Tuesday, 13 May 2014

फिर न कहना ! ( fir na kahna )

बेड़ियां पैरों मे नहीं , दो आत्माऐं जकड़ी होती है 
बन्धन दिलों मे नहीं , दिमागों मे हुआं करते है !
(bediyan pairon me nahi do atmayen jakdi hoti hai 
bandhan dilon me nahi dimagon me hua kate hai )



उड़ने का जब भी दिल चाहें वख्त है , उड़ लें दोस्त

न रह जाये रंज , अश्क़ गहरे तहखानो मे दबे होते है !
(udne ka jab bhi dil chahe wakht hai , ud le dost
na rah jaye ranj , ashq gahre tahkhano me dabe hote hai )


कौन बाँध पाया है मचलती दीपशिखा क़ी उठान 

एक चिंगारी से सुलगने लगतें जो अरमान दबे होते है !
(kaun bandh paya hai machalti deepshikha ki uthan 
ek chingari se sulagne lagte jo arman dabe hote hai )



बांधने की कोशिश भी करो तो क्या बांध पाओगें
जी लो दो पल साथ इनके, मेहमाँ दिल मे छुपे होते है !

(bandhne ki koshish bhi karo to kya bandh paoge
jee lo do pal sath inke mehma dil me chhupe hote hai )



फिर न कहना की क्यूँ नहीं बताया राजे उल्फत
फ़िर न कहना दिल की दिल मे ही लिये, बैठे रहते है !

(fir na kahna ki kyun nahi bataya raaj e ulfat
fir na kahna dil ki baat dil me hi liye baithe rahte hai 



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