पानी में पड़े बहते पत्तों को देखो ध्यान से
धारा के संग बहते हुए साथ साथ झुण्ड में
एक स्वयं में अकेला किन्तु सबके साथ
अटकता फिसलता , मचलता बहता पत्ता
बहते-क्षण मिलते जाते मिलन-क्षणो के साथ
कुछ पल ठहर भी जाए बहते बहते तो क्या !
तुम रुक सकते ही नहीं , रुकना है ही कहाँ ?
रुपहले तारा-कणो से जन्मे रे ! प्रिय मित्र
ओ ! प्रेम रस की चिर बूँद ,मिलो , बातें करो
और फिर पुनः बह चलो इसी जल धार में
----------------------------------------------------------------------------------------------------------
look at the slow moving river
of floating leaves..
would have been closely observed
flow in passing current..
.
.
one alone identity is floating itself
getting merged with all..
floating moments getting submerged
with meeting moments..
.
.
and flown away , sometime may rest there
but cannot stagnated..
O’Dear Particle of stardust , you can’t stand
at one place for long..
O’tiny Drop of love come along with all
meet ... talk ... and ... move ..
No comments:
Post a Comment