Monday 29 May 2017

मनुहार - मानिनी का

राधेरानी बोली कान्हा से 
एक ही शर्त खेल में मेरी  
हारूँ! तो तेरी कहलाऊँ 
गर जीतूं तो तू मेरा  होवे

हाँ! माननि हूँ कान्हा
प्रेमाधिकारिणी हूँ मैं
बांसुरी मैं ही थामूंगी
फूंक,तुम ही डालोगे


Oh, I'm in proud ; Kaanha.
Bonafide-lover beloved I'm .
Only I will  Hold the Flute 
you would have to blow out


स्वर जन्मेंगे इसमें से
गुनगुनायेंगे होंठ मेरे
काठ की इस देह में
गीत, तुम ही डालोगे

Music will come out 
my lips will sing tune
On this wooden body
Song, you should Impart 

रक्ताभ होगा ये, पर
रंग सुर्ख तुम डालोगे
'ह्रदय' धड़केगा मेरा
प्राण, तुम ही डालोगे

It's getting Blood-Red 
you'll impart ruddy colour 
Heart will pulsate mine 
Life, you've to impregnate.


Friday 26 May 2017

एक ही है

सौंदर्य एक,विभीषिका एक है एक ही बोली, चित्र एक ही है एक ही वीणा, करतल एक है गीत मेंअनहद स्वर एक ही है उसके बजते ढोल की ताल से- मिलती, बावरे तेरी लय एक है घुंघरू से उठी रुनझुन एक है एक मंजीरा नृत्य भी एक ही है तीन लोक मापती थाप एक है एक पूर्णपुरुष, पूर्णस्त्री एक है एक प्रकाश, अन्धकार एक है एक ही सीढ़ी, यात्रा एक ही है एक दिशा को चल पड़े हैं जो वो फ़क़ीर तू भी तो एक ही है अपनी प्रथम श्वांस से पूछना महावियोग क्षण भी एक ही है तेरी अंतिम श्वांस भी ये कहे है महा-मिलन का संयोग एक है इस में घुला है समय-युगों का सतत प्रवाहित पल एक ही है

** for one life, if you can think wise, All the stories only stories, reality is one and only one! why cause the soul is one with one body, to live, whatever it is! Ever you notice, you ready to roam all market, all showrooms to purchase "one" in excellence, but you can buy only one.. you can not take the market in the home. even in one shop, we have big seduction to look n touch all in same or higher price range but it's our limit we need to choose according to requirement .... this is as human our basic habit.
Same with soul and her bearings of karma, Our act effect on stories basis only, and we also allow from many of them to give bounce effect to us. but in core reality, we can live only with own bearings (no matter how hard n how much soft) till than life allow . after that No bearings.
So that sing One wise song,
Make one wise music,
Do one wise dance and also
Trust upon one supreme connection.
In any condition/circumstances under bearing, Death also occurs only one time for one soul. no possibility for the soul quit many times from one body. The bearing principle works till last breath of One's body. Rest is just wandering for Infinite satisfaction, None to work really.

Thursday 18 May 2017

आज एक नए स्वप्न को जन्म दें , आओ ! एक और स्वपन सजाएं



स्वप्नों का शैशव युवा होते स्वप्न , कसौटी पे कस हुए धूमिल स्वप्न !
बीत चुके स्वप्न,कुछ कतार में है, कुछ बीजरूप ही कसमसा रहें !
परवान चढ़ते, उमीदों को रंगते , मौसमो से जूझने के हौसले देते !
आज एक नए स्वप्न को जन्म दें , आओ ! एक और स्वपन सजाएं
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स्वप्न के स्वप्न पे झूमते नाचते ये, साज ओ आवाज के मनोहर नग्मे
स्वप्न के महल स्वप्न के सांकल, स्वप्निल रंग रोगन की अट्टालिकाएं
स्वप्न के राग रंग जश्न और हम, ठिठोली करते हमारे स्वप्न के लम्हे
आज एक नए स्वप्न को जन्म दें , आओ ! एक और स्वपन सजाएं
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विश्वकर्ता-भर्ता-हर्ता और बनावें स्वप्न के, स्वप्न से है जगत व्यवहार
तृण त्रिशूल के मूल पे बसें मूठ को साध,जनमन में बहे गंगरसधार
त्रिकाल से गुजर शूल से धंसे जन्मे-पलते-मिटते कार्य-पोषित-नाश
आज एक नए स्वप्न को जन्म दें , आओ ! एक और स्वपन सजाएं
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स्वप्न में क्लेश राग और द्वेष होवें स्वप्न में तरकश और तीर चलाएं
स्वप्न के लास्य भोग स्वप्न के वैमनस्य, जी लें या इनमे ही मर जाएँ
स्वप्नदृष्टा देखते स्वप्न हौसलों के, इनमे चल इन्ही को खंगाल आएं
आज एक नए स्वप्न को जन्म दें , आओ ! एक और स्वपन सजाएं
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स्वप्न से शुरू थी अपनी कहानी, स्वप्न पे ही ख़त्म होती जिंदगानी !
स्वप्न का कारवां यूँही चलता रहे, मिटे गर एक तो नया पलता रहे !
जिंदगी तू सुर्ख हो धड़कती रहे, स्वप्न प्रेम बन दिलों में जलता रहे !
आज एक नए स्वप्न को जन्म दें , आओ ! एक और स्वपन सजाएं
© lata
17-05-2017

Sunday 14 May 2017

जी के तो देखो





कभी फूलों की खुशबू हो के तो देखो
पलों से ह्ल्की हवा संग तैर के देखो
कभी रंगो सा मिल बिखरना तो सीखो
मनतरंग को सरगम में घुलते देखो
रेत कण से बन के तो बिखरो जमीं पे
तल से परबत-शिखर छूके तो आओ..!
कभी जल की बूँद बन छिटक तप्त पे
अग्निशिखा को धुआं हो मिटते देखो
चमकते बलूवर कण की चमक हो तुम
कुदरती करिश्मे में जी के तो देखो
कभी उस काल के रथ पे बैठ तो देखो
तिस्लिमआस्मां पे टहल के तो आओ ..!
© लता 
15 - 05 - 2017

Friday 12 May 2017

"उसके" मेल







नसीबों के खेल, नसीबों कैद, "उसके" मेल है
हर चिंगारी तो आग का सैलाब नहीं होती है

न जाने कौन चिंगारी की सुलगन से भड़ककर 
कोई शमा हौले से घुलती और पिघलती है

चटकती लौ में डगमग जलती संभल कहती है
राख ही है अंत पतंगे चहुँ तू क्यूँ डोलता है

कहे पतंगा तेरी दहकती अगन को हवा देता हूँ
संग-संग सुलग मर जाऊं नसीब ही तो है

अपनी लौ की तपिश में कैद फ़ना जो होती है
कहती- इश्क़ है ! जिस पे फ़िदा होती है

मोहब्बत में  इश्क़ में फर्क पे इतना ही बोली  
इसमें जवाब वो लाजवाब, कह धुआं होती है  

© Lata 
11 - 05 - 2017
In respect and honor of love, love is feeling only attraction which allows a being to "lit" and converts in being.

Monday 8 May 2017

तो मुश्किल होगी ...



चलो तुमसे तुम्हारी ही बात की जाये
गर औरों से कहेंगे तो दास्ताँ होगी ...

गुफ्तगू की कोशिश लब हिलंगे मगर
ये इक शय तो आँखों से बयां होगी ...


सरसरते पत्ते थरथर्राती देह का कंपन
धड़कते लम्हे हमारी गुफ्तगू होगी ...

कदम मचल दौड़ेंगे तुम्हारी तरफ को
बाँह भर रोकोगे वहीँ सीमा होगी ...

पलकों को मूँद कर, छिपा लूँ तुमको
सागर जो छल्के तो मुश्किल होगी ...

© Lata

Saturday 6 May 2017

मिट्टी के अक्स


सोचा के आज, कविता न गढूं
शब्दों के जखीरे को न उधेड़ूँ

कहूँ सहज सरलतम शब्दों में
ध्यान में हुई वो ध्यान की बात

हाँ आज देखा मैंने मिटटी को
रेत का ढेर बनी , मिट्टी थी वो
गौर से देखाअक्स उभरा मेरा
तेज हवा में उभर खोता हुआ
मुझ से अक्स जुदा होता हुआ
मिट्टी के ढेर में,खुद को पाया
जो मिट्टी में दब मिट्टी हो गया
उन जादुई पलों में, मुस्कराते
खिलखिलाते गुनगनाते आंसू-
गिराते पाया उभरतेअक्स को
रेती में खो पल में मिट्टी हुआ

सोचती हूँ कहूँ सहज शब्दों में
ध्यान में उतरी, ध्यान की बात
©Lata 06-05-2015

Wednesday 3 May 2017

बूँद का संदेह



क्या मैं एक नदी हूँ
जो सदियों से अपने बहाव में बहती है .. 
सागर से मिलने बढ़त को नीरद को निमंत्रण देती है
जो भी दिल में आता है सरिता अपनी तरंग से कहती है   
जन्मता जिसमे बहता जो मरता उसमे वो भी तो उसका हो गया है




या फिर मैं दरिया हूँ 

न प्यास है न आस घटूं के बढूं फर्क नहीं है 
अपने में ही सिमट जो अपनी सोच में ढल गयी है
चक्रवात उठता है गोल ऊपर को, वहीँ का वहीँ गिर जाता है 
अब न कुछ नया घटता है रोज, न ही कुछ ऐसा जो बढ़ता ही गया है


या सागर से महासागर हुई 
हवाएं सहला के धन्य जिसके बदन को छू-
मचले सतह पे लहरे हलके,अंतस में अनंत समेटे हुए 
असंख्य दौड़ती आती धाराओं को रोकने में सक्षम हो गयी है
घनत्व की गहराई में दबा लावा, जिसका अग्नितत्व ऊपर उठ गया है


या चेतना के महासागर से आ 
महा-आकाश में स्थित उस महाशून्य से मिल 
श्वेतपुष्प आच्छादित सुगन्धित गदरायी मालती डाल हो गयी है
हजारो सूर्य के तेज से भी प्रबल आदियोगी-देवी के महामिलन में 
मेरा नन्हा तेजांश अनुपम दैवीययोग का प्रत्यक्ष साक्षात् गवाह हो गया है

या नन्ही जल-बूँद ही हूँ 
बहुत कुछ हो सकने के अनुभव में लिपटी 
अतृप्त बूँद, तृप्त होने को बहती नदी में अठखेलिया करती 
व्यग्र बढ़ती महासागर को अपने विलय की व्यग्रता में आकुल हुई 
जिसका नन्हाँश चाहे योगी में हो लीन, स्वयोग में ठहरी बूँद हो गयी है

© Lata 
02-05-2017