ये कौन सी जिजीविषा है
जो स्वप्न में आ छलती है
इस 'स्वप्न' से जागे हुए है
तो सांकल क्यूं खटकती है
ये कैसी स्वप्नावस्था है
बदलाव उम्मीद रखती है
ये कैसी निद्रा अवस्था है
सत्य स्वीकार से डरती है
है मन का औजार कोई
स्वप्न में स्वप्न दिखाना!
रोज कुछ आहटों के साथ
सुलझा उलझाव दे जाना
एक्छिक साजिश तुम्हारी
परिस्थिति काबू करने की
जागृत तन्द्रा टूट गयी है
नन्हा मूर्छा स्वप्न जारी है
कल फिर से आके तुमने
अपना क्यूँ जादू चलाया
कुछ देर बहलाओगे फिर
सुबह छोड़ चले जाओगे
एक भी तार सूत्र है उसी -
अंतर्मन के अंतर्द्वद्व का
असुप्त मन की तन्द्रा रोक
तेरा असर मिटाया माया
जीवित जादू न डाल सकी
स्वप्न में आ फुसलाती हो
कुछ और बाकि तो दिखा दे
स्वयंको बहला ले तबतलक
जन्मस्रोत खोज लूँ मायावी
जान! के किया संस्कार तेरा
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