मैं नीर हूँ : परिचय
मैं नीर हूँ यही परिचय मेरा ...
कहाँ से शुरू करू , समेटना स्वयं को , कैसे परिचय दूँ !
भाव एक पर शब्द अनेक ,
मानो तो, मैं झरझर झरता जीवन देता नीर हु
ना मानो तो बहता पानी
ना मैं स्त्री ना पुरुष ना जड़ ना चेतन
परिचय मेरा विस्तृत नभ सा और संकुचित कण सा
मेरी गति मेरा जीवन
बहती , संभलती
रूकती , ठिठकती
वेग में मेरा नर्तन
काव्य ने बांधा उपमाओं में लेखो ने शैली में
मैं नीर हूँ
विज्ञानं के लिए रसायन हु ,
धर्म के लिए पवित्र जीवन दायनी..
व्योम मेरा डेरा ,अग्नि मुझसे परे और तृष्णा मेरा ह्रदय ,
तृप्ति मेरा माया-अस्त्र औ इक्षाए मेरी कमान
मेरा अपना एक वर्तुल है ,
ना अंत , ना शुरुआत, ना साथ मेरे कोई
ना कोई फिक्र ,
चलती हूँ सूक्ष्म धारा से , कितने रूपों में ढलती हूँ
कही बनती विशाल ,
कही गहरी , कही उथली ..कहीं चंचल कही ठहरी ..............................
मेरे छोटे से कमजोर स्रोत ,
जो है मेरे आधार ...
जिनके सहारे मुझे लम्बी यात्रा करनी है
कौन सा स्रोत ना जाने कब तक साथ दे
नहीं सोचती मै ये सब ,ये मेरा काम नहीं ..
गति मेरा आधार और जल मेरा साधन ...................................
मैं नीर हूँ
कहाँ ! क्या ! कैसे ! कब ! कितना ! क्यूँ !
ये प्रश्न मेरे नहीं .
मुझे तो ये भी नहीं पता मेरा रास्ता क्या
जाना कहाँ , जन्म क्यों , औ अंत कहाँ
स्रोत कब तलक बन सकेंगे मेरे आधार
समुन्दर मुझको कब तक रख सकेगा अपने बंधन में ,
और कब मुझे कर देगा आज़ाद ..
वाष्प हो जाउं कब स्वयम्
कहाँ समर्पण मेरा ,
कहाँ मेरा प्यार ?
कहाँ मेरी आस्था
और कहाँ मेरा विश्वास ?
(20 june 2012)
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मैं नीर हूँ ...यही परिचय मेरा क्या परिपूर्ण नहीं !!
! प्रणाम !
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