Tuesday, 23 September 2014

विष्णुगर्भस्वप्नरहस्य



विष्णुगर्भ ही क्यों  स्वप्न का केंद्र क्यूंकि  विष्णु  स्वभाव में ही तो समायी है  ये समस्त  ब्रह्मांड के जीवन की कला , ब्रह्मा  शक्ति  सिर्फ सृजन के जिम्मेदार  है , और शंकर  समाप्ति की ओर , तो समस्त स्वप्न स्वप्न के स्वप्न उत्पन्न होने की स्थति  विष्णु  के अंदर ही समायी है,पालनकर्ता के समस्त गुणों का संगृह युक्त  श्री पति  विष्णु  , माया के आश्रयदाता भी है , इनकी शक्ति  ही से  मनुष्य को  ज्ञान  का आभास हो के भी  माया से भर्मित रखती है। जन्मजन्मांतर  जीव अपनी ही अज्ञानता में  उलझा हुआ भटकता  रहता है।  इस चित्र के समान ही , संकेत रूप में  विष्णु की सत्ता को , व्योम में  मानना है , कल्पना कर सकते है की  ये शक्ति  व्योम में वातावरण के समान व्याप्त है , जिससे  जगत में जीव संरचना  हुई उत्पति  और विनाश  हो रहा है। संभवतः अन्य  मंडल में भी ऐसा ही जीवन हो , जिसकी खोज जारी है >>>> 

ओम ओम ओम 


सपनो  से परे क्या  होगा ! इनसे अलग जीवन क्या होगा !
सपनो  की  गर्त  में  सपने  उनके  भी  गर्भ  में बस  सपने

स्वप्न चक्र  में उलझे जीव  देखते जाते नित नूतन सपने
उनके भी अंदर  उलझे  सपने और  सपनो के अंदर सपने

कितने सपने  है जो कट चुके , कितनो का कटना  बाकी है
कितना जीवन भेंट समझ जी चुके कितना जीना बाकि  है

इस जन्म  के, उस जन्म के सपने, जन्मांतर  के भी सपने
महीने सालों सुबह शाम रात मौसम जैसे आते जाते सपने

सपनो  में  जीते  हुए  जान  लिया  , सपना ही  देखते सब
ज्ञानीध्यानी मकानीदुकानी रोगीनिदानक  योद्धा शोध्दा

भटकन को जाना , मोहिनी  को मोह-अवस्था में पहचाना
सौभाग्य  है मिला  दुर्लभ  जागरण - जागृत के दर्शन  का   ,

सपने में जागते हुए, स्व को जगाते हुए का, सपना देखते है
खातेपीते,हँसतेरोते,भावावेश में चिल्लाते गाते फिर सोते है

जागने की कोशिश में  बार बार नींद से नींद में जग जाते है
ये भी बहुत है की,स्वप्न में स्वप्न का बना हुआ अहसास है

इससे ज्यादा साक्षित्व  और  मृत्यु का अनुभव  क्या होगा !
ये भाव सम्पूर्ण नहीं,पूर्णता की गहनता  का बिंदु  भी  नहीं।

पूर्वप्रबंधन सुनियोजित सकुशल भी  हो तो ज्यादा अर्थ नहीं
वास्तविक परीक्षा से सफलतापूर्वक पारहोना कुछ और ही है

बाकि  छलावा  है बस उस पल को  जी जाना  कुछ और ही है
परमसत्यसाक्षात्कार अनुभव  से गुजरजाना कुछ और ही है

उल्लेखित समस्त चित्र  स्वप्नवत निहित सत्य संकेत मात्र
फैली ऊर्जा की सत्ता चहुँ ओर,संग्रहित जहाँ वहीँ जीवन जान !

ॐ 


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