आधा अधूरा बंजर बिखरा
माया निर्मित जीवन सारा
पल मे दिखता पल मे रीता
कौन है कहता; सुनता कौन
यहाँ पे कौडी कानी-कानी ,
यहाँ .. का खर्चा है बेमानी
मोल होते.. जाते मिटटी के
यहां की दौलत अंधी होती
यहाँ का लेना छद्म जैसा
यहाँ का देना छद्म जैसा
यहाँ की रस्मे छद्म जैसी
यहां की रीतें छद्म जैसी
बन्दों से नहीं जगत में,
तुझसे ही नाता जोड़ा है
वो भी बस इक बार का
इसपार या उस पार का
जिद्द अपनी भी मित्रवर !
तुझसे सीधा नाता जोडूंगा ,
नियम.. नहीं ..कोइ तोड़ूंगा
व्यापार ,एक ही व्यापारी से
जो देगा मुझे तु हीं देगा
जो भी दूंगा तुझे ही दूंगा
देना ..लेना ..दोनो हो पूरा
सम्पूर्णता का सम्पूर्णता से
ॐ ॐ ॐ
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