच यादों के साथ पिछला हो चुका हाथ से फिसल जाता हुआ..अगला पल तो मछली जैसा और ये पल.. जिसमे खड़ा हूँ शून्य में झूला झूल रहा है और मैं... पैर ठीक से जमा खड़ा होने की कोशिश में हूँ कभी विचलित होता... पिछली यादों को पास बुला लेता जुड़ता तो 'अगले' पल के पास होने की कोशिश करता अपने 'इस' पल के पास होने का कभी वख्त नहीं मिला माँ पिता जी निश्चित जुझारू होंगे ठीक नहीं कह सकता पर, आज उस जुझारूपन को खुद में महसूस करता हूँ आज लगता है, उनका किया प्रेम भी 'अधिकार' था मुझे जबकि उस वख्त परमात्मा का दिया वो तोहफा था मुझे अगला पल मेरे प्रेम पे जब अपना अधिकार समझता है और मैं ! उस पल को उसकी इक्छा बिना, छू नहीं पाता
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आज मैं महसूस करता हूँ परमात्मा की इस 'सुविधा' को जो समय की तेज रफ़्तार के साथ खुशबु सी उड़ जाती है आज बढ़ती उम्र साथ सभी तोहफे को महसूस करता हूँ तीनो काल में फैला मेरा वजूद, इस पल में कसमसाता हूँ

Saturday 6 June 2020

कवि-मंथन


वाणी और लेखनी से अंगार झरें तो  
हे आर्त कवि  ये "मंथन" तुम्हारा है 

लाल स्याही से भाव तुम्हारे  
कर्मठनद धैर्य; नुक पे क्यूँ?
चोट करे गरु महासागर पे
लेखनी वन राख करे क्यूँ?

उदगम से चली कर्मसुंदरी  
ठानी मंजिल तक जाने की
मंजिल उसकी क्या सिवाय 
महासागर में मिल जाने की 


संघर्ष युक्त जीवन-स्पंदन 
सौंदर्य; धरा के आँचल में 
अन्तस् में दहक लावे की 
पर जीवन छल्के अंगों में 

आओ न! रचना करें हम
आह्वाहन कवि तुम्हारा है

नाव-शब्द खेलें लहरों से
भाव, समंदर से गहरे हों

कुछ ऐसे सुंदर शब्द हों
जो कुछ मेरे कुछ तेरे हों

स्वर, जो भाषा ऊपर हों
जो पीड़ा त्रास भरे ना हों

ना ही ह्रदय का रुदन हों
ना ही वे नैनों से बहते हों

विभीषिका समझते हों वे 
नर्म सुगन्धित फूलों से हों

उन्पे तेरा मन भ्रमर डोले
चुन शब्दकली माला बुने

मोहक तितली उपवन के
पुष्पित संसार में नर्त करे

मधुमख्ही से बैठे तौल के
उड़ें पराग कण मुँह में ले

चिरयिया से चूंचूं करते हों
कवि !तेरे शब्द चुनिंदा हों

रंगीं बयार से इठलाते हों
जो; मन का भय हरते हों

दारुण दुःख पे मल्हम हों
समय के विष हर लेते हों

नीलीज्वाला से शीत-तपित
कवि! बस वे सुंदर शब्द दो 

Tuesday 19 May 2020

यकीं करो ; आसान है!




बहुत मुश्किल कहाँ है

(Music: LIQUID_TIME)


बहुत मुश्किल है 
नित्य ईश्वर को पराजित होते देखना
फिर भी उन पर आस्था बनाये रखना..
बहुत मुश्किल है
नित्य सत्य को टूटते देखना
और फिर भी विश्वास करना कि अंततः विजय इसी 
की निश्चित है..
बहुत मुश्किल है 
दीन निर्बल को रोते बिलखते देखना
और विकास की बातें सुनना..
बहुत मुश्किल है 
इंसानों के कुकर्म गिनना 
फिर उसे इंसान कहना..
बहुत मुश्किल है 
अपमान के घूंट पीना
फिर भी समर्पण करना..
बहुत मुश्किल है
हज़ारो किलोमीटर दूर बैठे प्रियजन से कहना
कि तुम बहुत याद आते हो..
आसान नहीं है अविश्वास के स्पष्ट प्रमाण होने के 
बावजूद
आंखे मूंद विश्वास करना..
बहुत मुश्किल है लाख कड़वाहटों के मध्य प्रेम चुनना और हर बार चुनना..                                                                                                                                                                                                                                  ~निधि~


सच में; मानती हूँ 

भाव वेदना जो  बाह्य पे आश्रित 

बाहर .......अप्रत्यक्ष को .......... पकड़ना 

मुश्किल ही नहीं....नामुमकिन भी है।



इंसानो की इंसानियत को 
परमात्मा के प्रमाण को 
आस्था का बिखराव को 
टूटती आस की लौ को 

सत्य को चटकते देखना 
अपमानित हो पुनः पुनः 
उसी पे समर्पित होना 

कड़वाहट के घूँट पी 
बारंबार प्रेम चयन करना 
अविश्वास पे विश्वास टिकाना
सच में ; मानती हूँ  
आसान कहाँ !

असंभव और विचलित कठिन तुम्हारा मैंने धैर्य से सुना 
बेहद आसान को जरा  मानस के राजहंस  गौर से सुनो 

पंचेन्द्रियों के सघन मंथन से जो 
सागर सी हिलोरें लेती वेगवान नदी उमड़ी 
*जरुरत बन , *सम्बन्ध बन 
*प्रेम बन , *विश्वास बन , *आस्था बन 
*पीड़ा बन , *अपमान बन,  *राग बन , *विराग बन 

अज्ञानता से भर अविश्वास की पीव टपकती 
हृदय की अग्नि से दहकती जलन बन 
आँखों से छलक छलक छलक जाती है 

गहन दुःख अनुभूति है मात्र पंचेन्द्रियों की 
है आनुभूतिक-असफलता की शौर्य गाथा 
इस के सुख की चाहत तुम्हारी नहीं 
तुम्हारे अपने जीवन के सुखरस को पीती जाती
जरा सा जो पा लिया ये सुख से मचल उठेगी 
जैसे खोने से दुःख से मचल मचल जाती  है 

ये मचले या वो मचले
इन्द्रियों की आत्मा पे विजय और शक्ति की पराजय अच्छी नहीं 
यकीं करो ; शक्ति का ह्रास ही है ; वर्धन नहीं 



तुम्हारी घनी अज्ञानता अपने प्रति 
चिंता का विषय है

लहलहाते मन रुपी क्षीर-सागर की देह पे 
उभरे सुदृढ़ रीढ़ से अडिग सु-मेरु पर्वत पे  

नागों के नाग  'वासुकी'  को लपेट 
ज्ञान के सात-बिंदु पर्वत अपनी देह में समेटे 
अपने  ही - देव और असुर को मन-मंथन की भूमि पे 
 प्रतिद्वंदी सा समक्ष खड़ा कर

हे ऐश्वर्यवान ! इस मंथन में एक एक नग धन ऐश्वर्य झोली में बटोरते जाना है 
तब ही तो अंत में अमृत-कलश पे  तुम्हे कमल खिलाना है 

*स्मरण रहे ! 
संख्या में दानव *अधिक होंगे, देव *अल्प
दिशा आवंटन में देवों को फन और स्वयं चतुर विषधर की पूँछ पकड़ेंगे 
तभी तो परास्त होते  देवों के पक्ष में विश्वसुंदरी उतरेगी 
असुरों को भ्रमित करती अपनी मदिरा कलश का पान ले 
 असुरो को एक कतार केअंकुश में ले , तब ही तो देवो का शक्ति संचार कर सकेगी 


सच में ; मानती हूँ 

बाहर परोक्ष को पकड़ना 
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। 

 पर ! मानस के हंस 
उतना ही सरल है 
स्वयं के अन्तस् से जुड़ जाना , यकीं करो 


यकीं करो ; उतना ही सरल है 
बाह्य से ठीक उलट , जुड़ना

अपना तप से पवित्र हुआ जल कमंडल ले 
अन्तस् को चल पड़ना

यकीं करो ; जरा मुश्किल नहीं,  स्वयं पे  विश्राम ले,  विश्वास करना

* मैं इंसान हूँ -
* अपने प्रेम पे -
* समर्पण पे -
* अपनी आस्था पे -
* अपने होने पे -

अपने इस विश्वास पे विश्वास करना 
यकीं करो ; आसान है
जरा मुश्किल नहीं।


आसान है 
अवसाद से उपजे नैराश्य के 
भाव से निकलना
बिखर के पुनः जुड़ना 

सुनो ! आसान है 
मीलों दूर को हिम्मत देना 
अपना प्रेम देना 
अपना हौसला देना 
आसान है 

आसान है आँखें मूँद 
अविश्वास पे विश्वास करना 
यकीं करो ; आसान है


जरा मुश्किल नहीं

'अपने होने पे' भरोसा करना ; आसान है

उस तिल तिल मरने से , ये तिल तिल जीना ; आसान है
यकीं करो , आसान है ; जरा मुश्किल नहीं


यकीं करो आसान है ; जरा मुश्किल नहीं


Thursday 7 May 2020

नैसर्गिक सौंदर्ययुक्त पुष्प


“If we could see the miracle of a single flower clearly, our 
whole life would change.” 

“अगर हम एक भी फूल के चमत्कार को स्पष्ट रूप से देख 
सकते हैं, पूरी जिंदगी बदल जाएगी। ”
~ Buddha


बीज था पहले 
फुहारें! पौध इसको कर गयी
मौसम पे यही पौध 
कलियों और फूलों से भर गई

वो ज़रा भारी थे.... 
अनूठे रंग सभी उसके अपने थे
सुगंध हो बहे नहीं 
पंखुड़ी से लिपटे-लिपटे झर गए

होने से अपरिचित 
उपस्थिति से भी अन्जान था
ज्यादा नहीं कहूँ तो 
सुंदर प्रकति का उपहार था 

कुछ तितलियाँ भी थीं
जो रूप-लावण्य पे मंडरा रहीं
पराग असर में मदी था 
जो हवा में उड़उड़ बिखर रहे थे  

देखो तो मधुमख्हियाँ
कितने भाव इसके बढ़ा गयी
अहंकार में चूर
पुष्पलड़ी बोझ से ढलक गयी 

खिलावट को समझे
के पहले डाली से ये झर जाए 
सौम्य खुशबु उड़ा ये 
जीवन-स्पंदित सुखद दे जाये 

उसका अंत पता था 
क्यूंकि उम्र  कई बरस ज्यादा थी 
सोच मे पड गयी 
क्यूंकि इक सोच ही मेरे पास थी 

गर हवाएं न होती 
सच्च ! ये निरा जंगली ही रहता
हवा ने खुशबू उड़ाई
उसपे इंसान ने ताज पहना दिया

एक बार पुनः उसे 
अपने होने का भास होने लगा
घने तमस से निकल 
पुष्प! ज्योतिर्बिंदु ओर  बढ़ने लगा 

नन्हे सतत  प्रयासों से
पूर्णता को उपलब्ध वो होने लगा
अपने होने का अर्थ पा
जीवन-ज्योति कलश छलकने लगा 

अंकुरित बीज में से
सुगन्धित पुष्प-पल्लवित होने लगा
धूपहवापानी से मित्र 
अविचलित सुलभ क्रीड़ा करने लगा 




Monday 27 April 2020

चलो! यादों की सांकल खड़खड़ाये



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गर्जते शोर करते बिजली चमकाते


पहले उदास ऐसे स्याह बादल न थे



बड़ा मायूसी का आलम चारो ओर


हवाओं में उदासी का रंग घुल गया



खुला आसमान परतों में कैद हुआ


बचपन भी एल्बम में छुप बैठ गया 



रंग बिखेरे लम्हे से क्युँ उम्मीद करें 



ऐसा करें सितारे काढ़ ओढ लें हम! 




माना; हजारों नहीं उनमे कोई एक 


चलो उसी कोअपनी पतवार बनाये



अभी किल्कारी भर छलांग ले साथ


दो पल पीछे जा, झरने से ठंडा जल



रंगीं तितली संग चिड़िया की बोली


खुशबूदार फूल आँचल में भर लाएं



चलो! यादों की सांकल खड़खड़ाये


स्वप्नों में कैद हुए जो पल छुड़ा लाएं


Lata 27-04-2010
01:37:pm

Thursday 23 April 2020

क्षमाक्क्षमाक्क्षमा



निराकार से साकार, या साकार से निराकार कहूं

अधूमिल सत्य तुम्हारा है

करोड़ों सूर्य परिक्रमा करते अथक जिसकी सर्वदा

ज्योतिर्पुंज रुप  तुम्हारा है 

जिनकी विशाल देह के सूक्ष्म-बिंदु भाग में वसित 

 हमारे भू अक्ष सौर हैं 


लाखों धरती समेटे तुम अनेक आकाशगंगाधारी
प्रचंड सूर्य पुरुष तुम 

किस मुँह तुम्हारी भव्ता कहूं इन नैनो से न दिखे 

आकृति निराकृति तुम्हरी 

तुम्हारी भाषा समझूँ, किस मुख कहूं, सूक्ष्मअनु  मैं

संज्ञानी  ऋषि नहीं हूँ 


किन्तु वेदो की उत्पत्ति सन्दर्भ गहराई जान चुका

परन्तु ज्ञानी नहीं हूँ 

चराचरसृष्टि में साहसी कृतध्न मनुज तुम्हारी संतान

हे! देव देवी क्षमाक्क्षमा

महाशक्ति स्वामी श्री भगवती समेत श्री भगवन नमः

शीर्षः क्षमाक्क्षमाक्क्षमा

कैसे कहूं जन्म ले क्या क्या अक्षम्य अनर्थ नहीं हुए

आकंठ ग्लानियुक्त हूँ 

मृत्यु तांडव,दसों दिशा में पुनः  दसमुखी उत्पाती हो 

उलझा अधर्मजाल में 

अक्षम्य अपराध बोध शीश झुका तुम्हारे सम्मुख खड़े 

पाहिमाम देव पाहिमाम  



अल्प बुद्धि मैं मानव क्या समझ समझूँ क्या समझाऊं 

सुमार्ग सुमंगलआप सुझावो  

विधिना खेल, माया के जाल, नाथ अशक्त गुहार करूँ 

प्रभु ! कैसे शुभता को पाऊं 

घोरबवंडर गल्प हो रहे जीवन काल की चाल न समझुँ

देव करो क्षम्य मेरे अक्षम्य 



Monday 20 April 2020

किताबें


किताबें कहाँ सच झूठ बोलती हैं
ज्ञान की माननिंदा में उलझती हैं
इन्हे खंगाल निकालते झुठ और
किताबों के तो सच भी तुम्हारे हैं
बंद ताले से ये स्वर्णकुंजी देखे हैं
सम्भव बंद द्वार तुमसे खुल जाएँ
इसी से सदी से मौन चुप किताबें
पन्नो के बंद राज तुमपे छोड़ती है
जीवन का बोध कराती किताबें हैं
योगकर्म सन्देस देती ये किताबें हैं
प्यारी बहुत सुनो ! निष्प्राण नहीं हैं
ज्ञान भगीरथ से नहायी किताबें हैं

Sunday 5 April 2020

सच ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं




सच ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं 
वन्य जीवन में आदम वनजीव होता है 
भूख भोजन प्यास नींद और कामाचार
संतान जन्मती वन्यस्त्री उससी होती है 
के उसकी चेतना बोली- तुम चैतन्य हो 
महाचिंत-मनुष सहसा देव बन बैठता है

और जा बैठता ज्ञान की उत्तंग छोटी पे 
इकोर अज्ञानता की धुंध घाटी में फैली 
ऊपर उन्नत स्वच्छ अक्ष पसरा होता है
शिवसम लटें खोल गंगधारण करता है
शीतल जलधार से ज्ञान प्रसार करता है 


संग्रह में वृक्ष से प्राप्त भोज-पत्र होता है  
इंसानी यौगिक-बुद्धि की  सोच होती है 
बैठक बैठ दवात कलम हाथ में लेता है  
कलम-नुक्की से उतर  'सोच'  बहती है
तब जा लेखों में कई कथायें उभरती हैं  

ताम्रपत्र के ऊपर ठढे मेढ़े अक्षर बनते
शिला पे लेख बन कुछ शब्द उभरते हैं
कुशल कारीगर के छेनीहथोड़ी मार से
उससे पूर्व उस  'सोच' के बारे में सोचो
जिसके अभ्यास और तप गहरे होते हैं 

तो अब किताब के बारे में सोचो तनिक 
मौन किताबें बहुत कुछ कहती हैं तुमसे 
इस विषय या उस विषय की बातें करती
तकिया, सपने, तो कभी आस ये किताबें 
सदा तुम्हारे पास रहना चाहती किताबें हैं 

कभी युगीन-साहित्य, कभी कथा-शास्त्र 
कभी भाव की गीतमाला कभी संगीत हैं 
गरुगंभीर गुरु हो चित्ताकाश में उड़ती हैं
कभी विज्ञान हो प्रमाणअम्बर में ले जाती
युद्धलहु से भीगीं कभी तितली किताबें हैं 

चहकें चिड़िया सी ये,  कभी बम की दहक
कभी तितली से उड़ते भाव इनमे, तो कभी 
जिंदगी बन अपने सामने दर्पण सी खड़ी है 
रेत, खेत, जंगल, झरने सी निर्झर, फूलहार
रॉकेट कभी उल्का कभी ब्रह्माण्ड किताबें हैं 

प्रमाण को प्रमाणिकता, कल्पना को उड़ान
रागी को राग, विरागी को वैराग्यपाठ दर्शन
खोजी को खोजसूत्र आलसी को प्रमाद देती
कला को कौशल कर्मयोग को कर्मपथ देती 
खजाने खोल के बैठी, तुम्हे जो चाहिए ले लो

सागर से गहरी आसमां से ऊँची ये किताबें
कल, आज, कल की बात करना चाहती हैं
नक्षत्रों का उजाला पाताळ का अँधेरा इनमे 
मौन हैं ज्ञान का सागर हैं ये वाचाल किताबें 
सचझूठ के खेल तुमपे छोड़ती ये किताबें हैं 

सावधान करती प्रकति के नियम कहती हैं 
कभी तुम्हारे होने की ही खुदाई कर देती हैं
भोली हैं सरल और प्रचुर खदान हैं किताबें 
तब आ के मिलता तुमसे नया रूप तुम्हारा 
तुम्हारे पास रहके कुछ कहती ये किताबें हैं 

हमसे बनी हैं बिलकुल हमारे ही जैसी हैं ये
कभी इतिहास कभी भूगोल कभी वाणिज्य 
कभी नर्तन कभी तांडव कभी मंगलगान हैं
हजारों विषय और सैकड़ों कथाएं रुचिकर  
कभी कला कभी दर्शन का सार किताबें हैं 

क्या तुम समय निकाल सुनना चाहोगे इन्हे?
निःसंकोच...अकेले सुनना, अकेले काफी हो

तो जाओ न ! खंगालो अपनी बंद अलमारी 
झाड़ लेना बरसों जम गयी जो धुल इनपे है
इन्हे ले के बैठना अपनी साफ़ सी बैठक में 
या  निकल जाना बाग़ के पेड़ की  छाया में
कोई कॉफी हॉउस एक कुर्सी और किताब

मोहल्ले का कोई एक उपेक्षित पुस्तकालय 
जा बैठ जरा वख्त बिताना सीखना सिखाना
फ़िलहाल किताबो के लिए इतना काफी है
फिर न छूटेंगी नदी किनारे या सागरतट पे 
या हो गाडी का डब्बा, या जहाज का सफर 

एकांत में तुम्हारा अद्भुत संसार बसाती हैं 
नैराश से निकाल आशा के स्वप्न सजाती हैं 
उम्मीदों की सीढ़ी बन एक एक पायदान हैं 
सुनो! ये अंतिम उपलब्धि भी तुम्हारी नहीं हैं 
बंधन में बाँध तुम्हे मुक्त करती ये किताबे हैं 

क्रमश:क्रम में किताबें बहुत बाद आती हैं
सच है ! किताबें तो बहुत बाद में बनती हैं 

Friday 3 April 2020

आस्था के दीप

आस्था के दीप
Lamp of Faith



सुनो ! ये आस्था के दीप से दीपमलिका बनाने की बात है 


कुछ तो इस सोच के पीछे... सोचो ! क्या बात है

एक एक जीवनऊर्जा का महत्त्व जिसमे रहता है

बूँद बूँद  से सागर बने , ऐसी...आस्था की बात है


एक एक जीवशक्ति महाशक्ति का संगमस्नान है

ऐसी अलौकिक 'एक' महा-शक्ति का संयुक्त होना हैं

तुच्छनराधम रक्तबीज-देवी का वैश्विकयुद्ध कहते हैं

रक्तबीज नाश करती शक्ति ये देवी दुर्गा की बात है


एक एक जीवनशक्ति से महा-शक्ति का दर्शन है

ऐसा भारत का दर्शन है, अभूतपूर्व दृष्टिदर्शन है

एक एक शक्ति एकजुट हो  बने एक महाशक्ति  

महा शक्ति से  फिर उसके ईश्वर होने की बात है


कुछ तो इस सोच के पीछे... सोचो ! क्या बात है

एक एक जीवनऊर्जा का महत्त्व जिसमे रहता है

बूँद बूँद से सागर बनता ऐसी...आस्था की बात है


एक एक जीव शक्ति महाशक्ति का संगम-स्नान है

शक्ति महाशक्ति ईश्वर का विराट्स्वरुप समाया है

अब हमारी बारी है अब उचित चिंतन का आग्रह है


शक्ति महाशक्ति ईश्वर का विराट्स्वरुप समाया है

अब हमारी बारी है अब उचित चिंतन का आग्रह है

उसी शक्तिपुंज दीप के प्रज्ज्वलन का आह्वाहन है

हर दीप के ज्वाला में समायी महाअग्नि की बात है


लौ से निकलती हजारो प्रकाश किरणों की बात है

उनमे से भी सिर्फ एक किरण, उस्पे सवार हो बैठी 

मनुष्य की चेतना करती तमस को पार, की बात है

अभूतपूर्व सोच दर्शन नतमस्तक हो मन की बात 


हृदयदीप प्रज्ज्वल हो तुम बस विश्वास जगाने की बात है

महाशक्ति के निज महाविराट रूप दिखाने की बात है 

हमारी तुम्हारी बात है ये हमारे ऊर्जा संकल्प की बात है

सुनो ! आस्था के दीप से दीप-मलिका बनाने की बात है


सुनो ! ये आस्था के दीप से दीपमलिका बनाने की बात है
 
अमावस के  अँधेरे, मिल-जुल दिवालीपर्व मनाने की बात है 

Monday 10 February 2020

भाई अब्दुल्ला


भाई अब्दुल्ला कैसे-कैसे जो सब कह रहे
ये तो हमने सदियों पहले ही कह दिया था
बहुत दोहराया बहुत बार कंठस्थ किया है
फर्क ही समझ नहीं आया, बोलो क्या करें
तकरीबन भी समूल सब एक है, क्या करें!

घर का नन्हा मनुहार से प्राणयोग सिखाता
सांस लेता मुस्करा के जब तरकीब देता है
उसपे घुड़की भी के बुजुर्ग बच्चा न समझे
बच्चे सी जिद्द ले बैठे ऐसे बैठो यूँ ही झुको
देखो न दिल पे हाथ हमने रखा तो हुआ है

अब... कितनी बार वो ही एक बात कहेंगे!
अपनी ही बात मनवाते हो घर के बुजुर्ग से
पर उसका कहा तुमको समझ नहीं आता
अजब खेल तुम्हारे लड़कपन-मिजाजी के
न खुद बड़े होते हो, न उसे ही होने देते हो

हाय-तौबा मचा रखी बेवजह तुमने कब से
हम और तुम क्या अलग भाषा बोल रहे है!
घर्षण हमारे कंठ में और कम्पन जिव्हा में
दौड़ता रक्त, लगती भूख सोच निद्रा भी है
जन्म से लेकर मृत्यु का मार्ग हमारा एक है

हे राम अब क्या कहें, बोलो तुम्हे क्या कहें
अड़ियल बच्चे सी नादानजिद्द जो करते हो
न करो खिलवाड़ अपनी अस्मिता के साथ
माया के बाग़ है यहाँ सजे माया के खेल हैं
शाम का वख्त हो चला, चलो! अब घर को

Saturday 8 February 2020

न मालूम हुआ क्या था

इक खाली से मौसम में उम्र चुकाते हुए
तनहा एकदम अकेला सा ख्याल आया

तमाम इस जद्दोजहद की वजह क्या थी
क्यों युद्ध में जंगी योद्धा बन उम्र गुजारी

नंबर पढ़ाई शोहरत रुतबा पैसा  ही नहीं
हमने समझदारी भी लड़ते लड़ते कमाई

शतरंज की चौपड़ पे खेल खेले जी भर के
हमीं राजा, हमीं रानी, हमीं वजीर प्यादे थे

दोनों तरफ हारजीत जंगी ऐलान हमारे थे
हारे या हमीं जीते भी सारे मोहरे हमारे थे

न दुश्मन था सामने न ही फ़ौज का दस्ता
वजह थी क्या जो शूरवीरों सी उम्र गवायीं

अपने ही निशाने थे, तीर भी सारे हमारे थे
किसी ने कहा भी नहीं तुम्हारी जीतहार है

सरपट दौड़ शुरू हुई , गाजर बंधी पूँछ पे
माहौल जिसने दौड़ने को मजबूर किया था

बागों की सैर, वो चश्मे, वो खिलते कमल!
चाय की चुस्की, खाने का निवाला, मुहाल!

कहाँ वख्त था के दो घडी रुक इन्हे देखते
इनके साथ उनका हाथ अपने हाथो में लेते

पैसों का इंतजाम जितना भी हो कमतर था
कहाँ वख्त था जो अपने खिलोनो से खेलते

वख्त से दौड़ ख़त्म, जोश, सेहत भी ख़तम
ये सोच ताजा  है के न मालूम  हुआ क्या था

कुछ यूँ भी कहते है, सब बुढ़ापे की बाते है
सब कुछ लुटा के, हम भी ऐसे सोचा करेंगे

मुमकिन है ऐसा हो फ़िलहाल सब लुटा नहीं
मैंने तो जरा पहले, सँभलने की दस्तक दी है

इससे पहले जोश होश खत्म सेहत भी खत्म
सोच की सोच न हो के न जाने हुआ क्या था

08/02/2020
08:24 pm
Lata