Saturday 24 May 2014

अपना अपना आस्मां



अपने अपने सच का -

अपना अपना आस्मां 
बहरेअंधे तुम हो हम है 
लूलेलँगड़े बन खपते जाते .....

तुम खुश अपने घेरे में

हम खुश अपने घेरे में
हम सब के अपने घेरे
घेरों मे कैद हमसब कोकून ...

रोज  बिलों  से  झांकते

दिन  के  बढ़ते  उजियारे
रोज रात चढ़ते  अंधियारे
यूँ थपकी देते हम सोते जाते ...

इधर दौड़ते उधर  भागते

इसकीउसकी सुनतेकहते
हँसते भी जाते  रोते - रोते
रोते  भी जाते  हँसते - हँसते ....

सबके बनते  अपने फेरे

फेरों  में  कैद  बंधते सच
एकतारा  बजता ही जाता
कहाँ धुन उसकी हम सुन पाते !! .... 














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