बरसों बाद मिले हो , कहो कुछ तो !! कैसे हो !!
एक बार फिर शाम घिर आई , बत्तिया जलने की बेला आई ,
रोज की तरह थोड़ी खांसी , थोडा दर्द यहाँ वहां .
वो ही रोज की तरह , चूल्हे में लकड़ी देना , एक रोटी बनाना ..
जिस्म की तरह पुराने हुए बिस्तर पे लेट के सोने की कोशिश
न चाहते हुए भी अच्छी और बुरी यादो के डेरे में गोता लगाना
अब तलक जिन्दगी के ढाँचे में ढलने की कोशिश ,
पल पल करवट दूसरी तरफ बदलना ,
रोज की तरह यही सोचते सोचते , रात ढली ओ पहली पहर हो आई..
बरसो की तरह एक और उम्मीद ,एक और आस ,
एक और विश्वास के साथ स्वक्छ पहली स्वांस ,
हांथो में छड़ी , सहारे के लिए , जो सडको के गढ़हो से बचाए
चल पड़े टहलने मुस्कराहट होंठो पे लिए
लौट के आये , छड़ी टंगा के कुर्सी पे बैठे
दर्द अचानक उठा सीने में ,
आँखों के आगे आते , अँधेरे में दिखा लहराता साया
मेरे अपने , सालो पुराने , चले गए थे तुम कहाँ
बरसों बाद मिले हो , कहो कुछ तो !! कैसे हो !!
पुछ इतना , मुस्कराहट होंठो पे लिए ,
बिना सहारे .... आज हम चल पड़े ..
अकेले ... एकांत .... !
(30 May 2012)
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!!प्रणाम !!
( एक वृद्ध की सोच का सारांश : पल पल जी लो भरपूर , जो पल भरपूर गुजरता है वो भरे पेट के सामान है , फिर भोजन की लालसा ही नहीं रहती , एक संतोष , एक परमानन्द !! )
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