Saturday 3 May 2014

महारास : कुछ वख्त निकला अपने लिये तो ये जाना ...



कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

एक जिंदगी थी 
देखते  थे संसार 
दूजे की निगाहों से 
सब खुश, हम खुश 
एक भी उदास 
तो हम उदास 
न जाने क्यूँ ?
असमर्थता
असह्यता
अक्षमता 
का  नर्तन ....
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

जिंदगी है आज भी
अपनी निगाहों से 
उदासी भी है 
ख़ुशी भी है 
शब्द वो ही
भाव है बदले से 
पत्ता पत्ता बोलता है 
एक एक आँख 
कहती है कथा 
रूह मिलती है 
सीधा रूह से 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

सोचा कई बार कि 
नाम क्या दूँ  !!
करुणा 
आभार 
दर्शन 
मिलन 
संज्ञानता 
हर बार की तरह 
इस बार भी 
सोचते ही सोचते 
शब्द  की रफ़्तार 
से भी तेज, उनके 
मायने बदल गये 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

संगीत सिर्फ़
नाद नहीं
सरगम नहीं
वाद्यों पे  
बजते सुर_थाप 
थिरकते कदम 
रंग_बिखेरती 
रंगों मे लिपटी
कलम थामे 
उंगलिया ....
गीत संगीत
अनहद  भी है 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

अनहद  ..
झरनो मे 
हवाओं मे 
बिखेरती खुशबुओं मे  
चहचहाहट मे 
आसमान पे बिखरे 
मौन  सितारों मे 
चाँद मे सूरज मे 
बिखरे  चहूँ  ओर 
रंगों मे 
मुस्कुराहटों मे 
आंसुओं मे 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

दर्द सिर्फ़ वो नहीं
जो तन को दुखाये 
आंसू सिर्फ़ वो नहीं 
जो मन  दुखाये 
दर्द प्यास भी है 
रूहानी अहसास  है 
आंसू  से भी ऊपर 
नूर है उसी का
रिश्ता भुला हुआ सा
पल मे करीब ले आये 
उसी के ; ये दर्द और आंसू 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

जो भी  जिये यहाँ 
जैसे भी जिये यहाँ 
जितना भी जिये 
कोई गुणा भाग नहीं 
उसी का दर्शन 
उसी की झलक 
ज्यादा मे  भी वो ही 
और  थोड़ा भी मिला
कहता रहा उसी की  
कहानी उसी की जबानी 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

हर बार हम  रूबरू  हुए 
उसके ही नजारों  से 
हर बार  नजरें  फेर ली
ढूंढने  उसी को चल पड़े  
हर बार  जहाँ  हम रुके
वो रुका  साथ  हमारे , 
हमारे साथ ही चलता रहा 
उस राह पे 
हर बार 
दीप रौशन हुए 
हम कुछ और रौशन हुए 
उस राह पे 
हर बार 
कुछ फूल खिलते गये 
कुछ और महकते गये 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

ये अजब सा चक्कर 
घनचक्कर बना ग़या 
कौन चला था ?
कौन रुका है ?
किसने किसको पाया ?
किसको खोया ?
क्या  है  तमाशा ?
क्यों ये बेचैनी ?
आंसू किसके लिये ?
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

तड़प  जो उठी दिल मे  
चन्द  पल  चुप तो रहो !
सुनो तो  जो लगातार 
कह रहा है !
तू है क्या? 
तेरी हस्ती है क्या ? 
रूह के सिवा 
क्या है खोने को ?
अहम के सिवा 
क्या तु लाया था ?
सत के सिवा 
क्या ले के जायेगा ?
इस के सिवा 
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

माया  छूटी
फेरे  टूटे 
मोह  के 
दर्द के 
पीड़ा के 
कसक के 
सब बन गये  
अचानक !!
सतचित्त आनंद 
सत  मे रहना 
चित्त मे रहना 
आनंद मे स्थित
जीवन पूरा जीना  
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................

अनंत मे गूंजते 
अट्टहास के 
सिवा कुछ नहीं 
समेटने को 
अब तक बाँधा 
कंकर  पत्थर 
फेंक  परे , सुन
प्रेम का गान 
गूँज उसी की 
तरंग उसी की
ध्यान उसी का
प्रेम उसी का  
जल मे रहना 
कमल समाना
कुछ वख्त निकला 
अपने लिये  तो ये जाना ...................



              ॐ ॐ ॐ
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