Thursday, 22 May 2014

स्वप्न के स्वप्न

स्वप्न जो  तुने   दिए

कुछ स्वप्न  जो  मैंने  लिए  ..

ये  जीवन  सपना  है  जान लिया 

स्वप्न ही है  जो  इस  जीवन_स्वप्न  में  देखे  !

एक  स्वप्न  है  जीवन _स्वप्नों  से  पार   जाने  का ..... 

पर  सपनो  से  पार  क्या  है  .....एक  और  स्वप्न .... 

कुछ  अलग  है  वो  स्वप्न  पर निश्चय  ही  स्वप्न  है 

अनगिनत  अटूट  स्वप्नों की श्रृंखला ...

इस पार भी है .....उस पार भी है ...

एक  स्वप्न  श्रृंखला  से  आजाद  होने  की  ठानी  ...

तो  दुसरे स्वप्नों  के  जहाँन   में   जा  अटके  ..

तेरी  रची  माया ,  क्या  कभी  थकती  नहीं  ...

नित  नए  नए  सपनो  के  जाल  बुना  करती  है  ..

इस पार भी और उस पार भी ....  निरंतर .....  

हर  किसी  को....  जकड  के , पकड़ के..... रखती है

(प्रभु  तुमको  भी  तो यही चला देती है  )(हास्य )

तेरे  ही  तो  नियम  है  जो  जैसा  करता है  उसको  वैसा  ही  फल  मिलता  है  

(निश्चित  है  ) 

तो  क्या  माया को भी  भरमाने  के  लिए  

क्या   तुने  किसी  और  माया  को  बनाया  है  "जो  उसको भी  छले "

या  ये  भी  तेरी  माया  का  दिखाया  एक  और   स्वप्न  ही मात्र  है  ....

प्रभु सपनो से परे  क्या कोई और मात्र   स्वप्न ही है ? 

 4 March 2012 at 05:15 PM
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!! प्रणाम !!

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