Thursday 18 September 2014

पाया एक धागा




पाया एक धागा 
जिसके दो छोर ....

पता नहीं कैसे 
विषय बदलते है 
रंग भी बदलते है
छोर वहीँ के वहीँ
दोनों किनारो पे
अड़े-जमे-खड़े है

गजब का खेल
धागे पे चलना ....

सीधे चलते धागे पे
इसछोर से उसछोर
भासते लम्बे रास्ते
शीर्ष  बिंदु मिले तो
आरम्भ और  अंत
एक  ही   हो  जाते
जहा   से  आरम्भ
अंत भी   वहीँ खड़ा
एकदम  आसपास 


Om 

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