एक ही नृत्य !! एक ही संगीत !!
एक ही विशाल नृत्य है इस ओर से उस छोर तक
एक ही भव्य-संगीत है
कहाँ से उस सुर को पकडूँ
कैसे उस लय पे थिरकुं
हे !! हजारों आकाश गंगाओं !!!
मेरा मार्ग तनिक सुगम करो
मेरे शब्दों को व्यक्त होने की शक्ति दो ....
तुम्हारा श्रृंगार किया
मिल के कई ब्रह्मांडों ने
एक-एक ब्रह्माण्ड धनी है तारामंडलों से
ये तारा मंडल अलंकृत है अनेको ग्रहों और नक्षत्रमालाओं से
सूर्य और चन्द्र है जिनके भाल पे नक्षत्र मालाये कर रही अद्भुत श्रृंगार
ना ! ना !
ये कोई देवाकृति की कल्पना नहीं ...
ये कोई देवाकृति की कल्पना नहीं ...
ये तो हजारो ब्रह्मांडो में से एक मेरा ब्रह्माण्ड है ...
आह !! ये तो मेरा संसार है !!
प्रधान ग्रह नियंत्रित करते चर अचर की कला
(बुध, शुक्र, धरती, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, वरुण, प्लूटो)
जीवन की उर्जा देने वाले सूर्य देव ( देव = देने वाले )
भावनाओ को गति देते चन्द्र देव
सप्त ऋषि समेत अनेक मंडलों से सजा मेरा असमान
सभीका प्रभाव सभी शक्तिमान
एक छोटा सा गृह मेरी धरती
जिसपे जीवन - जीवनी रचती अपना चक्र हाँ , अब मैं बहुत पास हूँ इस धरती के संगीत के
मुझे दिख रहे है वो सात रंग बिखरे हुए सब तरफ
मस्त हो रही हु , विशाल जल समूह से उठती झूमती लहरों को देख
पांच तत्वों की प्रधानता से रचा ये ग्रह..
पांच इन्द्रिया मुझे मिली है इनमें जीने के लिए..
मेरे जैसे और भी है बन्धु ... थोडा थोडा अलग अलग ...
सब झूम रहे है कुछ उड़ रहे तो कुछ जल समूह में खेल रहे
कुछ एक ही स्थान पे झूम रहे ..
और कुछ पता नही !!! कुछ कर तो रहे है , पर मेरी समझ से परे है
वो खुश भी नहीं ( क्यूँ ) बहुत असंतुष्ट है ज्यादातर ...
कईयों को तो खुद के होने का भी अहसास नहीं
ये क्या है क्यूँ है पूछे जा रहे है व्यर्थ ही , जबकि सुनने का भी विश्राम नहीं ...
हल्का होने दो मन को और तन को , जरा ऊपर आओ , मेरे साथ ...
मैंने देखा है , तुम भी देखो ... एक ही संगीत , एक ही नृत्य है .. कई कई आकाशगंगाओं में ....
वो ही संगीत वो ही नृत्य , सुनो जरा स्वयं के भीतर
एक एक कण रोम रोम तुम्हारे शरीर का नृत्य में संगीत में व्यस्त है ...
जो संगीत और नृत्य मैंने देखा है , तुम भी देखो...
चलो फिर से ......चले , तुम भी चलो ......मेरे साथ ... उन हजारो आकाश गंगाओं के पार ....
(written in 2012 )
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ॐ
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