Monday, 7 April 2014

उसका इशारा

सीधी सी बात है , न लाग है न लपेट ,
मौन में जो कहता है बस मौन ही उसको सुनता है 

अन्य सब व्याख्याएं है , शोर-शराबे , छलावे है
जिनके भी साथी शब्द है बस शब्दो के व्यापार है

गहराई से गहराई नापी जाती , मौन से मौन समझा जाता
उदाहरण सिर्फ उदाहरण ही है असला व्यक्त नहीं , कैसे कहु !!

रंगो से रंगो का मिलन हो पाता , संगीत में ही सुर मिल पाते
शुध्ह नर्तन से भंगिमा व्यक्त होती ,अभिव्यक्ति भाव की भाव से।।

और क्या कहु !! कैसे कहु !! शब्द ही नहीं जो निशब्द को कहे।
समझ सको तो समझ लो उसका इशारा , इशारे से ही कह मिलेगा।।

रूमी बन जाओ या फिर कबीर बन जाओ, डूब जाओ उसकी मधुशाला में
मीरा बनो या राधा पूर्ण-प्रेम करलो पूर्णता से, वो पूर्ण उतरेगा अंतर्मन में।।


























Om Pranam

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