विस्तार और सूक्ष्म में भेद क्या !!
23 May 2012 at 06:20 PM
मेरे प्रभु ..
विस्तार और सूक्ष्म में भेद क्या !!
जो एक कण है वो ही तो हजारो आकाशगंगाए है
शब्दों में कहा वो सामर्थ्य जो समझ सके निःशब्द की ध्वनि
नाद में कहा वो गर्जन जो जान सके अनाद का आघात
नृत्य विधाए कहाँ सक्षम , जो व्याख्या दे सके तुम्हारे आदि नर्तन की
फिर भी अंतिम सत्य तुमसे मैं हु और मुझसे तुम .
इसी सम्बन्धवश खड़ा हुआ हु तुम्हारे समकक्ष
खड़ा हूँ मित्र !! बाहे फैलाये , तुमसे प्रेमालिंगन को
दंभ न करना !! दास हूँ मै , सिर्फ मित्र भाव का और तुम्हारे प्रेम निमंत्रण का
बंधा हुआ हूँ सिर्फ तुम्हारे प्रेम पाश में
जो मैं तुमसे अभी कह रहा हूँ वो ही तो सूक्ष्म का विस्तार है
मैं हूँ कण ये ज्ञान है मुझे , पर मुझे ये भी ज्ञात है की
मेरा विस्तार तुम ही तो हो ,
और तुम्हारा संकुचन .. मैं ही तो हूँ ..
© All rights reserved
विस्तार और सूक्ष्म में भेद क्या !!
जो एक कण है वो ही तो हजारो आकाशगंगाए है
शब्दों में कहा वो सामर्थ्य जो समझ सके निःशब्द की ध्वनि
नाद में कहा वो गर्जन जो जान सके अनाद का आघात
नृत्य विधाए कहाँ सक्षम , जो व्याख्या दे सके तुम्हारे आदि नर्तन की
फिर भी अंतिम सत्य तुमसे मैं हु और मुझसे तुम .
इसी सम्बन्धवश खड़ा हुआ हु तुम्हारे समकक्ष
खड़ा हूँ मित्र !! बाहे फैलाये , तुमसे प्रेमालिंगन को
दंभ न करना !! दास हूँ मै , सिर्फ मित्र भाव का और तुम्हारे प्रेम निमंत्रण का
बंधा हुआ हूँ सिर्फ तुम्हारे प्रेम पाश में
जो मैं तुमसे अभी कह रहा हूँ वो ही तो सूक्ष्म का विस्तार है
मैं हूँ कण ये ज्ञान है मुझे , पर मुझे ये भी ज्ञात है की
मेरा विस्तार तुम ही तो हो ,
और तुम्हारा संकुचन .. मैं ही तो हूँ ..
!! प्रणाम !!
© All rights reserved
No comments:
Post a Comment