Thursday, 22 May 2014

कहो, कुछ तो !! कैसे हो !!

बरसों बाद मिले हो , कहो कुछ तो !! कैसे हो !!



एक बार  फिर  शाम घिर आई ,  बत्तिया जलने की बेला आई ,

रोज की तरह  थोड़ी खांसी , थोडा दर्द यहाँ वहां .

वो ही रोज की तरह , चूल्हे  में लकड़ी देना ,  एक रोटी बनाना ..

जिस्म की तरह पुराने हुए बिस्तर पे लेट के  सोने की कोशिश 

न चाहते  हुए भी  अच्छी और बुरी  यादो के डेरे  में गोता लगाना 

अब   तलक  जिन्दगी  के ढाँचे में  ढलने की  कोशिश  ,

पल पल  करवट दूसरी तरफ बदलना  , 

रोज की तरह यही सोचते  सोचते  ,  रात ढली ओ   पहली पहर हो आई.. 

बरसो की तरह एक  और उम्मीद ,एक  और आस  , 

एक  और विश्वास  के  साथ  स्वक्छ  पहली स्वांस ,

हांथो में  छड़ी , सहारे  के लिए  , जो सडको के गढ़हो से बचाए 

चल पड़े  टहलने  मुस्कराहट  होंठो पे लिए 

लौट के आये , छड़ी टंगा के कुर्सी पे बैठे 

दर्द  अचानक   उठा सीने में  , 

आँखों के आगे आते  ,  अँधेरे  में  दिखा  लहराता साया 

मेरे अपने , सालो पुराने , चले गए  थे  तुम कहाँ 

बरसों  बाद  मिले हो , कहो  कुछ तो !!  कैसे हो  !!


पुछ इतना ,  मुस्कराहट   होंठो पे लिए ,  

बिना सहारे ....  आज हम  चल पड़े ..

अकेले ...  एकांत .... !

(30 May 2012)
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!!प्रणाम !!

एक वृद्ध  की सोच का  सारांश :  पल पल जी लो भरपूर , जो पल भरपूर गुजरता है  वो भरे पेट के सामान है  , फिर भोजन की लालसा ही  नहीं  रहती , एक संतोष ,  एक परमानन्द !!

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