Thursday 22 May 2014

मन

तेरे  भाव  अनेक  

रूप  अनेक  रंग  अनेक  

तू  कौन  है  ! परिचय  है  क्या तेरा  !

कहते  है  तू  मानस   है  और  मानसिकता  भी

तू  ही .दिल  भी  तू  दिमाग  भी  तू  ही  

फिर  मानस  और  मानसिकता  / दिल  और  दिमाग  की  लडाई  कैसी !!

मानस  और  मानसिकता   तो  स्पर्श  से  भी  दूर  

है दिल  गरम  खून  से  सराबोर  और  दिमाग  माँस  का  पुंज ...

तेरा  अस्तित्व  कहाँ   है  !!

तू  तो  बैठा    शास्त्रों  में  ,तुझसे  ही   है  काव्यो  में  शान  

फिर  तुझसे सब   कैसे  है  अनजान  ..... !!!!

नहीं , नहीं , तुझमे  है  अभी  भी  शेष  जान  ,

कैसे  समझू  तुझको  मै  निष्प्राण  ..

तुझसे  ही   सुंदरतम प्रकृति  में  संगीत  , 

तुझसे  ही  लहराता  समंदर  विशाल   

वायु  बिखेरती  सुगंध  इधर  ओ  उधर तुझसे  ही. 

प्यार  को  तुने  ही  दिया  सहारा  ..

विश्वास  का  एक  छोर   बंधा  तुझी  से  

दर्शन  और  साहित्य  फलफूल  रहे  तेरी  महिमा  से  

तो  ........................................................................!!!!

क्या  मैं  समझू  भगवान्  तुझे  ...!!!!

न  ... न  और  नहीं  ....इस  बार  नहीं  ...  

नित नए प्रलोभन देता ...

तू  तो  मंदिर में बैठा कोई है  माया  का  ही  विस्तार  

अब  न  छल  सकेगा  रे  मन  तू  अब  मुझे  और  ..

पहचाना गया है रे तू छलिये !!!!

तू  ही  तो  दिल  है धड़कन भी तू ही   , 

तू  ही  तो  मन  है  और  तुझसे  ही  तो  मानसिकता   ,

उस मानसिकता ने ही तो रचना रची मंदिर  की मस्जिद की .

कभी इस नाम से  तो कभी उस नाम से नाम बदले  वेश बदला  ,

देश भी बदला ...पर नहीं बदला विचार ... नहीं बदली नियत तेरी 

सब   तेरे  ही  दास  है ,

रिश्ते  तेरे  सम्बन्ध  तेरे  , मान  तेरा  सम्मान  तेरा   

हार  तेरी  जीत  भी  तेरी  विषाद तेरा  हास्य  भी  तेरा , लास्य भी तेरा   

पहचान  लिया है  मैंने  तुझको  , 

तू  ही  तो  है ..  महा ठगनी  उस महामाया का  विस्तार !!! 

हा  हा हा हा हा ......

अब  न  छल  सकेगा   छलिये  ... और  तू  मुझको  !!!

अब  न  छल  सकेगा !
(written in 2012 )
(मेरे ) मन
© All rights reserved

No comments:

Post a Comment