Monday, 1 September 2014

जैसा भाव वैसा फल




ऐसा तो  नहीं की मुश्किल था,उसको  समझना 

उस जैसा तरल और सरल कुछ दूजा है ही कहाँ 


संतुष्टि कैसे  होगी ! जाना समझा उलझा न हो 

अहम कैसा !  विषय  लच्छेदार  जब तक न हो 


दुर्लभ ज्ञान रहस्य पाने में वो सहज उलझ गया 

मीरा ने गाया कबीर ने पाया वो  ग्रन्थ बन गया 


तुलसी  ने  लिखा  महाकाव्य; सहज  भाव ही है 

व्यास  रचित श्रीमदभागवत भाव संकलन ही है 


कबीर मीरा तुलसी व्यास की व्याख्या  करडाली 

सभी की नाव  में  बारीबारी समंदर में घूम आये 


मजा देखो ! लौट उसी घाट पे आये जहां से चले 

हर बार समझी  वोही इकबात  सरलता मन्त्र की 


भक्त सरल और भगवान् सरल दोनों तरल तरल 

जान के हर बार वो ही बात हम रहे गजब मूढ़  ही 


ना तो सरल बन सके  और  ना  ही तरल बन सके 

हाँ ! दुसरो को  समझाने भर जान लिया  काफी है  


कितना बदले, ज्ञान तो सही है,जीवन भी जीना है 

ज्ञान + चालाकी  यानी ज्ञानालाकी  है  फायदे की 


शातिराना  छाँव दिखावटी बे-बुनियाद क्षणिक है 

नहीं  दिखता वो भी हमारी  जिंदगी का हिस्सा है 


कितने  ढंग-रंग से प्रभावित हमें करता है अंजना 

इस प्रसंग में सफ़ेद-स्याह दोनों ताकतें शामिल है 


वृत्ति- प्रवृत्ति  अनुसार  संपर्क में आ प्रभाव देती है 

क्रमशः फल का भागीदार हमें ही बनाती जाती है 


अदृश्य ताकते दिखाई नहीं देती पर इशारे देती है 

समझने जागने के क्षण  बारम्बार  देती जाती  है


आह्वाहन से बाधित पर फल भावानुसार देती है 

तभी जैसा  भाव  बनता, फल  वैसा ही मिलता है 




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