Monday, 7 April 2014

हाँ ! मैं एक पौधा (poetry)





* हाँ ! मैं एक पौधा *


सुंदर हलकी हवा औ झूमता मैं 
देखता आकाश को इठलाता हुआ मैं 
कभी धुप कभी बरखा में मुस्कराता मैं !

बढ़ता हुआ मैं , अपनी सुंदरता पे रश्क खाता
नहीं जानता .. क्या होगा कल ? कैसा दिखूंगा मैं !
ख़ुशी से फूला देख खिलती कली को अपने ही तन पे 
सुंदर श्वेत सुगन्धित कोमल ,थी मेरे तन का हिस्सा वो !


मेरे हंसने जीने मरने के सारे अधिकार ले लिए उसने 
पता ही नहीं चल पाया कब मुझे अपने अधिकार में ले लिया 
 कब सुगंध सुंदरता को अपने भावो की अभिव्यक्ति बना लिया !


अपनी पूजा , प्रेम अपने सौन्दर्यभाव  का मुझे माध्यम बना 
 तोड़ते रहे ,कभी खुद को सजाते रहे , आंसू  देखे, न आहे सुनी , 
कभी उस पत्थर पे मेरी जिंदगी अपनी इक्छाओं की खातिर 
मुझको तोड़ते और श्रद्धाभाव से मन्त्र पढ़ उस पे चढ़ाते रहे

वो ग्यानी खुद जिसको पूजा करते थे कह के की 
" खुदा " मेरा तेरा और सबका है। 



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