Tuesday, 23 September 2014

भूल ना मानव स्वविकास कथा





रे मानव ! पहचान स्वयं को 
अपना ही अक्स जो भूलगए 
शहरों कस्बों में रहते - रहते
जंगल का वो रहना भूल गए 

याद करो वो आरंभिक काल
याद करो वो जंगल का राज
याद आएँ  गर  वो दिन रात
याद करो "अपनों" का साथ

निःसहायआक्रामकता सहते
दण्डकवन में छुप सहमेरहते
पत्थर-शस्त्र खोज कर स्वयं
के भय पे प्रथम विजय पाली

वस्त्र मुक्त भोजन आदि का
मात्र आखेट  एक ही जरिया
न संघ  न संघीय शक्ति, वो
घना जंगल और  जंगलराज

पत्थर घर्षण से अग्नि खोज
पश्चात अन्न धन  की खोज 
जल वायु संग स्वतंत्र जीवन
कभी वीर,कभी भयभीत तुम 

मौसम का वेग,जीवों की घात
कैसा सघन कठिन था जीवन
सुविधाओं की परिभाषा छोटी
आश्रयमात्रसे होती भयमुक्ति 

दूजा विकास क्रम जीव मित्रता 
तीजा परिश्रम था किसानी का
चौथा  प्रयास  वस्त्र आच्छादन
जिससे प्रभावित तन मन दोनों 

दोबारा वहीं ढूंढो बिसरे निशान
उन चापों के संग क्रमशः  बढ़ो-
आज की ओर, संभव हो स्पष्ट
शक्ति विकास भावपतन दृश्य 

डोर मत  छोड़ना,जो शुरुआती
बहुत फिसलन है बीच राहों में
विज्ञान/ धर्म स्थापन से पहले
तुम क्या थे! मूल पकड़ रुकना

वैज्ञानिक उन्नति  का इतिहास
आध्यात्मिक अवनति की कथा
क्या मानव सभ्यता की जड़ में
मंत्र- तंत्र -ग्रन्थ थे ! नहीं - नहीं

वो  इत्र क्या था ! जड़ें थी क्या !
इस पूरे विकास के इतिहास की
इक  प्रेम दूजा भय थे मूलाधार
आज भी यही दो गड़े है नीव में!

धार्मिकों ने इनको ही अर्क बना
परमार्थ  का रास्ता  सुझा दिया
विज्ञानं को भाया भय से लड़ना
कठिन बुद्धि से प्रेम को पाना !

विज्ञानं  तर्कसंगत प्रमाणपूरक
धर्म / अध्यात्म तरंगो का जाल
एक ने प्रमाण से हर  भय जीता
दूजेने प्रमाण रहित भय को हरा!

सम्पूर्णउन्नतिमूल में भय प्रेम
अंतिममंजिलफिरभीसबकीएक
समस्तकर्मबीज का एकआधार 
मानव निधि  हो मानव के लिए

कितनी भी ऊँची  उड़ान  भर लो
भूल ना मानव स्वविकास कथा!
सीमाओ की , भय की,  प्रेम की
भूल ना मानव स्वविकास कथा!

भूसहित तीनो मंडल स्वामी बन
भूल ना मानव स्वविकास कथा
ईश्वर प्रदेश  छू के भी आ जाना 
भूल ना मानव स्वविकास कथा!

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