Monday, 7 April 2014

Alchemy / ज्ञान -विधा (Poem)





पानी में पड़े बहते पत्तों को देखो ध्यान से 

धारा के संग बहते हुए साथ साथ झुण्ड में 


एक स्वयं में अकेला किन्तु सबके साथ 

अटकता फिसलता , मचलता बहता पत्ता 


बहते-क्षण मिलते जाते मिलन-क्षणो के साथ 

कुछ पल ठहर भी जाए बहते बहते तो क्या !


तुम रुक सकते ही नहीं , रुकना है ही कहाँ ?

रुपहले तारा-कणो से जन्मे रे ! प्रिय मित्र 


ओ ! प्रेम रस की चिर बूँद ,मिलो , बातें करो 

और फिर पुनः बह चलो इसी जल धार में


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look at the slow moving river


of floating leaves..


would have been closely observed


flow in passing current..

.
one alone identity is floating itself


getting merged with all..


floating moments getting submerged


with meeting moments..

.
and flown away , sometime may rest there


but cannot stagnated..


O’Dear Particle of stardust , you can’t stand


at one place for long..


O’tiny Drop of love come along with all


meet ... talk ... and ... move ..

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