Monday 28 April 2014

इक रोज


फूल गुलशन से रूबरू हुए 


बाग़ खुशबु से सरोबार हो गए 


बाग़ जो तेरे बोलों से मिले 

लब्ज़ इत्र कीं दो चार बूंद हो गए 


ये लब्ज़ तेरे गीतों से मिले

सुरमयी दिन महताब रात हों गए 


गीत जो कायनात से मिले 

नूरे जमाल कीं बरसात होगये 


नूरे इश्क़ अश्कों से जा मिला

वख्त एक शोला ए दरिया


 और हम आफताब हो गए 

और हम आफताब हो गए


Photo: इक रोज:
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फूल गुलशन से रूबरू हुए 
बाग़ खुशबु से सरोबार हो गए ....................

बाग़ जो तेरे बोलों से मिले 
लब्ज़ इत्र कीं दो चार बूंद हो गए ..............

ये लब्ज़ तेरे गीतों से मिले
सुरमयी दिन महताब रात हों गए ......................

गीत जो कायनात से मिले 
नूरे जमाल कीं बरसात होगये ..................

नूरे इश्क़ अश्कों से जा मिला
वख्त एक शोला ए दरिया.........................

और हम  आफताब  हो गए 
और हम  आफताब  हो गए.........................

ॐ ॐ ॐ


ॐ ॐ ॐ

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