Tuesday 27 May 2014

नुक्ता



माने की न कहा करो जब तलक पास रहो 
गुफ्तगु अपनी किया करो औ मेरी सुना करो ! 

लोग तो कैसे भी जी लेते है, जी लेंगे तेरे बिन 
हमारी बात और है हमने तो मोहब्बत की है !


वख्त वो भी था बंद मुठी से फिसल बहता गया
मिजाज को इसके बहता दरिया कहते है लोग !

नब्ज जिंदगी की पकड़ सको तो, हाकिम बनो
कमोबेश तो जाहिल भी जिंदगी गुजार ही लेते है !

अलग अलग टुकड़ो में इनकी बयानी न समझ
एक एक शेर को एक माला में हम पिरोये बैठे है !



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