Monday, 1 September 2014

एक बूँद इश्क़




बूँद को टपकते आसमान से देखा एक बार
ख़ुशी का उपहार  देती टप से गिरी चहरे पे

मैंने  पुछा इतनी दूर से आई हो , कैसी  हो !
मुस्काई और बोली तेरी ही हूँ  तेरे जैसी  हूँ

तुझसे मिल के  ही आगे चली थी सफर में
जीवन देती हुई जीवन को बढ़ातीं अनवरत

चंचला मैं रुकी कहाँ सफर में मेरे हमसफ़र
शरुआत न समझ मध्य है जलस्रोत झरना

स्रोत से प्रपात नदी सरोवर में गिरतीबहती
समंदर  तक इठलाते बहते  तुमने भी देखा

और उसके बाद यात्रा हो गयी अदृश्य  सुप्त
यात्रा रुकी  नहीं  इक  पल भी  निरंतरता में

विशाल जलसंचय वो भी कहाँ ठिकाना मेरा
वहां से उठ ऊपर मिलना था फिर बादलो से

बादल के अंचल में भी विश्राम  ठहराव कहाँ
गर ठहरी मैं समस्तजीवजगत ठहर जायेगा

देखो आज  फिर से तुम्हारे चहरे  पे गिरी हूँ
सुनते उसकी बात वो एक भाव एक बूँद बन

अटका  था पोर  में ढुलक; जा मिला मिटी में
अचरज अद्भुत दृश्य  दे ; दर्शन दे गयी  बूँद

हमारी  गफलत  हमें खुदसे मिलने नहीं देती
खुद से अनजान सभी को अनजान  समझते

और वो आँख का मोती  उसी बूंद  का हिस्सा
आश्चर्य मेरे  अंदर बस रहा , था मैं अनजान

सागर में था वो जोश कहाँ ! कश्ती डुबो सकता
ताज्जुब बूँद का, जो  सैलाब संग बहा  ले  गयी


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