ऐ जिंदगी ! आ तुझसे गुफ्तगू करें
थोड़ा तुझे जाने थोड़ी अपनी कहें ,
कैसे बिना सर पैर के भागती रहती
जैसा चाहे वैसा रूप दिखती चलती
शिव के नृत्य औ वीणा स्वर में तू
गजानन के मंगलवाद्य में तू ही
बाल्य की निश्छल किलकारी में तू
आह!त्रासदी चीखो अश्रुओं में भी तू
ऐ जिंदगी ! जन्म लेती खुशियों में
अंतिम श्वांस लेती थकान में भी तू
पहाड़ो के निश्छल सौंदर्य में तू ही
तूफानो में समायी महाप्रलय तू ही
कोमल फूलों की सुगंध में समायी
सिंह गर्जना में शक्ति बन प्रकटी
जीवन के कोपल फूटते तुझ से ही
विनाश का महाताण्डव भी तुझमे
अंगारेफेंकता प्रज्जवलित धरागर्भ
आहट देती चाप जलकल तरंग में
विरोधाभासी तेरा सौंदर्य स्वीकृत
शक्तिपाद करते गंगाधर चंद्रधारी
परमशिवा सर्वशक्तिशाली नमन
वंदन बारम्बार अद्भुत कलाकार
लीलाधर की लीला संभव-असंभव
आदि से अंत तक जिंदगी-जिंदगी
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