प्यार है कहाँ ? ---------------
प्यार शब्द सिर्फ किताबों में तब तक कैद रहेगा लाइनों में
जब तलक भ्रूण गर्भ में ही कट रहा है , प्यार है कहाँ ?
बच्चे भूख ओ बीमारी से तड़प तड़प के रो रहे , प्यार है कहाँ ?
स्त्रियों की आँखे भीगी ओ माँ-बाबा सिसक रहे , प्यार है कहाँ ?
जब तलक रिश्तो पे है बेवफाई की मार पड रही , प्यार है कहाँ ?
जब तलक सीमाओं पे भाई लोग शहीद होते रहेंगे , प्यार है कहाँ ?
जब तलक गुट्ट बना के लोग लड़ते रहेंगे मिटते रहेंगे , प्यार है कहाँ ?
जब तलक बिन बोल के प्राणी खप रहे इंसानो की भूख ओ सजावट के लिए !
क्यूँ धोखा देना ,सीखने-सिखाने का , पहले सबको और फिर अब खुद को ?
लाइनों से प्यार मिलता तो संसार प्यार का महा - सागर बन गया होता ,
लिखे हुए से लोग अगर सीख पाते तो नृशंसता से दूर सब संबुध्ह होते ,
अनुभव और अहसास को उसके भाव की बेशकीमत कीमत मिल गयी होती..
तब तलक प्यार सिर्फ " शब्द है " , " खोखला है ", " धोखा है" , " भ्रम है " , " छलावा है " ।।
प्यार है.. तो ..
दिल की गहराईयों में ,
तरंगित अहसासों में ,
आँखों के उजालो में ,
महकते जज्बातों में ,
खिलते हुए गुलाबों में
बढ़ते हुए चिनारों में
कुदरत के नज़ारों में
प्यार को महसूस करो ...
तो यही है ...
वर्ना .....
कहीं नहीं है ......
कहीं नहीं है ....
ॐ
(written dec 2013)
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